अनूप कुमार मिश्र
नई दिल्ली। क्या आपको पता है कि युद्ध में बहादुरी के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र’ का डिजाइन एक विदेशी महिला ने तैयार किया था. इस विदेशी महिला का नाम इवा योन्ने लिण्डा था. स्विटजरलैंड मूल की इवा ने भारतीय सैन्य अधिकारी से प्रेम विवाह किया था. इस विवाह के बाद उन्होंने हिंदू धर्म ग्रहण किया और उनका नाम इवा योन्ने लिण्डा से बदलकर सावित्री बाई खानोलकर रख दिया गया. सावित्री बाई खानोलकर ने परमवीर चक्र के साथ बहादुरी अथवा शांति के लिए दिए जाने वाले अशोक चक्र, महावीर चक्र, कीर्ति चक्र, वीर चक्र और शौर्य चक्र को भी डिजाइन किया है. इसके अलावा, सावित्री बाई ने जनरल सर्विस मेडल 1947 डिजाइन किया था, इस पदक को 1965 तक ही प्रदान किया गया था. आइए आज आपको शादी से पहले की इवा योन्ने लिण्डा माडे-डे-मारोज़ और शादी के बाद की सावित्री बाई खानोलकर की पूरी कहानी बताते हैं..
भारतीय संस्कृति पर आधारित किताबें पढ़कर हुआ भारत के प्रति आकर्षण
इवा (सावित्री बाई खानोलकर) का जन्म 20 जुलाई 1913 में स्विटजरलैंड के न्यूचैटेल शहर में हुआ था. इवा के पिता आंद्रे डी मैडे मूल रूप से हंगरी और मां मार्टे हेंट्जेल रूसी मूल की नागरिक थी. इवा के पिता जिनेवा विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर होने के साथ लीग ऑफ़ नेशन्स में पुस्तकालयाध्यक्ष भी थे. वहीं उनकी मां मार्टे हेंट्जेल इंस्टीट्यूट जीन-जैक्स रूसौ में पढ़ाती थीं. इवा के जन्म के साथ ही उनकी मां का निधन हो गया था. जिसके बाद, इवा का पालन-पोषण उनके पिता ने किया.
इवा ने अपनी पढ़ाई रिवियेरा के एक स्कूल से की. मां की मृत्यु के बाद अकेली पड़ी इवा अक्सर स्कूल के बाद अपने पिता की लाइब्रेरी में चली जाती थीं. जहां पर उनका ज्यादातर समय किताबों के बीच व्यतीत होता था. इसी दौरान, इवा को लाइब्रेरी में भारत की संस्कृति पर आधारित बहुत सी किताबें मिली. भारत के पौराणिक इतिहास और संस्कृति पर आधारित पुस्तक पढ़ने के बाद इवा का मन भारतीयता की तरफ आकर्षित होने लगा था. इसी आकर्षण का असर था कि वह लाइब्रेरी में मौजूद भारतीय संस्कृति से जुड़ी सभी किताबें पढ़ चुकीं थी.
रिवियेरा के समुद्र तट पर हुई कैप्टन विक्रम खानोलकर से मुलाकात
इवा एक दिन अपने पिता के साथ रिवियेरा के समुद्रतट पर टहल रही थी. इसी दौरान, उनकी मुलाकात ब्रिटेन के सेन्डहर्स्ट मिलिटरी कॉलेज में पढ़ने वाले भारतीय युवकों के एक समूह से हुई. भारत के प्रति आकर्षण के चलते कुछ ही पलों में इवा भारतीय युवकों के साथ हिल-मिल गईं. भारतीय युवकों के इस समूह में विक्रम खानोलकर भी थे. इस दिन, इवा ने विक्रम खानोलकर से भारतीय संस्कृति के बारे में लंबी चर्चा की. इस मुलाकात के बाद विक्रम खानोलकर अपना पता इवा को देकर सैंडहर्स्ट वापस चले गए.
भारतीय संस्कृति के प्रति आकर्षित इवा अब अक्सर विक्रम खानोलकर से पत्र लिखकर संवाद करने लगी. पत्रों के जरिए होने वाला यह संवाद कुछ समय बाद गहरी दोस्ती में बदल गया और दोनों के मन में एक दूसरे के लिए आकर्षण बढ़ने लगा. इसी बीच, विक्रम खानोलकर की पढ़ाई पूरी हुई और वह भारत लौट आए. भारत लौटने के बाद विक्रम खानोलकर ने भारतीय सेना की 5/11सिख बटालियन को ज्वाइन किया. बतौर सैन्य अधिकारी विक्रम खानोलकर की पहली पोस्टिंग औरंगाबाद में हुई.
कैप्टन विक्रम खानोलकर से शादी के बाद इवा हो गई सावित्री बाई
इवा और विक्रम खानोलकर के बीच पत्राचार अभी भी जारी था. इवा ने अब विक्रम खानोलकर से शादी कर पूरी तरह से भारतीय होने का मन पक्का कर लिया था. यही इरादा लेकर एक दिन इवा भारत आ गई और उन्होंने अपना निर्णय विक्रम खानोलकर को बता दिया. विक्रम खानोलकर इस रिश्ते के लिए तैयार थे, लेकिन मराठी संस्कृति को मानने वाले उनके परिजनों ने इस रिश्ते को लेकर अपनी सहमति नहीं दी. थोड़ी मान-मनौव्ल के बाद आखिरकार विक्रम खानोलकर के परिजन मान गए.
