सर्वेश तिवारी श्रीमुख
भारत में बिरतानी अत्याचार के विरुद्ध जनाक्रोश चरम पर है। चन्द्रशेखर आजाद जैसे योद्धा के बलिदान और सुखदेव, भगत, राजगुरु की फाँसी ने देश मे जैसे आग बो दिया है। उधर गाँधी पिछले दस वर्षों में भारतीय जनमानस में पूरी तरह पैठ बना चुके हैं, और उनके सविनय अवज्ञा आंदोलन ने देश मे उबाल ला दिया है। कुल मिला कर भारत में अंग्रेजों के लिए अबतक का सबसे बुरा कालखण्ड है।
पर अंग्रेज अंग्रेज हैं। आधे से अधिक विश्व पर उनका शासन यूँ ही नहीं, वे सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कुछ भी अर्थात कुछ भी…
एक वर्ष बाद अचानक ब्रिटेन में दो छोटी-छोटी घटनाएं घटती हैं। लंदन में एक अदना सा लड़का ‘रहमत अली’ भारत की धरा पर दो राष्ट्रों की परिकल्पना पेश करता है जिसमें मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान की बात है।
इधर मुम्बई में मुस्लिम लीग का एक बड़ा नेता मोहम्मद अली जिन्ना राजनीति से सन्यास की घोषणा करता है, और अपना वकालत का फलता फूलता व्यवसाय छोड़ कर लन्दन चला जाता है।
देश जानता है कि जिन्ना पत्नी की मृत्यु के कारण वैरागी हो कर लन्दन चले गए हैं और वहीं वकालत कर रहे हैं,पर इसमें सत्य एक प्रतिशत भी नहीं। पत्नी से जिन्ना का तीन वर्ष पूर्व ही तलाक हो चुका था सो वैराग वाली बात पूरी तरह से झूठ है। और लन्दन में जिन्ना किसी कोर्ट में कभी नहीं गए सो वकालत की बात भी पूरी तरह असत्य है। फिर आखिर जिन्ना लन्दन में कर क्या रहे हैं?
इधर भारत में मुस्लिम लीग में भी भयानक हलचल है। एकाएक मुस्लिम लीग के अनेक छोटे बड़े नेता और दीवान, नवाब लन्दन के चक्कर लगाने लगे हैं। लन्दन में लीग का जमावड़ा लग चुका है। लन्दन में आखिर कौन सा षड्यंत्र रचा जा रहा है यह कोई नहीं जानता, पर विंसटन चर्चिल कुछ बड़ा खेल खेलने के प्रयास में है यह गाँधी समझ रहे हैं।
इधर लन्दन में तीन माह के अंदर चर्चिल जिन्ना से तीन बार मिलता है। चर्चिल ब्रिटेन का युद्ध और सेना का मंत्री रह चुका है और अभी भारत पर प्रधान मंत्री रामसे मैकडोनाल्ड से असहमति के कारण मंत्रिमंडल से बाहर है। घोर साम्राज्यवादी चर्चिल भारत पर साम्राज्य बनाये रखने के लिए कड़े से कड़े प्रहार का भी समर्थक है।
याद रहे, यह वही चर्चिल है जिसने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भारत के सबसे लोकप्रिय नेता मोहनदास गाँधी को आमंत्रित किये जाने का खुल कर विरोध किया है। वही चर्चिल जिन्ना जैसे छोटे नेता से तीन बार क्यों मिलता है यह किसी को ज्ञात नहीं।
छह महीने बाद! जिन्ना का वैराग्य समाप्त हो गया, वे वापस भारत लौट आये हैं। साथ मे लाये हैं अलग राष्ट्र की मांग, हिन्दुओं के प्रति घोर घृणा, और कंधे पर ब्रिटेन सरकार का हाथ।
भारत की राजनीति की दिशा बदल चुकी है। लंदन से लौटे जिन्ना ने मुस्लिम लीग में नई जान फूंकी है, और वह पाकिस्तान की मांग को जोरदार तरीके से उठा रहा है। उसके ऊपर ब्रिटेन का वरद हस्त है, किसी भी मीटिंग में ब्रिटिश सरकार उसे गांधी के बराबर भाव दे रही है। उसे मुसलमानों का एकमात्र नेता घोषित किया जा चुका है।
