अनूप कुमार मिश्र
नई दिल्ली। याद करो कुर्बानी की 10वीं कड़ी में भारतीय सेना के जांबाज मेजर रामास्वामी परमेश्वरन की वीर गाथा बताने जा रहे हैं. शांतिदूत के तौर पर श्रीलंका में तैनात मेजर रामास्वामी परमेश्वरन 25 नवंबर 1987 को आतंकियों से सीधी मुठभेड़ के दौरान शहीद हुए थे. उनकी इस शहादत को नमम करते हुए भारतीय सेना के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. आइए जानते हैं मेजर रामास्वामी परमेश्वरन की वीरता से जुड़ी पूरी कहानी …
मेजर रामास्वामी परमेश्वरन का जन्म 13 सितम्बर 1946 को बम्बई में हुआ था. उनके सैन्य जीवन की शुरुआत 16 जनवरी 1972 को महार रेजिमेंट से हुई. अपने साथियों के बीच ‘पेरी साहब’ के नाम से मशहूर मेजर रामास्वामी परमेश्वरन ने मिजोरम तथा त्रिपुरा में हुए युद्ध के दौरान अपने युद्ध कौशल और अदम्य साहस की अभूतपूर्व परिचय दिया था. एक अनुबंध के तहत भारतीय सेना को शांति स्थापित करने के लिए श्रीलंका भेजने का फैसला हुआ था.
श्रीलंका में कानून व्यवस्था बहाल करने को भेजे गए थे मेजर रामास्वामी
इसी फैसले के तहत शांति सेना के तौर पर 8 महार बटालियन से मेजर रामास्वामी परमेश्वरन भी श्रीलंका पहुंचे थे. मेजर रामास्वामी परमेश्वरन के साथ 91 इंफेंटरी ब्रिगेड तथा 54 इंफेंटरी डिविजन को भी कानून और व्यवस्था कायम करने के लिए श्रीलंका रवाना किया गया था. शांति सेना के तौर पर श्रीलंका में भारतीय सेना द्वारा की जाने वाली कार्रवाई को ‘ऑपरेशन पवन’ का नाम दिया गया था.
30 जुलाई 1987 को श्रीलंका पहुंचने के बाद भारतीय सेना के इस दल को जाफ़ना पेनिनसुला में तैनात किया गया था. जाफना पेनिनसुला में तैनाती के दौरान भारतीय सेना का टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) के साथ कई बार सीधा मुकाबला हुआ. यह घटना 24 नवम्बर 1987 की है. मेजर रामास्वामी को सूचना मिली कि कंतारोताई के एक गांव के एक घर में भारी तादाद में हथियार और गोलाबारूद पहुंचने की सूचना मिली.
भारतीय सेना के दल पर एक घर से शुरू हुई गोलियों की बौछार
इस सूचना की सत्यता परखने के लिए मेजर रामास्वामी ने कैप्टन डीआर शर्मा के नेतृत्व में 20 सैनिकों के एक दल को मौके के लिए रवाना किया. कैप्टन डीआर शर्मा का यह दल जैसे ही गांव के एक मंदिर के पास पहुंचा, लिट्टे के आतंकियों ने एक घर से भारतीय सेना के इस दल पर गोलियों की बौछार कर दी गई. आत्मरक्षा में भारतीय सेना के इस दल को भी गोलियां चलानी पड़ी.
मुठभेड़ के बीच कैप्टन डीआर शर्मा ने मेजर रामास्वामी को सूचना दी कि गांव इस मकान को लिट्टे ने अपनी पनाहगार बना रखा है. इस मकान में मौजूद आतंकियों की संख्या हमारे अनुमान से कहीं अधिक है. जिस समय यह सूचना मिली, उस समय मेजर रामास्वामी उडूविल में थे. 24 नवंबर की रात करीब 8.30 बजे मेजर रामास्वामी अपने दल बल के साथ मौके के लिए रवाना हो गए.
सूरज की पहली किरण के साथ भारतीय सेना ने शुरू किया सर्च ऑपरेशन
करीब पांच घंटा लंबा सफर तय करने के बाद मेजर रामास्वामी अपने दल बल के साथ मुठभेड़ स्थल पर पहुंच गए. जिस समय मेजर रामास्वामी वहां पहुंचे, उस समय मौके पर सन्नाटा पसरा हुआ था. मौके पर पहुंचने के बाद मेजर रामास्वामी ने घर की घेराबंदीपूरी की. घर में किसी तरह की कोई हलचल होता न देख, यह फैसला किया गया कि अगली सुबह सर्च ऑपरेशन शुरू किया जाएगा.
सूरज की पहली किरण के साथ सेना ने अपना सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया. हालांकि इस सर्च ऑपरेशन में सेना के हाथ कुछ नहीं लगा. जिसके बाद सेना ने वापसी का फैसला किया था. भारतीय सेना के जवान गांव से बाहर निकले ही थे, तभी एक मंदिर के बगीचे से आतंकियों ने गोलाबारी शुरू कर दी. इस गोलीबारी में सेना का एक जवान शहीद हो गया और एक जवान गंभीर रूप से जख्मी हो गया. मेजर रामास्वामी ने देखा कि आतंकी नारियल की झाडि़यों के बीच से लगातार गोलीबारी कर रहे हैं.
6 आतंकियों को ढेर कर वीरगति को प्राप्त हो गए मेजर रामास्वामी
मेजर रामास्वामी ने अपनी जान की परवाह किए बगैर आतंकियों की तरफ दौड़ पड़े. इसी दौरान आतंकी की राइफल से निकली एक गोली मेजर रामास्वामी के सीने में आ लगी. गोली लगने के बावजूद मेजर रामास्वामी उस आतंकी की राइफल झीनने में कामयाब रहे और उन्होंने उस आतंकी को वहीं पर मार गिराया. सीने में गोली लगने के चलते के निढाल हो चुके थे, बावजूद इसके, उन्होंने लगातार अपनी टीम का मार्गदर्शन करते हुए आतंकियों से लड़ते रहे.
इस मुठभेड़ के दौरान भारतीय सेना छह आतंकियों को मान गिराने में सफल रही. सेना ने मौके से तीन एके 47 राइफल, दो ग्रेनेड लांचर सहित भारी तादाद में गोलाबारूद बरामद किया. इस मुठभेड़ में मेजर रामास्वामी वीरगति को प्राप्त हो गए. इस युद्ध में अदम्य साहस और अद्भुत वीरता का परिचय देने वाले मेजर रामा स्वामी को वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.