1932 में इवा और विक्रम खानोलकर की मराठी रीति रिवाज के साथ शादी हो गई. शादी के बाद इवा ने हिंदू धर्म ग्रहण कर लिया और उनका नाम इवा से बदलकर सावित्री बाई खानोलकर रख दिया गया. इवा ने अपने नाम के साथ अपने तौर तरीके, पहनावा और खान-पान को भी पूरी तरह से भारतीय कर लिया था. उन्होंने महाराष्ट्र की संस्कृति से जुड़ी नौ गज की साड़ी पहनना शुरू कर दी थी. उनका भोजन पूरी तरह से शाकाहारी हो गया था. इतना ही नहीं, महज एक से दो वर्ष के अंतराल में सावित्री बाई शुद्ध मराठी और हिन्दी भाषा बोलने लगीं थीं.
@Military_Indian 4 generations: Savitribai Khanolkar, her daughter, grandson & his wife, & great granddaughter (me!) pic.twitter.com/O0Ijq80v2J
— N* (@Nayantaara_S) July 7, 2014
पटना में सावित्री बाई ने लिया वेदों और उपनिषद का ज्ञान
अब कैप्टन विक्रम की पदोन्नति मेजर के तौर पर हो चुकी थी. पदोन्नति के साथ उनका तबादला पटना हो गया. पटना पहुंचने के बाद सावित्री बाई ने पटना विश्वविद्यालय से संस्कृत नाटक, वेद, उपनिषद और हिन्दू धर्म का अध्ययन किया. इन विषयों पर पारांगत हो चुकी सावित्री बाई ने अब स्वामी रामकृष्ण मिशन में प्रवचन देना भी शुरू कर दिया था. अपने इस अध्यात्मिक ज्ञान के साथ, सावित्री बाई ने अपनी चित्रकला और स्केचिंग की कला को अच्छी तरह से निखार लिया था. पटना प्रवास के दौरान उन्होंने भारत के पौराणिक प्रसंगों पर कई चित्र भी बनाए.
भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और चित्रकला में खुद को पारांगत बनाने के बावजूद सावित्री बाई को अपनी जिंदगी में एक कमी खल रही थी. यह कमी थी संगीत और नृत्य की. अपनी इस कमी को दूर करने के लिए उन्होंने पंडित रवि शंकर के बड़े भाई पंडित उदय शंकर की शिष्यता ग्रहण कर ली. सावित्री बाई ने कुछ समय में शास्त्रीय नृत्य की विभिन्न विधाओं में खुद को पारंगत बना लिया था. भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, चित्रकला और नृत्य में पारांगत होने के बाद सावित्री देवी एक भारतीय से अधिक भारतीय बन चुकी थीं. सभी विधाओं में पारांगत होने के बाद उन्होंने सेंट्स ऑफ़ महाराष्ट्र और संस्कृत डिक्शनरी ऑफ़ नेम्स नामक दो पुस्तकें भी लिखी थीं.
मेजर जनरल अट्टल ने दी पदकों के डिजाइन करने की तैयारी
1947 में हुए भारत-पाक युद्ध में अदम्य साहस और अभूतपूर्व युद्ध कौशल दिखाने वाले वीरों को सम्मानित करने के लिए भारतीय सेना नए पदक तैयार करने पर काम कर रही थी. पदक तैयार करने की जिम्मेदारी मेजर जनरल हीरा लाल अट्टल को दी गई थी. अब तक मेजर जनरल अट्टल ने पदकों के नाम पसन्द कर लिये थे. इन पदकों को परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र का नाम दिया गया था. इसी दौरान, मेजर जनरल अट्टल की मुलाकात सावित्री बाई से हुई.
इस मुलाकात के दौरान सावित्री बाई की भारतीय संस्कृति पर समझ, पौराणिक प्रसंग और अध्यात्मिक ज्ञान ने मेजर जनरल अट्टल को खासा प्रभावित किया था. सावित्री बाई की चित्रकला देखने के बाद मेजर जनरल अट्टल ने मन ही मन ठान लिया था कि वह पदक की डिजाइन सावित्री बाई से ही तैयार कराएंगे. एक दिन मेजर जनरल अट्टल ने यह प्रस्ताव सावित्री बाई के समक्ष रख दिया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. सावित्री बाई ने कुछ दिनों की मेहनत के बाद सभी पदों का डिजाइन तैयार कर मेजर जनरल अट्टल को भेज दिया.
ऐसा तैयार हुआ परमवीर चक्र का डिजाइन:
परमवीर चक्र का मूल स्वरूप के तौर पर 3.5 सेमी व्यास वाले कांस्य धातु की गोलकार कृति तैयार की गई. जिसमें सावित्री बाई ने भारत की आदिकाल से अब तक की वीरता, त्याग और शांति के सूचक को परमवीर चक्र में शामिल किया था. इसमें इंद्र के वज्र को दर्शाकर महर्षि दधीचि के त्याग को दर्शाया गया है. परमवीर चक्र में चारों तरफ वज्र के चार चिह्न बनाए गए हैं. पदक के बीच में अशोक की लाट से लिए गए राष्ट्र चिह्न चक्र को जगह दी गई है. पदक के दूसरी ओर कमल का चिह्न है, जिसमें हिंदी और अंग्रेजी में परमवीर चक्र लिखा गया है.
मिशन को किया अपना जीवन समर्पित
1947 में हुए भारत-पाक युद्ध के बाद सावित्री बाई ने अपना जीवन युद्ध में विस्थापित सैनिकों की सेवा में समर्पित कर दिया. 1952 में मेजर जनरल विक्रम खानोलकर के देहांत हो जाने के बाद सावित्री बाई ने अपना जीवन अध्यात्म की तरफ़ मोड़ लिया और दार्जिलिंग के राम कृष्ण मिशन में चली गयीं. अपने जीवन का अन्तिम समय उन्होंने अपनी पुत्री मृणालिनी के साथ गुजारे. 26 नवम्बर 1990 को उनका देहांत हो गया.