लखनऊ। पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी सन् 1957 में बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र से जनसंघ के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे. उस साल जनसंघ ने उन्हें लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर तीन लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ाया था.
लखनऊ में वह चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वे दूसरी लोकसभा में पहुंच गए. वाजपेयी के अगले पांच दशकों के लंबे संसदीय करियर की यह शुरुआत थी.
पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के निधन के बाद यूपी के उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा भावुक हो गए. उनके साथ गुजारे लम्हों को याद करते हुए उन्होंने कहा, “अटलजी की लखनऊ में आखिरी जनसभा हुई थी. जनसभा 2006 में कपूरथला में थी. उसके बाद उन्होंने लखनऊ में कोई जनसभा नहीं की.”
उन्होंने कहा कि अटलजी अपने आप में विराट व्यक्तित्व के थे. आज उनकी तुलना विश्व के किसी से नहीं की जा सकती. लखनऊ में तो होड़ लगती थी कि अटलजी का खास कौन है? इतने बड़े नेता छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी नाम से बुला लेते थे.
अटल जी के करीबी और पूर्व सांसद लालजी टंडन ने भी अटल जी को याद किया. उन्होंने कहा कि अटलजी सबसे अलग थे. उनका व्यक्तित्व पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा. लखनऊ उनके घर जैसा रहा है. वह यहां से कई बार सांसद बने.
टंडन ने कहा कि उनकी पंक्तियां, ‘छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे तन से कोई खड़ा नहीं होता’ उनके व्यक्तित्व की परिभाषित करता है. यह दिखाता है कि उनका हृदय कितना बड़ा था. भावुक होते हुए टंडन ने कहा कि जीवन के हर क्षेत्र के लोग चाहे वह राजनीति हो या धार्मिक, सभी उन्हें आदर देते थे और अटलजी के नाम से बुलाते थे. लखनऊ से उनका गहरा नाता रहा है. अटलजी ने कभी दलगत राजनीति नहीं की.
गौरतलब है कि 1960 में अटलजी ने लालजी टंडन को सभासद बनाने के लिए लखनऊ के चौक क्षेत्र में घर-घर जाकर प्रचार किया था. वाजपेयी ने ऐसा लखनऊ के तीसरे मेयर रहे डॉ. पी.डी. कपूर के कहने पर किया था. उस वक्त अटलजी ने लालजी टंडन का प्रचार कर उनकी जीत सुनिश्चित की थी.
इसके बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से संन्यास ले लिया तो उनकी जगह लखनऊ से 2009 के लोकसभा चुनाव में लालजी टंडन को उम्मीदवार बनाया गया. उस वक्त वाजपेयी जी बीमार थे, हॉस्पिटल में भर्ती थे. एक बार फिर लखनऊ के लोगों ने अटलजी की सीट पर उनके चहेते लालजी टंडन को जीत दिलाई थी.