नई दिल्ली। ‘एक देश एक चुनाव’ के तहत लोकसभा और विधानसभा चुनाव को एक साथ कराने में भले ही मोदी सरकार और चुनाव आयोग के सामने संवैधानिक दिक्कतें हों, लेकिन बीजेपी सूत्रों की माने तो 2019 में लोकसभा के साथ एक दर्जन राज्यों के विधानसभा चुनाव कराकर ‘एक देश एक चुनाव’ की दिशा में एक बड़ा उदाहरण पेश कर सकती है. बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक इसके लिए किसी तरह के संविधान संशोधन या चुनावी नियमों में कोई बड़ा संशोधन करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी.
आज ‘एक देश एक चुनाव’ को लेकर विधि आयोग के चैयरमैन बीएस चौहान ने देश की दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के प्रतिनिधि मंडलों से मुलाक़ात कर एक देश एक चुनाव पर उनकी पार्टी राय जानने के लिए बुलाया था. इससे पहले पिछले महीने कई क्षेत्रीय पार्टियों को ‘एक देश एक चुनाव’ पर राय जानने के लिए बुलाया गया था.
सूत्रों के अनुसार चूंकि चुनाव आयोग और अधिकांश राजनीतिक पार्टियां ‘एक देश एक चुनाव’ के फ़ॉर्मूले पर राज़ी हैं. लेकिन सभी दलों की रज़ामंदी के बाद भी संविधान में संशोधन करना पड़ेगा. इसके लिए संसद के अगले शीतक़ालीन सत्र तक इंतज़ार करना पड़ सकता है. इसके लिए बीजेपी के रणनीतिकार एक फ़ॉर्मूले पर काम कर रहे हैं जिसके अनुसार लोकसभा चुनावों के साथ ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव होते ही हैं, इसमें कुछ अन्य बीजेपी शासित राज्यों को भी शामिल किया जा सकता है.
लोकसभा चुनावों के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड के विधानसभा चुनाव अक्टूबर 2019 में होने हैं. इन राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं और वहां बीजेपी पहले चुनाव करा सकती हैं. जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन है और वहां भी अगले साल चुनाव कराने में ज़्यादा दिक्कत नहीं है.
राजी है चुनाव आयोग
साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इस साल अक्टूबर और नवम्बर में जिन चार राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम के चुनाव होने हैं. उनमें कुछ की विधानसभा का कार्यकाल की अवधि फरवरी 2019 तक है. ऐसे में इन चार राज्यों में दो से तीन महीनो के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है.
चुनाव आयोग पहले कह चुका है कि आयोग लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए तैयार हैं. बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव को भी एक साथ कराने के सम्भावनाओं को अभी से तलाशना शुरू कर दिया है.
अगर सब कुछ ठीक रहा तो इन 11 राज्यों की सूची में बिहार भी 12वें राज्य के रूप में शामिल हो सकता है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी ने पहले ही ‘एक देश एक चुनाव’ के फ़ॉर्मूले पर अपनी सहमति दे दी है.
लोकसभा चुनाव के साथ अपने तीन शासित राज्यों को समय से पहले चुनाव में ले जाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह को एक बड़ा रिस्क लेना पड़ेगा. इस रिस्क में एक छोटी सी ग़लती के कारण बीजेपी को बड़ा नुक़सान उठाना पड़ सकता है. अब देखना ये है कि बीजेपी नेतृत्व लोकसभा चुनाव के साथ 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव साथ कराने जैसा बड़ा रिस्क लेने का जोखिम उठाएगा या फिर जैसा चल रहा हैं उसको वैसे ही चलने देते हुए अपनी दूसरी चुनावी रणनीतियों को अंजाम देकर 2019 में जीत के इरादे के साथ उतरने को तैयार है.