गांधी और बच्चन परिवार के याराना का तो इतिहास भी गवाह रहा है । अमिताभ बच्चन और राजीव गांधी का बचपन साथ खेलते-कूदते बीता। दोनों परिवार के रिश्तों के बीच काफी उतार-चढ़ाव भी आए । फिर एक समय ऐसा आया जब दोनों परिवार के संबंधों में विश्वास की गाड़ी पटरी से उतर गई । दोनों परिवार के बीच रिश्ते की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म की कहानी से कम नहीं है । बच्चन और गांधी परिवार के संबंध जुड़ने से टूटने तक की पूरी कहानी पर आज बात करते हैं ।
अमिताभ बच्चन के पिता विदेश मंत्रालय में हिंदी अधिकारी के रूप में काम करते थे। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उनके काम, सच्चाई और सिद्धांतों की बहुत इज्जत करते थे। इलाहाबाद में रहते हुए दोनों परिवार बहुत करीब आ गए। अमिताभ बच्चन की मां तेजी बच्चन, नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी की बहुत अच्छी दोस्त बन गईं। बाद में जब बच्चन परिवार दिल्ली शिफ्ट हुआ तब तेजी बच्चन को सोशल एक्टिविस्ट के रूप पहचाना जाने लगा और इंदिरा के साथ उनकी दोस्ती गहरी होती गई।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या तक दोनों परिवारों के संबंध बहुत घनिष्ठ रहे। यह रिश्ता अमिताभ और राजीव गांधी की दोस्ती के रूप में आगे बढ़ता गया। यह अमिताभ बच्चन ही थे, जो 13 जनवरी 1968 की सुबह कड़ाके की सर्दी में पालम एयरपोर्ट पर सोनिया गांधी को लेने पहुंचे थे। इस दिन सोनिया गांधी, राजीव की मंगेतर के रूप में भारत आई थीं । सोनिया को बच्चन परिवार के घर ठहराया गया और तेजी ने उनको भारतीय संस्कृति और तौर तरीकों के बारे में समझाया।
ऐसा भी कह सकते हैं कि तेजी ने सोनिया के लिए उनकी मां का रोल निभाया था । खबरों के मुताबिक, राजीव गांधी जब सोनिया गांधी से शादी करने की तैयारी में थे तब तेजी बच्चन ने ही मध्यस्थ के रूप में भूमिका निभाई थी । इंदिरा गांधी एक इटैलियन लड़की से अपने बेटे की शादी को लेकर अनिच्छुक थीं। इंदिरा गांधी को शादी के लिए तैयार करने वाली तेजी ही थीं । 1969 में जब सोनिया और राजीव गांधी की शादी पक्की हो गई, सोनिया और उनका परिवार कुछ दिनों के लिए, विलिंगडन क्रीसेंट स्थित बच्चन परिवार के आवास पर ठहरा।
1984 में अमिताभ और राजीव गांधी के रिश्ते नई ऊंचाई पर थे, राजीव गांधी ने अपने दोस्त अमिताभ बच्चन को कांग्रेस के टिकट पर इलाहाबाद से चुनाव लड़ने के लिए तैयार कर लिया। 1984 में अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद से कांग्रेस का टिकट मिला और उन्होंने बड़े अंतर से हेमवती नंदन बहुगुणा को हराया। दोनों परिवारों के लिए यह गर्व का क्षण था। इसके बाद दिल्ली में अमिताभ बच्चन कांग्रेस की यूथ ब्रिगेड का हिस्सा बन गए। सतीश शर्मा, अरुण नेहरू, अरुण सिंह और कमलनाथ के साथ उनकी तुलना होने लगी।
3 साल बाद अमिताभ ने राजनीति छोड़ दी और इस्तीफा दे दिया। दरअसल, एक अखबार ने बोफोर्स घोटाले में उनकी संलिप्तता को लेकर खबर छापी थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट की ओर से अमिताभ बच्चन को इस मामले में क्लीन चिट मिल गई थी । बोफोर्स घोटाले ने दो पुराने दोस्तों में मतभेद के बीज रोप दिए। बुरे हालात में भी दोनों परिवारों ने रिश्ते का दिखावा बनाए रखा और प्रियंका गांधी की शादी में अमिताभ बच्चन भी शामिल हुए।
राजनीति में छोटी पारी खेलने के बाद अमिताभ बच्चन 1988 में एक बार फिर बॉलीवुड में लौटे लेकिन बॉक्स ऑफिस पर उनकी फिल्में औंधे मुंह गिरी। 1991 में फिल्म ‘हम’ के हिट होने के बाद लगा कि अमिताभ की किस्मत पलटेगी लेकिन ये क्षणिक सफलता का समय था। 1992 के बाद अमिताभ बच्चन को पांच सालों के लिए एक तरह से फिल्मों से संन्यास लेना पड़ा। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद दोनों परिवारों के रिश्ते बिगड़ते गए। गांधी परिवार को महसूस हो रहा था कि बुरे वक्त में अमिताभ बच्चन उन्हें अकेला छोड़कर चले गए।
एक परिवार जो प्रधानमंत्री के आवास में कभी भी आ जा सकता था, अचानक से उसे ‘अछूत’ समझा जाने लगा। दूसरी ओर अमिताभ बच्चन का कहना था कि गांधी परिवार उन्हें राजनीति में लेकर आया और परेशानी के समय उन्हें बीच में ही छोड़ गया। इसके साथ ही जब बच्चन की कंपनी एबीसीएल दिवाला हो गई और अमिताभ आर्थिक संकट से जूझ रहे थे, गांधी परिवार ने उनकी मदद नहीं की। इस संकट ने दोनों परिवारों के रिश्ते को डुबो दिया और अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन अपनी निराशा को पब्लिक से छुपा नहीं पाईं।
2004 के चुनावों में जया बच्चन ने कहा, ‘जो लोग हमें राजनीति में लेकर आए, वो हमें संकट में छोड़कर चले गए। वो लोगों के साथ विश्वासघात करने वाले हैं। इसके बाद राहुल गांधी ने जवाब दिया, ‘बच्चन परिवार झूठ बोल रहा है। इतने सालों बाद वे क्यों आरोप लगा रहे हैं, अमिताभ बच्चन दो दशक पहले राजनीति में आए और अब उन्होंने अपनी वफादारी बदल ली है। जो लोग गांधी परिवार को जानते हैं। उन्हें पता है कि हमने किसी के साथ विश्वासघात नहीं किया। लोग जानते हैं कि किसने किसको धोखा दिया। लोग यह भी जानते हैं कि उनकी वफादारी किसके साथ है।’
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