लखनऊ। ‘एकात्म मानववाद’ का संदेश देने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारक दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर उत्तर प्रदेश के मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम रखा गया है. आज से इसकी शुरुआत हो रही है. ऐसे में जानते हैं दीनदयाल उपाध्याय के जीवन से जुड़ी कुछ बातें और उनका मुगलसराय स्टेशन से क्या है कनेक्शन?
पंडित दीनदयाल अपनी निष्ठा और ईमानदारी के लिए भी जाने जाते थे. उनकी मानना था कि हिंदू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं बल्कि भारत की संस्कृति है. वे अखंड भारत के समर्थक रहे, उन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को परिभाषित किया और समाज के सर्वांगीण विकास और उत्थान के लिए भी अनेक कार्य किए. कहा जाता है कि उपाध्याय ने ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा दी थी.
क्या है मुगल सराय स्टेशन से कनेक्शन
मुगलसराय स्टेशन का निर्माण 1862 में उस समय हुआ था, जब ईस्ट इंडिया कंपनी हावड़ा और दिल्ली को रेल मार्ग से जोड़ रही थी. इस स्टेशन के निर्माण के 106 साल बाद 11 फरवरी 1968 को पं. दीनदयाल रेलवे जंक्शन के निकट पोल संख्या 1276 के पास रहस्यमय हालात में मृत अवस्था में पाए गए थे.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा के नगला चंद्रभान नाम के गांव में हुआ था. उन्होंने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा राजस्थान के सीकर में प्राप्त की थी. दीनदयाल ने अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा पिलानी में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की. उसके बाद बी.ए. की शिक्षा ग्रहण करने के लिए कानपूर आ गए जहां वो सनातन धर्मं कॉलेज में भर्ती हो गए. उसके बाद उन्होंने बी.ए. की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और एम.ए. की पढ़ाई के लिए आगरा चले गए.
1937 में आरएसएस से जुड़े
अपने एक दोस्त बलवंत महाशब्दे की प्रेरणा से वे साल 1937 में वो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए. साल 1955 में वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर प्रदेश के प्रांतीय संगठक (प्रान्त प्रचारक) बन गए. उन्होंने लखनऊ में राष्ट्र धर्म प्रकाशन नामक प्रकाशन संस्थान की स्थापना की और यहां से “राष्ट्र धर्म” नाम की मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया.
जनसंघ के गठन में अहम भूमिका
1950 में डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया और देश में एक वैकल्पिक राजनीतिक मंच बनाने का कार्य शुरू किया, जिसमें दीनदयाल उपाध्याय ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. उसके बाद 21 सितंबर 1951 को उन्होंने उत्तर प्रदेश में एक राजनीतिक सम्मेलन का सफल आयोजन किया. इसी सम्मेलन में देश में एक नए राजनीतिक दल भारतीय जनसंघ की राज्य इकाई की स्थापना हुई. वे 1953 से 1968 तक भारतीय जनसंघ के नेता रहे.