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ग्वालियर में है अटल बिहारी वाजपेयी का मंदिर

दिनेश गुप्ता

ग्वालियर जिले की छावनी में जन्मे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक माने जाते है. अटल जी ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन मे कई चुनाव लड़े और जीते. उनके नेतृत्व में बीजेपी ने पहली बार अपने बल पर केंद्र में सरकार भी बनाई लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक जीवन की बात की जाए तो उनकी जीत से ज्यादा चर्चा उनकी हार के हुए.

दरअसल अटल बिहारी वाजपेयी 1984 में अपने गृहनगर, ग्वालियर से लोकसभा चुनाव हार गए थे. कांग्रेसी नेता माधवराव सिंधिया ने उन्हें हराया था. हालांकि इस चुनाव के समय हुई कई बातें चर्चा से दूर रहीं जैसे आखिर क्यों अटल बिहारी वाजपेयी ने 1984 का चुनाव ग्वालियर सीट से लड़ा ? आखिर क्यों उन्होंने किसी सुरक्षित सीट से चुनाव नहीं लड़ा? या फिर उन्होंने 2 सीटों से चुनाव लड़ने का फैसला क्यों नही लिया?

बहुत ही कम लोग जानते हैं कि 1984 में अटल जी के पास दो सीटों से चुनाव लड़कर खुद को सुरक्षित करने का मौका था लेकिन फिर भी उन्होंने ग्वालियर से चुनाव लड़ने का निश्चय लिया क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया और उनके बेटे माधवराव सिंधिया के मतभेद सड़क पर आएं.

दरअसल 1984 में बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर से उम्मीदवार बनाया था. अटल जी भी पर्चा दाखिल करने के एक दिन पहले ग्वालियर पहुंच गए. जिसके अगले दिन ही दिन लालकृष्ण आडवाणी भी ग्वालियर पहुंच गए और उन्होंने अटल जी से कहा, ‘आपके दिल्ली से ग्वालियर के लिए रवाना होने के बाद मुझे खबर मिली है कि कांग्रेस जबरदस्ती माधवराव सिंधिया को ग्वालियर से उम्मीदवार बनाना चाह रही है. जिसके बाद मैंने रात को भैरों सिंह जी और बाकी साथियों से सलाह मशविरा किया और भैरों सिंह शेखावत जी ने सलाह दी है कि आप ग्वालियर के साथ ही कोटा सीट से भी नामांकन दाखिल करें. जिससे आप आराम से देशभर में चुनाव प्रचार भी कर पाएंगे.’

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जिसके जवाब में अटल जी ने कहा कि ‘मैंने माधवराव जी को बता दिया है कि में ग्वालियर से चुनाव लड़ने जा रहा हूं और उन्होंने मुझे शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि वह गुना से चुनाव लड़ने जा रहे हैं, जिसके जवाब में आडवाणी ने कहा, ‘राजीव गांधी के जबरदस्ती करने पर उनको ग्वालियर से ही चुनाव लड़ना पड़ेगा.’

लालकृष्ण आडवाणी की बात सुनकर अटलजी ने तुरंत कहा, ‘तब तो मैं ग्वालियर और सिर्फ ग्वालियर से चुनाव लड़ूंगा क्योंकि आपकी सलाह मानकर अगर मैंने कोटा से चुनाव लड़ा और माधवराव सिंधिया ने ग्वालियर से नामांकन दाखिल किया तो फिर राजमाता भी ग्वालियर से चुनाव लड़ने के लिए कहेंगी और अगर ऐसा हुआ तो दोनों के बीच ला मनमुटाव सड़क पर आ जाएगा, जो मैं नही चाहता.’

जिसके बाद मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने राजीव गांधी को सलाह दी कि माधवराव सिंधिया को गुना की जगह ग्वालियर से मैदान में उतारा जाए और एक खास रणनीति के तहत माधवराव सिंधिया को आखिरी दिन पर्चा दाखिल करने के लिए ग्वालियर भेज दिया गया. उस समय इंदिरा गांधी की हत्या के कारण पूरे देश मे कांग्रेस की तरफ एक लहर पैदा हुई और उसके परिणाम स्वरूप अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से चुनाव हार गए.

अटल बिहारी वाजपेयी के निजी जीवन की बात करें तो वह खाने-पीने के काफी शौकीन थे उनकी सबसे पसंदीदा मिठाई ‘बहादुरा के लड्डू’ थे और चिवड़ा उनका पसंदीदा नमकीन था. अटल जी को बहादुरा स्वीट्स की शुद्ध देसी घी की मिठाइयां इतनी पसंद थी कि जब भी कोई परिचित ग्वालियर से उनसे मिलने जाता तो वह उनके लिए बहादुरा के लड्डू जरूर ले जाया करता था. एक अंग्रेजी अखबार ने तो इन लड्डुओं को ‘पासपोर्ट टू पीएम’ तक कि संज्ञा दी दी थी.

