लखनऊ/देवरिया। बिहार के मुजफ्फरपुरकांड की आग अभी सुलग ही रही थी कि उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि गोरखपुर से महज 55 किलोमीटर दूर देवरिया जनपद में हुए शेल्टर होम कांड ने प्रदेश सरकार समेत राज्यसभा तक को हिला कर रख दिया. बहरहाल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फौरी तौर पर उच्च स्तरीय जांच कमेटी बनाई और हेलीकॉप्टर से फ़ौरन उन्हें तसदीक करने के लिए देवरिया भेजा. कमेटी की रिपोर्ट आने के तुरंत बाद ही मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रदेश सरकार ने सीबीआई जांच की संस्तुति भी कर दी. लेकिन पिछले चार दिनों से चल रहे इस घटनाक्रम में बीते समय में हुई कुछ गतिविधियां भी हैं जिन्हें किसी स्तर पर प्रशासनिक तवज्जो नहीं मिली.
गौरतलब है कि प्रदेश सरकार ने घटना के तुरंत बाद ही डीएम सुजीत कुमार को तत्काल हटाने के निर्देश दिए थे वहीं जिले के पूर्व डीपीओ अभिषेक पांडेय की लापरवाही देखते हुए उन्हें भी सस्पेंड कर दिया गया था. पूर्व प्रभारी जिला प्रोबेशन अधिकारी नीरज कुमार और अनूप सिंह के खिलाफ भी विभागीय जांच के आदेश दिए गए हैं.
स्वीकारोक्ति के बीच राजनीति
छापेमारी के दो दिन बाद ही एक प्रेस कांफ्रेंस में प्रदेश की मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने भी स्वीकार किया कि शेल्टर होम में लड़कियों के साथ शारीरिक शोषण किए जाने की बात से इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन इसके अलावा उन्होंने इस बात पर भी पूरा ज़ोर दिया कि इस कांड के मूल में पिछली सरकार द्वारा दिया गया प्रश्रय भी है.
सुश्री जोशी ने कहा कि ‘प्रदेश के हर जिले में सीडब्ल्यूसी (चाइल्ड वेलफेयर कमिटी) गठित हैं. इन्हें हर महीने 20 संस्थाओं की जांच करनी होती है. एक जांच के लिए उन्हें 1500 रुपए दिए जाते हैं. पिछली सरकार ने जाते-जाते इन कमिटियों के सदस्यों की नियुक्ति कर दी थी. देवरिया में उसी महिला को सीडब्ल्यूडी का सदस्य बना दिया, जो 2009 से पहले गिरिजा त्रिपाठी की संस्था की काउंसलर थीं.’
रीता जोशी ने यह भी कहा कि ‘इस संस्था को 2010 में मान्यता देकर बाल संरक्षण गृह, बालिका संरक्षण गृह और सुधार गृह का काम दे दिया गया. देवरिया की इस संस्था को बंद करवाने के लिए विभाग से 15 नोटिस भेजे गए. डीएम और डीपीओ ने पांच नोटिस दिए, लेकिन संस्था बंद नहीं हुई. इसमें स्थानीय स्तर पर लापरवाही उजागर हो रही है. इसकी भी जांच करवाई जाएगी कि मान्यता खत्म होने के बाद पुलिस कैसे वहां बच्चे भेजती रही. डीएम और डीपीओ को लिखे पत्रों की भी जांच होगी.’
आखिर पिछले एक साल से क्यों चुप था स्थानीय प्रशासन?
इस कांड के बाद प्रदेश भर के शेल्टर होम और संरक्षण गृह प्रशासन के रडार पर हैं और प्रदेश भर में आला अधिकारियों ने अपने अपने जिलों में चल रहे संरक्षण गृहों का दौरा भी किया है. लेकिन घटना के सामने आने के बाद दिखाई जा रही इस तेज़ी के पीछे केंद्रीय नेतृत्व का डर और साथ ही बीते एक साल में प्रदेश सरकार की शिथिलता को छिपाए जाने के प्रयास भी हो रहे हैं.
