नई दिल्ली। यह वीरगाथा 1947 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध की है. बीते सात महीनों से भारतीय सेना और पाकिस्तान के बीच घमासान युद्ध जारी था. अभी तक पाकिस्तानी सेना का तिथवाल सेक्टर की चोटियों पर कब्जा बरकरार था. दुश्मन सेना की पोजीशन ऐसी थी कि वह हमले के सभी संभावित रास्तों पर न केवल अपनी निगाह रख सकता था, बल्कि भारतीय सेना पर लाइट मशीनगनों से हमला भी कर सकता था.
अपनी पोजीशन का फायदा उठाते हुए पाकिस्तानी सेना लगातार भारतीय सैनिकों को किशन गंगा नदी की फारवर्ड पोस्ट से हटने के लिए मजबूर कर रही थी. ऐसे में चोटी पर मौजूद पाकिस्तानी सेना को खात्मा अब जरूरी हो गया था. दुश्मन सेना की सीधी नजर होने के चलते, भारतीय सेना के लिए इन चोटियों पर हमला करना इतना आसान नहीं था, भौगोलिक परिस्थितियों ने भारतीय सेना की चुनौती को जटिल बना दिया था.
ऐसे में चोटियों पर मौजूद पाकिस्तानी सेना के खात्मे के लिए भारतीय सेना ने अपनी रणनीति बनानी शुरू की. रणनीति के तहत 163 ब्रिगेड को तिथवाल रिज पर तैनात कर दिया गया. साथ ही, 163 ब्रिगेड के जवानों की मदद के लिए उरी से 6 राजपूताना राइफल्स को तिथवाल के लिए रवाना कर दिया गया. तिथवाल रिज पर पहुंचने के बाद 6 राजपूताना राइफल्स की डेल्टा कंपनी को दुश्मन सेना की गिरफ्त में मौजूद 2 चोटियों को मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
एक तरफ दुश्मन सेना की गोली तो दूसरी तरफ थी गहरी खाई
18 जुलाई 1948 की सुबह राजपूताना राइफल्स की डी कंपनी दुश्मन सेना पर चढ़ाई करने के लिए निकल पड़ी. इस डी कंपनी की अगुवाई हवलदार मेजर पीरू सिंह कर रहे थे. पीरू सिंह और उनके साथियों के साहस की परीक्षा हर कदम पर दुश्मन के ग्रेनेड और गोलियां ले रही थीं. आलम यह था कि भारतीय सेना को महज एक मीटर संकरे रास्ते से गुजर कर दुश्मन की तरफ बढ़ना था.
एक मीटर चौड़े इस रास्ते पर एक तरफ दुश्मन पहले से लाइट मशीन गन के साथ पोजीशन लेकर बैठा था, वहीं दूसरी तरफ हजारों फीट गहरी खाई थी. इससे बड़ी चुनौती रास्ते में दुश्मन सेना द्वारा बनाए गए खुफिया बंकर थे. इन बंकरों में पहले से पाकिस्तान सेना के जवान मौजूद थे. इन सभी चुनौतियों के बावजूद हवलदार मेजर पीरू सिंह और उनके साथी जवान अभूतपूर्व मनोबल के साथ दुश्मन की तरफ लगातार बढ़ रहे थे.
आधे घंटे में हुई 51 शहादत
भारतीय सेना की टुकड़ी को अपनी तरफ आता देख चोटियों पर बैठे पाकिस्तानी सेना ने हवलदार मेजर पीरू सिंह की टीम पर गोलियों और ग्रेनेड की बरसात शुरू कर दी. चुनौती भरे रास्ते पर लगातार हो रही गोलियों ने महज आधे घंटे में भारतीय सेना के करीब 51 सैनिकों की शहादत ले ली. हवलदार मेजर पीरू सिंह ने देखा कि उनकी कंपनी के आधे से ज्यादा जवान गोली लगने से खाई में गिर चुके हैं.
साथियों की शहादत के बावजूद हवलदार मेजर पीरू सिंह की हिम्मत अभी भी बुलंदियों पर थी. उन्होंने एक बार फिर बाकी बचे जवानों को संगठित किया और उन्हें प्रोत्साहित कर उन चौकियों को निशाना बनाने के लिए कहा, जहां से दुश्मन लाइट मशीनगन से लगातार फायर कर रहा था. भारतीय सेना के सैनिकों की हिम्मत और जज्बे को देख पाकिस्तानी सेना भी अचरज में थी. उन्होंने अब सीधे ग्रेनेड से हमला करना शुरू कर दिया.