अटल जी बचपन मे काफी शरारती थे. उनके बचपन के मित्र मनराखन मिश्रा ने एक इंटरव्यू में बताया कि अटल जी बचपन मे काफी शरारती थे और पैसा की तंगी के बावजूद कई बार दोस्तों को इमरती खिलाने ले जाया करते थे और फिर अपने हिस्से की इमरती खाकर दूर खड़े हो जाया करते थे, जिसके कारण पैसे हमेशा दूसरों को ही देने पड़ते थे.

स्पेशल चिवड़े के शौकीन थे अटल बिहारी वाजपेयी

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ग्वालियर के नमकीन व्यवसायी सुन्नेलाल गुप्ता ने बताया, ‘अटल जी हमारी दुकान पर कई बार स्पेशल चिवड़ा खाने आया करते थे.’ एक बाद का किस्सा सुनते हुए सुन्नेलाल ने बताया, ‘एक बार अटल जी विदेश मंत्री रहते हुए चुनावी सभा संबोधित करने ग्वालियर आए थे. उनके आने की सूचना मिलते ही में चिवड़ा तैयार करने में लग गया. अटल जी की सभा उस दिन काफी देर तक चली और मुझे लगा वह आज दुकान नही आएंगे और मैं दुकान बंद करके छत पर सो गया लेकिन रात को 2 बजे पुलिस की गाड़ियां सायरन बजाते हुए मेरी दुकान के आगे रुक गई और पुलिस के जवान मेरी दुकान का गेट बजाने लग गए. जैसे ही में नीचे आया तो गाड़ियों के बीच से निकलते हुए अटल जी ने पूछा – क्या मेरा चिवड़ा तैयार है?

अटल जी को देखकर मेरे अंदर स्फूर्ति आ गई. मैं झट से भागकर दुकान के अंदर गया और स्पेशल चिवड़ा और मिठाई का पैकेट लेकर आया और उन्हें दे दिया. जिसके बाद अटल जी ने मुझे मूल्य से ज्यादा पैसे दिए.’

पीएम ने बोला तो भी नहीं मिली गुमटी

अटल जी के करीबी लोग बताते है कि वह मुंगौड़ों और बालूशाही के भी काफी शौकीन थे. अफसरशाही के कामकाज के तौर तरीकों का आलम देखिए प्रधानमंत्री के कहने के बाद भी मुंगौड़े बेचकर परिवार पाल रहीं बूढ़ी विधवा को सड़क किनारे एक गुमटी नहीं मिल पाई. बात 2004 की है. तब अटल पीएम थे. दौलतगंज के फुटपाथ पर बैठकर मंगौड़े बेचने वाली रामदेवी चौहान. अपना जन्मदिन मनाने आए अटल जी से वीआईपी सर्किट हाउस में मुलाकात कर श्रीमती चौहान ने उन्हें पुराने दिन याद दिलाए जब अटल जी शहर में रहकर आए दिन मुंगौड़े खाने उनकी दुकान पर जाते थे. वाजपेयी ने पूछा-अम्मा तू अभी जिंदा है. अम्मा ने मुंगौड़े की थैली आगे बढ़ाते हुए सहज अंदाज में कहा कि अब तो आप देश के मुखिया हो, मुझे एक गुमटी तो दिलवा दो. अम्मा की बात सुनकर अटल जी हंसे और पास ही खड़े प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर से एक गुमटी दिलवाने को कहा. गौर ने स्थानीय कलेक्टर और नगर निगम कमिश्नर से गुमटी आवंटित करने को कहा. इसके बाद मामला आया गया हो गया. सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने के बाद दो फरवरी 2007 को श्रीमती चौहान का निधन हो गया. इसके सात साल बाद भी अब उनका लड़का दौलतगंज के फुटपाथ पर ही बैठा मुंगौड़े बना रहा है.

ग्वालियर में है अटल बिहारी वाजपेयी का मंदिर

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बहुत कम ही लोग जानते है कि ग्वालियर में अटल बिहारी वाजपेयी का एक मंदिर भी है. जहां रोज सुबह-शाम आरती भी होती है. हिंदी दिवस और अटल जी के जन्मदिन पर यहां विशेष आरती होती है. इस मंदिर को स्थापित करने वाले विजय सिंह चौहान बताते है, ‘ अटल जी हिंदी माता के सच्चे सपूत हैं और उन्होंने ही सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र संघ जाकर हिंदी में भाषण दिया और इसीलिए उनका मंदिर हिंदी माता के नजदीक बनाया गया है.’

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