भले ही मामला अब सीबीआई के हाथ में है लेकिन कुछ अनसुलझे सवाल ऐसे हैं जिन पर अब तक उत्तर प्रदेश पुलिस की जवाबदेही स्पष्ट नहीं हो पाई है-
1. क्या लड़कियों के यौन शोषण या बलात्कार की पुष्टि हुई है? इसके अलावा, यह भी स्पष्ट नहीं है कि यूपी पुलिस द्वारा किस दिशा में कार्रवाई की जा रही थी.
2. पिछले दिनों हुई एक राज्यव्यापी सीबीआई जांच जिसमें, वित्तीय अनियमितताओं के पाए जाने के बाद मां विंध्यवासिनी महिला और बालिका संस्कार एनजीओ का लाइसेंस पिछले साल जून के महीने में ही राज्य सरकार द्वारा रद्द कर दिया था तब भी यह संस्था अब तक कैसे चल रही थी. लगभग दो हफ्ते पहले जब स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने आश्रम के निरीक्षण करने की कोशिश की थी लेकिन वहां गिरिजा त्रिपाठी एवं उसके पति मोहन त्रिपाठी के साथ उनकी तीखी बहस भी हुई थी. इस बाबत एक प्राथमिकी भी दर्ज की गई थी इसके बावजूद इन दोनों पति-पत्नी पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
३- पुलिस द्वारा छापा मारे जाने के बाद अब कुछ दिन बीत चुके हैं लेकिन 18 अन्य लड़कियां अभी तक गायब हैं. पुलिस सूत्रों के अनुसार, 42 लड़कियों की सूची जो मिली थी, वह एक फ्लोटिंग सूची थी और इस बात को साबित नहीं किया जा सकता कि यह सूची कितनी हद तक सही है. ऐसे में क्या उत्तर प्रदेश पुलिस की जिम्मेदारी उन 18 लड़कियों के बारे में भी फौरी तहकीकात करने की नहीं थी?
4. पुलिस ने यह भी कहा कि उन्हें पता नहीं था कि आश्रय घर में लड़कियों का यौन शोषण किया जा रहा था. इस बीच, पुलिस यह भी देख रही है कि एनजीओ ने संख्या बढ़ाने और अधिक निजी वित्त पोषण पाने के लिए लड़कियों के मूल नाम रखे हैं या या फ़र्ज़ी तरीके से भी नाम जोड़ने की कोशिश की गई है.
5. पिछले आठ सालों में गिरिजा और मोहन त्रिपाठी के पैसे और रसूख में भारी बढ़ोत्तरी हुई थी. हर रोज़ वीआईपी गाड़ियों का आना जाना लगा रहता था. यहां तक कि पुलिस भी लावारिस लड़कियों को वहां सुपुर्द करके जाती थी ऐसे में स्थानीय प्रशासन या पुलिस की स्थानीय ख़ुफ़िया इकाई अब तक इन गतिविधियों को क्या कहीं दर्ज़ कर रही थी या नहीं?
हाईकोर्ट ने भी उठाए सवाल
इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि देवरिया आश्रय घर केस में हो रही सीबीआई जांच की निगरानी हाईकोर्ट करेगी. बुधवार को सामाजिक कार्यकर्ता पद्म सिंह और अनुराधा द्वारा दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की एक खंडपीठ ने जांच एजेंसी से 13 अगस्त तक सभी दस्तावेजों और निष्कर्षों को प्रस्तुत करने के लिए कहा है.
याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने सीबीआई से यह भी पूछा है कि क्या उनके द्वारा अभी तक मामला दर्ज किया है और क्या इस रैकेट के पीछे किसी भी राजनेता या वीआईपी की संभावित भागीदारी है या नहीं. इसके अलावा इस बात की भी स्पष्ट जानकारी मांगी गई है कि आश्रय घर से बचाई गई 24 लड़कियों द्वारा दिए गए बयान भी प्रस्तुत किए जाएं. खंडपीठ ने अब तक सरकार द्वारा की गई कार्रवाई में चूक की ओर भी इशारा किया है और पूछा है कि जिला मजिस्ट्रेट के अलावा पुलिस अधिकारियों के ऊपर भी कार्रवाई क्यों नहीं की गई.
