नई दिल्ली। 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की अगुवाई में एनडीए और कांग्रेस ने जोर-शोर से तैयारी शुरू कर दी है. बीजेपी ने तो फरवरी तक पीएम मोदी की 50 रैलियों का कार्यक्रम भी बना लिया है. इससे पहले दोनों ही पार्टियां मध्य प्रदेश-राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में आमने-सामने होंगी. कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि इन चुनाव के पहले यूपीए का कुनबा मजबूत हो जाये. समाजवादी पार्टी, बीएसपी सहित कई क्षेत्रीय दलों के साथ इस समय संपर्क कर रही है लेकिन कांग्रेस के लिये यह राह इतनी आसान नहीं है. बीजेपी के सामने बीते 4 सालों में कई ऐसे मुद्दे खड़े हो गये हैं जो उसको चुनाव में परेशान कर सकते हैं.
मॉब लिंचिंग की घटनाएं
देश में मॉब लिंचिंग की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. बीजेपी के लिये परेशानी की बात यह है कि ये घटनाएं उन्हीं राज्यों में हुई हैं जहां पर पार्टी का शासन है.
कथित गोरक्षकों का आतंक
पीएम मोदी भी इस मुद्दे पर अपील कर चुके हैं. लेकिन गोरक्षा के नाम पर उसके बाद भी कई लोगों के साथ मारपीट की जा चुकी है. विपक्षी नेताओं का आरोप है बीजेपी सरकारें इस मुद्दे पर ढुलमुल नीति अपना रही है.
विपक्ष के एकजुट होने की कवायद
बीजेपी को विपक्ष की एकजुटता का अंदाजा गोरखपुर, फूलपुर और कैराना में हो चुका है. इन उपचुनावों में बीजेपी की हार हुई है और अब इस बात का अहसास विपक्षी दलों को भी हो चुका है कि एक होकर ही बीजेपी को हराया जा सकता है.
बीजेपी और सहयोगी दलों के नेताओं के बयान
बीजेपी को कुछ नेताओं में हाल ही में ऐसे बयान दिये है जिससे उसको असहज स्थिति का सामना करना पड़ा है. हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि आरक्षण तो दे दिया जाएगा लेकिन सरकार नौकरी कहां दे रही है. वहीं उत्तर प्रदेश में सहयोगी पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर भी लाख मानने के बाद भी बयान देने से नहीं रुक रहे हैं. हाल ही में उन्होंने कहा कि मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलने से क्या ट्रेनें समय पर आने लगेंगी. वहीं शिवसेना भी अपने तेवरों कम नहीं कर रही है सीधे पीएम मोदी पर निशाना साध रही है.
पीएम मोदी के भाषण में अब दोहराव
पिछले 4 साल से पीएम मोदी ने कई भाषण दिये हैं. ‘यूरिया में नीम कोटिंग’ जैसी बातों पर अब जनता पर असर होगा यह मुश्किल है. गुजरात चुनाव में भी हम मुद्दों की कमी से बीजेपी को देख चुके हैं. कालाधन, सर्जिकल स्ट्राइक और रोजगार के मुद्दे पर पीएम मोदी की बातें अब पुरानी लगती हैं. बीजेपी के साथ दिक्कत यह है कि पीएम मोदी का चेहरा ही उसके बाद सबसे बड़ा चुनावी हथियार है और उसमें ‘पैनापन’ बना रहना जरूरी है.