राजेश श्रीवास्तव
बीते एक सप्ताह से सभी के दिमाग में बिहार का मुजफ्फरनगर और उत्तर प्रदेश के देवरिया संरक्षण गृह चल रहा है। लोग इसके पीछे का सच जानने को बेताब हैं । सभी के दिमाग में कुछ सवाल कौंध रहे हैं मसलन – आखिर कौन हैं जो बेसहारा बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बना रहा था ? गिरिजा त्रिपाठी कैसे बन गयी इतनी रसूखदार ? 2०13 में गोरखपुर के प्रोबेशन अधिकारी के पद पर कैसे गिरिजा अपनी बेटी कंचनलता को काबिज करा सकी थीं ?
जब देवरिया शेल्टर होम सीज था तो पुलिस किसके इशारे पर बेसहारा लड़कियों को लेकर वहां जाती थी ? कौन सी गाड़ियां थीं जो श्ोल्टर होम से लड़कियों को लेकर शाम को जाती थी और सुबह 4 बजे छोड़ने आती थी ? हर सप्ताह के आखिर में क्यों कांपने लगती थीं इन लड़कियों की रूहें कि आज वह कहां ले जायी जाएंगी ? सब कुछ हुआ पर कोई यह क्यों नहीं पूछ रहा कि आखिर वह कौन थे जो लड़कियां ले जाते थे? यह महज कुछ सवाल ही नहीं है बल्कि अगर इनकी बिंदुवार पड़ताल की जाए तो कई सफेदपोश रसूखदारों के दामन दागदार साबित होंगे।
लेकिन यह तब होगा जब जांच को बिना प्रभावित हुए सही दिशा में ले जाया जाए और जांच वास्तव में जांच हो। खैर यह देखना अभी बाकी है कि जांच का परिणाम निकलता है या फिर महज कुछ लोगों के तबादले, निलंबन के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जायेगा। देवरिया शेल्टर होम की पड़ताल करें तो साफ होता है कि इस शेल्टर होम ने भक्षण गृह का रूप एक दिन में नहीं ले लिया। यह तो कई सालों के प्रभाव का नतीजा है। वह तो भला हो एक इंस्पेक्टर का जिसने प्राथमिकी दर्ज करने का साहस करने का जिससे यह सच सामने आ सका। गिरिजा जाने कितने भक्षक हमारे प्रदेश के कई शेल्टर होम में काबिज हैं।
यह पहला मामला नहीं है यहां बड़े स्तर पर जरूर दिखता है। गिरिजा को भक्षक बनाने के पीछे की कहानी की पड़ताल करें तो कई ओहदेदारों का नाम सामने आता है। पूर्व पुलिस अधीक्षक जो आजकल इसी मंडल के एक अहमद पद पर काबिज हैं। एक स्थानीय जनप्रतिनिधि का नाम भी इस मामले में सामने आ रहा है। यही नहीं एक आईएएस अधिकारी की संलिप्तता भी इसकी बानगी कह रहा है कि उनका भी कम योगदान नहीं है इस शेल्टर होम की दर्दनाक और भयावह कहानी के पीछे। लेकिन अभी यह सब साफ होना बाकी है। जांच होगी और उम्मीद की जा रही है कि सच सामने आयेगा।
जांच की जद में अकेले देवरिया नहीं बल्कि प्रतापगढ़, भोपाल भी है जहां गूंगी-बहरी लड़कियों को हवस का शिकार बनाया गया है। लेकिन जांच करने का विषय यह भी है कि आखिर इस सिस्टम का दोषी कौन है। सुप्रीम कोर्ट ने जब इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया तो उसने एक टिप्पणी की थी जिसमे उसने कहा था कि पुलिस देखें कि बालिकाओं को सकारात्मक सजा मिले। जब पुलिस बालिकाओं की बरामदगी करती है तो उसका फर्ज है कि यह भी देखें कि वह बालिकाओं को जहां सौंप रही है क्या वहां वह सुरक्षित हैं। सुप्रीम कोर्ट को यह भी कहना पड़ा कि देश के 3००० श्ोल्टर होम में दुष्कर्म होता है तो क्या सरकार जिम्मेदार नहीं है।
दिलचस्प यह है कि इनमें से अधिकतर का तो आडिट तक नहीं होता। नाम न छापने की शर्त पर इसी से जुड़े विभाग के एक सेवानिवृत्त अधिकारी कहते हैं कि शेल्टर होम के सहारे कई लोगों ने बड़ी-बड़ी कोठियां खड़ी कर ली हैं। यहां की लड़कियां आसानी से सुलभ हो जाती हैं। कोई उनके लिए बोलने वाला भी नहीं है। वह दुखी होकर यहां तक कहते हैं कि इससे तो अच्छा हो कि पुलिस उन्हें पकड़े ही नहीं।
कम से कम वह इस घिनौनी और अंधी दुनिया से तो बची रहेंगी। हमारा कानून ऐसा है कि गिरफ्तारी के बाद महिलाओं व बच्चियों को सड़ने के लिए श्ोल्टर होम भ्ोज दिया जाता है। जहां के बाद न उनको कोई पूछता है न उनका हाल। इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह ऐसा पुख्ता कानून बनाये कि लड़कियों को भक्षण गृह की बजाय किसी ऐसी जगह भ्ोजा जा सके जहां उनका वास्तविक सरंक्षण हो सके।