ललित राय
नई दिल्ली। बिहार का मुजफ्फरपुर और उत्तर प्रदेश का देवरिया इन दिनों चर्चा में हैं। शेल्टर होम की चारदिवारी में मासूम बेसहारा लड़कियों की अस्मत के साथ न सिर्फ खिलवाड़ होता था, बल्कि विरोध करने पर आवाजा दबा दी जाती थी। आवाज दबाने वालों की पहुंत इतनी ऊपर तक होती थी कि बेसहारों की आवाज को सहारा नहीं मिलता था। इन दोनों मामलों में सीबीआई जांच कर रही है। लेकिन शेल्टर होम की इन खबरों के बाद कालचक्र एक ऐसी घटना की तरफ मुड़ता है जहां सफेद कपड़े दागदार हुए, एक लड़की को अपनी जान देनी पड़ी, सीबीआई जांच हुई और नतीजा ये निकला कि वो लड़की अपनी मौत के लिए खुद गुनहगार साबित हुई। उसकी सिसकियां,उसका दर्द सिर्फ उन लोगों के जेहन में होंगे जो उससे जुड़े होंगे। लेकिन खबरों की दुनिया और खबरनवीसों के लिए वो किसी केस स्टडी की तरह है।
एक थी बॉबी
जमाना आगे निकल चुका है, चेहरे बदल चुके हैं। अगर कुछ नहीं बदला है तो वो नेताओं या रसूखदारों के सफेद कपडे़ नहीं बदले हैं। उनकी दिमाग में गहराई तक बैठ चुकी काली सोच नहीं बदली है। जी हां हम बात कर रहे हैं 1983 के उस घटना के बारे में जिसकी वजह से बिहार की सियासत में तूफान आ गया था। कांग्रेस की सरकार और तत्कालीन सीएम जगन्नाथ मिश्रा की सरकार पर खतरा मंडराने लगा था। उस घटना के केंद्र में एक सुंदर सी लड़की निशा त्रिवेदी थी जिसे बॉबी के नाम से भी जाना जाता था।
बिहार विधानसभा में निशा त्रिवेदी यानि बॉबी टाइपिस्ट की नौकरी करती थी। बॉबी को बिहार विधानसभा की तत्कालीन अध्यक्ष राजेश्वरी प्रसाद ने गोद लिया। बताया जाता है कि बॉबी की सुंदरता पर कई लोग फिदा थे। उसकी अदा पर फिदा लोग उसे अपनी जीवनसंगिनी के तौर पर देखते थे। लेकिन उसके साथ जो कुछ होने वाला था उससे वो अंजान थी। 1983 में सात मई को उसकी जिंदगी का सूरज हमेशा हमेशा के लिये अस्त हो गया। अब वो इस जीवन-मरण के बंधन से आजाद थी। लेकिन उसकी मौत के बाद बिहार की राजनीति में खलबली मच गई।
हत्या और आत्महत्या में उलझ गया सच
बिहार के अखबारों में ये छपने लगा कि बॉबी ने आत्महत्या नहीं की थी बल्कि उसे मारा गया था। इस तरह की खबरों के बाद पटना के तत्कालीन एसएसपी किशोर कुणाल को कुछ खास जानकारी हाथ लगी। बॉबी को जिस जगह दफनाया गया था। उसकी खुदाई कराकर शव को निकाला गया। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया और जो जानकारी सामने आई उसके मुताबिक बॉबी की हत्या की गई थी। पुलिस जांच आगे बढ़ी और दो लोगों की गिरफ्तारी हुई। जिसमें बड़े बड़े नाम सामने आने लगे।
बिहार की सियासत में तूफान
तत्कालीन कांग्रेस के सीएम जगन्नाथ मिश्रा पर जबरदस्त दबाव बनाया गया। करीब 100 विधायकों ने घेरेबंदी करने के साथ ही सरकार को गिराने की धमकी तक दे दी। इसके साथ ही सीबीआई से जांच कराने का दबाव बनाया गया और इन सबके बीच पटना के एसएसपी किशोर कुणाल का ट्रांसफर कर दिया गया।
जब सीबीआई के हवाले हुई जांच
सीबीआई जांच जब शुरू हुई तो शुरू से ही ये आरोप लगने लगे कि इस मामले में लीपापोती की जा रही है। मसलन बॉबी की मौत में दो तरह की थ्यौरी सामने आने लगी। पहली ये कि बॉबी ने मेलाथियॉन नाम के कीटनाशक को पी लिया है। दूसरी तरफ कि उसने सेंसिबल टेबलेट खाई थी। सेंसिबल टेबलेट खाने की वजह से कब्जियत होती है। लेकिन सवाल उठ रहा था कि क्या इस टेबलेट की खाने की वजह से किसी की मौत हो सकती है। बॉबी के हत्या या आत्महत्या में इस तरह से कई ऐसी जानकारियां सामने आने लगी जिसके बाद पूरा मामला उलझ गया।
सीबीआई अपना काम तथाकथित तल्लीनता के साथ कर रही थी। बताया जाता है कि सीबीआई के अधिकारियों या कर्मचारियों ने कभी घटनास्थल पर जाने की जहमत तक नहीं उठाई। दिल्ली में बैठे बैठे ही अपनी दूरदृष्टि से जान लिया कि निशा त्रिवेदी या बॉबी अपनी जिंदगी खत्म करने का मन पहले ही बना चुकी थी। ऐसा लग रहा था कि जांच से पहले ही नतीजों के बारे में मन बना लिया गया था कि फैसला क्या देना है। आखिर में वो घड़ी आई जब सीबीआई की तरफ से उजले कपड़े वालों को क्लीन चिट दे दी गई।
न जानें कितनी और बॉबी
बॉबी तो अब इस दुनिया में नहीं है जो प्रतिवाद कर सके या अपना पक्ष रख सके। लेकिन जब देवरिया, मुजफ्फरपुर या उस तरह के मामले सामने आते हैं तो कोई ब्रजेश ठाकुर, कोई ममता त्रिपाठी या कोई और उजले कपड़ों में हंसते मुस्कुराते ये बयान देता है कि वो तो बलि का बकरा बनाया गया है। भारत की जांच एजेंसी पर भरोसा है,वो निष्पक्ष जांच के जरिए हकीकत सामने लाएगी। लेकिन कोई बॉबी कब्र में तो कोई और पीड़िता अपनी नसीब पर आंसू बहा रही होगी कि आखिर वो ही क्यों उन नापाक मुस्कुराहट की शिकार बन गई।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)