नई दिल्ली। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के बड़े स्तंभ हैं. आने वाले समय में उनके फैसले और काम करने का अंदाज बाकी लोगों के लिए मिसाल के तौर पर रखा जाएगा. वाजपेयी सरकार के समय बीजेपी के संगठन मंत्री रहे के एन गोविंदाचार्य ने खास बातचीत में जी न्यूज डिजिटल को बताया कि वाजपेयी जी कई बार टीम के फैसलों के लिए अपने फैसले को छोड़ देते थे. यह उनके व्यक्तित्व का बड़प्पन था.
गोविंदाचार्य बताते हैं, ‘वे सिर्फ अपनी बात ही प्रभावशाली ढंग से नहीं रखते थे, दूसरे के पक्ष को ठीक ढंग से समझने की उनमें विलक्षण खूबी थी. वे दूसरे का मजाक नहीं उड़ाते, खुद का मजाक बनाते थे. वे दूसरों पर कभी उपहास व्यंग्य नहीं करते, वे दूसरे की कीमत पर राजनैतिक लाभ लेने की नीति से बचते थे. उन्होंने अपने लिए लक्ष्मण रेखाएं बांध रखी थीं.’
दूसरों की राय को महत्व
वाजपेयी की टीम भावना का जिक्र करते हुए गोविंदाचार्य ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी के बारे में कार्यसमिति में लिया गया उनका फैसला.’ मतलब? इस पर गोविंदाचार्य ने एक किस्सा बताया, ‘2002 के गुजरात दंगों के बाद वे राजधर्म वाला बयान दे चुके थे. पार्टी कार्यकारिणी की बैठक में सबको अंदाजा था कि वाजपेयी मोदी को मुख्यमंत्री पद से हटाने की राय रखते हैं. सबका यही अनुमान था. लेकिन जब कार्यसमिति की बैठक हुई और बाकी लोगों ने मोदी को न हटाने की राय दी तो वाजपेयी जी ने पार्टी की बात मान ली और अपनी राय व्यक्त ही नहीं की.’
एक दूसरा उदाहरण बताते हुए गोविंदाचार्य कहते हैं, ‘2004 की बात है. उस समय ‘इंडिया शाइनिंग’ और फील गुड का दौर था. उस समय लोकसभा चुनाव में सब लोग बहुत बड़ी जीत की उम्मीद कर रहे थे. लेकिन अटल बहुत चेताते थे. जनता की नब्ज पर उनकी पकड़ थी, वे प्रचार से प्रभावित नहीं होते थे. बाद में चुनाव के नतीजे आए तो उनका खटका सही साबित हुआ.’
ये दोनों फैसले ऐसे थे जो अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी इच्छा के बगैर पार्टी की बाकी नेताओं की इच्छा से लिए.