नई दिल्ली। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर सियासी रार खत्म होने का नाम नहीं ले रही. विपक्ष के आक्रामक तेवर के बावजूद एनआरसी को लेकर सरकार फ्रंट फुट पर खेलती नजर आ रही है. सरकार के मुताबिक गलतफहमी फैलाने, भय का वातावरण पैदा करने और मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने के पीछे स्वार्थी तत्वों का हाथ है. संसद में दिए गए बयान में सरकार ने कहा कि जानबूझकर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण की कोशिश की जा रही है.
पिछले चार दिन से इस मुद्दे पर राज्यसभा में बने गतिरोध को विराम देते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सदन को बताया कि एनआरसी का ड्राफ्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत बनाया गया है और अगर इसे लेकर किसी को आपत्ति है तो सुनवाई का पूरा मौका दिया जाएगा.
सदन में बयान देते वक्त राजनाथ ने कहा, ‘पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि यह एनआरसी से बाहर 40 लाख परिवार नहीं बल्कि 40 लाख व्यक्ति हैं. ये एक निष्पक्ष और स्वतंत्र प्रक्रिया है, और किसी से भेदभाव नहीं हो रहा. यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है. इसलिए सरकार इसे समय सीमा के तहत अंजाम तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है. किसी भी तरह की जबरदस्ती या कार्रवाई इस मसले पर नहीं की जा रही है.’
विपक्ष हमलावर
सोमवार से ही इस मसले पर सदन में घमासान मचा हुआ है. विपक्षी दलों की लामबंदी के चलते भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस मसले पर अपनी बात पूरी नहीं कर पाए. मगर शुक्रवार आते-आते सरकार और विपक्ष के बीच कुछ सहमति बनी.
हालांकि विपक्ष का कहना है कि सरकार दोहरी भाषा में बोल रही है. तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने गृहमंत्री से पूछा कि वह यह स्पष्ट करें किस मसले पर विपक्ष भाजपा अध्यक्ष की बात मानें या राजनाथ सिंह की?
वहीं सदन में नेता विपक्ष आज़ाद ने पूछा कि प्रक्रिया खत्म होने से पहले ही सरकार इसे निष्पक्ष कैसे करार दे रही है. एनसीपी संसद माजिद मेमन ने कहा कि सरकार यह स्पष्ट करें कि घुसपैठिए को लेकर गृहमंत्री की बांग्लादेश सरकार से क्या बातचीत हुई है.
सरकार के तेवर को देखकर यह साफ है कि इस मसले पर वह विपक्ष के हर सवाल का दो टूक जवाब देने को तैयार है. यही वजह है कि सरकार ने यह स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर भ्रम फैलाने की कोशिश हो रही है. ज़ाहिर है मोदी सरकार जनता में यह संदेश देना चाहती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कोई कोताही नहीं बरती जाएगी.