उसे पहले भी देश की स्वतन्त्रता से कोई मतलब नहीं था, उसे अब भी स्वतन्त्रता से कोई मतलब नहीं। वह अब केवल पाकिस्तान चाहता है, जैसे भी मिले…
गाँधी सन बयालीस में भारत छोड़ो आंदोलन करते हैं, वह उसका विरोध करता है। उसका स्पस्ट मत है कि जबतक पाकिस्तान नहीं बनता अंग्रेजों को भारत नहीं छोड़ना चाहिए।
सन १९४६…
जिन्ना को तपेदिक की बीमारी हो गयी है। ब्रोंकाइटिस, प्लूरिसी…
वह जान गया है कि उसके पास दो ढाई वर्ष हैं अधिक से अधिक। उसकी बीमारी के सम्बंध में या तो वह जानता है या उसका डाक्टर पटेल, या ब्रिटिश सरकार के एक दो उच्चाधिकारी।
जिन्ना अब पूरी तरह आतंकी हो चुका है। वह पाकिस्तान के लिए पूरे भारत को फूँकने के लिए तैयार है। उसे अब पाकिस्तान जल्द से जल्द चाहिए, किसी भी मूल्य पर चाहिए।
वह अपने अनुयायी मुसलमानों को डायरेक्ट एक्शन का आदेश देता है, और भारत मे प्रारम्भ होता है हिन्दुओं का भयानक नरसंहार। पचास, सौ, पाँच सौ, हजार, दो हजार, पाँच हजार, दस हजार, बीस हजार, पचास हजार, लाख…..
देश जल उठा है। जिन्ना के रूप में धरा ने दूसरा तैमूर देखा है। कांप उठी है धरती…
सब समझ रहे हैं कि यह जिन्ना कर रहा है। पर केवल मोहनदास जानते हैं कि यह एटली और चर्चिल करा रहे हैं। जिन्ना तो उनका कुत्ता मात्र है जो उनके संकेत पर भौंक रहा है। पर गाँधी अब निरीह हो चुके हैं। शरीर अक्षम हो चुका है और कांग्रेस की बागडोर भी पूरी तरह नेहरू और पटेल के हाथ मे है। गाँधी मुख्यधारा से लगभग लगभग धकिया दिये गए हैं।
गाँधी जिन्ना से मिलने का प्रयास करते हैं, मिलते हैं। एक बार, दो बार…… ग्यारह बार। पर कोई लाभ नहीं। जिन्ना टस से मस नहीं हो रहा।
गाँधी विक्षिप्त से हो गए हैं। उनका शस्त्र ‘अहिंसा’ जिन्ना के समक्ष पूरी तरह फेल हो चुका है। जिस मन्त्र के बल पर उन्होंने अपने जीवन की सारी उपलब्धियां प्राप्त की है, उसका यूँ फेल होना गाँधी को तोड़ रहा है। भूल गाँधी की ही है, बिच्छू के मंत्र से साँप का बिष नहीं उतरता। अहिंसा विद्वानों के समक्ष लाभकारी है, बर्बरों के समक्ष नहीं। अहिंसा के बल पर अंग्रेजों को तो रोका जा सकता है, पर तैमूर, गजनवी, गोरी, बाबर, औरंगजेब को आराध्य मानने वालों को नहीं। गाँधी पूरी तरह प्रभावहीन हो चुके हैं और वे अब उटपटांग निर्णय ले रहे हैं।
नेहरू एडविना माउंटबेटन की जुल्फों में उलझे हैं, और पटेल को शीघ्र ही स्वतन्त्रता चाहिए। पटेल का भी दोष नहीं, जीवन भर किसी लक्ष्य के पीछे दौड़ते-दौड़ते बूढ़ा हो चुका व्यक्ति अब और कितनी प्रतीक्षा करे?
विभाजन तय हो चुका….
जिन्ना भारत विभाजन का सबसे बड़ा अपराधी है। विश्व के सबसे प्राचीन राष्ट्र के विभाजन का अपराधी, एक सभ्यता के विभाजन का दोषी, घृणा की नीव पर जन्म लेने वाले राष्ट्र पाकिस्तान के जन्म का दोषी, लगभग डेढ़ करोड़ हत्याओं का दोषी, कई लाख स्त्रियों के बलात्कार का दोषी…
पर मिला क्या? उसकी बेटी तक उसके पाकिस्तान में नहीं गयी।
क्रमशः….
(अगले अंक में नेहरू)