ब्लैकलिस्ट होने के बावजूद पिछले एक साल से लड़कियों को आश्रय घर में भेजने के लिए पुलिस को तगड़ी फटकार लगाते हुए एडीजी सुरक्षा को निर्देश दिए हैं कि बची हुई 18 लड़कियों के बारे में भी पता लगाया जाए और साथ ही उन गाड़ियों के मालिकों के बारे में भी पता लगाया जाए जो देर रात इन लड़कियों को लेने और वापस पहुंचाने आया-जाया करती थीं. इसके साथ ही इस बात की भी जानकारी मांगी गई है कि अब तक जिन लड़कियों को आश्रम से मुक्त करवाया गया है उनके पुनर्वास के लिए क्या किया गया है.
जांच में सामने आएगा कहां तक जुड़े हैं तार
शेल्टर होम में जिस्मफरोशी की जानकारी सामने आने के बाद से पूर्वांचल का यह छोटा लेकिन महत्वपूर्ण शहर चर्चा में है. हर दिन चौंकाने वाली शर्मनाक जानकारियां सामने आने के क्रम में मामला अब देवरिया से बाहर निकलकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नगर गोरखपुर तक भी पहुंच चुका है. पुलिस जांच में यह भी पाया गया है कि गिरिजा त्रिपाठी की बेटी कनकलता त्रिपाठी गोरखपुर में एक और अवैध शेल्टर होम चलाया करती थी.
21 वर्ष की एक लड़की को उनकी गिरफ्त से आजाद कराए जाने के बाद पुलिस को यह जानकारी प्राप्त हुई है कि गोरखपुर के एक घर में यह अवैध शेल्टर होम चलाया जा रहा था. एक और बात सामने आई है कि अब तक कनकलता त्रिपाठी गोरखपुर में डीपीओ के साथ मिलकर आईसीपीएस के तौर पर काम कर रही थी. वैसे तो आईसीपीएस की यह पोस्ट एडहॉक थी लेकिन वो पांच साल तक निर्बाध रूप से काम करती रहीं . हालांकि नियमतः कोई भी व्यक्ति जो कि सरकारी सेवा में है वह एनजीओ या संस्था नहीं चला सकता लेकिन क्या इस एडहॉक नौकरी का फायदा संस्था को आगे बढ़ने के उद्देश्य से किया जा रहा था. ऐसे में सबंधित सरकारी अधिकारियों की संलिप्तता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
सीबीआई की कार्रवाई के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि इस मामले के तार कहां और किन लोगों तक जुड़े हुए हैं लेकिन बिहार के बाद उत्तर प्रदेश में हुए इस मामले ने हिंदी पट्टी में महिला कल्याण के नाम पर चल रही संस्थाओं की कार्यप्रणाली और उन्हें मिल रही शासकीय छूट की कलई खोल दी है. ऐसे में इस मामले में महानगरों के क्रांतिकारी अभिजात्य समाज और नारीवाद के पहरुओं की चुप्पी भी कई इशारे करती है.
भले ही दिल्ली समेत कुछ अन्य शहरों में इस मामले को लेकर प्रदर्शन हुए हों लेकिन अब तक किसी ने देवरिया या ऐसे किसी अन्य छोटे शहर में चल रहे इन शेलटर होम्स या वहां रह रही लड़कियों की सुध लेने की कोशिश नहीं की है. ऐसे में इस सामाजिक बंटवारे के बीच इस मामले का हश्र क्या होगा यह भले ही भविष्य के गर्भ में हो लेकिन उत्तर भारत की सामाजिक स्थिति का आकलन इस कांड के बाद साफ़ ज़ाहिर हो चुका है.