ग्रेनेड हमले में छलनी हुआ हवलदार मेजर पीरू सिंह का शरीर
हवलदार मेजर पीरू सिंह ने अपने साथियों के साथ दुश्मन सेना की लाइट मशीन गन ट्रुप की तरफ दौड़ लगा दी. वहीं दुश्मन सेना लगातार उन पर ग्रेनेड से हमला किए जा रही थी. इन ग्रेनेड हमलों की वजह से हवलदार मेजर पीरू सिंह के कपड़े फट चुके थे, ग्रेनेड के छर्रों से शरीर पूरी तरह से छलनी हो चुका था. बावजूद इसके हवलदार मेजर पीरू सिंह दुश्मन सेना की तरफ लगातार बढ़ते जा रहे थे.
दुश्मन सेना की लाइट मशीन गन ट्रुप के करीब पहुंचते ही उन्होंने एक जोरदार छलांग लगाई और एक झटके में अपनी बैनेट से दो पाकिस्तानी जवानों को ढेर कर दिया. दो दुश्मन को ढेर करने के बाद पीरू सिंह पीछे मुड़े तो देखा कि उनके सभी साथी या तो शहीद हो चुके है या फिर गोलियों से छलनी होकर निढाल पड़े हैं. उन्हें अहसास हो चुका था कि अब उन्हें दुश्मन से अकेले ही मोर्चा लेना है. लिहाजा, उन्होंने अपनी योजना बदली और हैंड ग्रेनेड लेकर पाकिस्तानी सेना की दूसरी चौकी की तरफ दौड़ पड़े.
चेहरे पर ग्रेनेड फटने के बावजूद दुश्मन को दी मात
हवलदार मेजर पीरू सिंह ने अपना रुख पाकिस्तान सेना की लाइट मशीन गन ट्रुप की दूसरी यूनिट की तरफ कर दिया था. तभी उनके चेहरे पर एक ग्रेनेड आकर फट गया. क्षण भर के लिए पीरू सिंह की आंख के आगे अंधेरा छा गया. अभी तक उनके बदन के हर हिस्से से खून टपक रहा था, लेकिन अब पूरा चेहरा रक्तरंजित हो गया था. फिर भी, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह ग्रेनेड लेकर दूसरे बंकर की तरफ लपके. चीते की फुर्ती से उन्होंने छलांग लगाकर दुश्मन सेना के दूसरे बंकर में ग्रेनेड डाल दिया. हवलदार मेजर पीरू सिंह के इस हमले में बंकर में मौजूद सभी दुश्मन सैनिक मारे गए.
अब, हवलदार मेजर पीरू सिंह ने अपना रुख तीसरे बंकर की तरफ किया. यह बंकर पहाड़ी के बिल्कुल किनारे पर बना था. वे दुश्मनों के आखिरी बंकर के पास पहुंचे ही थी, तभी एक गोली सीधे उनके सिर पर आकर लगी. गोली लगने से उनका शरीर असंतुलित हुआ और वह हजारों फीट गहरी खाई की तरफ जाने लगे. लेकिन इसी बीच थोड़ा संभलकर उन्होंने एक ग्रेनेड निकाला और उसे दुश्मन बंकर में फेंक दिया. हवलदार मेजर पीरू सिंह ने देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान देने से पहले दुश्मन सेना के आखिरी के बचे हुए सैनिकों को भी मार गिराया.
कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह के अभूतपूर्व साहस और बलिदान को नमन करते हुए उन्हें वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. अविवाहित पीरू सिंह की ओर से यह सम्मान उनकी मां श्रीमती तारावती ने राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के हाथों ग्रहण किया.
प्रधानमंत्री नेहरू ने लिखा शहीद पीरू सिंह की मां को खत
कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह के अभूतपूर्व साहस और अद्भुत युद्ध कौशल ने सभी को हतप्रभ कर दिया था. कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह की इस बहादुरी के कायल तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी हुए. प्रधानमंत्री नेहरू ने शहीद हवलदार मेजर पीरू सिंह की 75 वर्षीय मां को खत लिखा,
“देश कम्पनी हवलदार मेजर पीरू सिंह का मातृभूमि की सेवा में किए गए उनके बलिदान के प्रति कृतज्ञ है. उन्होंने अपनी अभूतपूर्व बहादुरी और बलिदान से सेना के साथी जवानों के लिए अद्भुत उदाहरण पेश किया है.”