नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में आज एक अर्जी दायर कर मांग की गई कि संसद की तरफ से अनुसूचित जाति और जनजाति (उत्पीड़न की रोकथाम) कानून में किए गए ताजा संशोधन को संविधान से परे (अल्ट्रा वाइरेस) घोषित किया जाए.
एक वकील की ओर से दायर अर्जी में आरोप लगाया गया है कि संसद के दोनों सदनों ने ‘‘मनमाने’’ तरीके से कानून में संशोधन का फैसला किया और पिछले प्रावधानों को इस तरह बहाल किया ताकि कोई निर्दोष अग्रिम जमानत के अधिकार का लाभ नहीं ले सके.
संसद ने बीते नौ अगस्त को एक विधेयक पारित कर सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश पलट दिया था जो अनुसूचित जाति एवं जनजाति (उत्पीड़न की रोकथाम) कानून के तहत गिरफ्तारी के खिलाफ कुछ सुरक्षा उपायों से जुड़े थे. राज्यसभा ने अनुसूचित जाति और जनजाति (उत्पीड़न की रोकथाम) संशोधन विधेयक पारित किया था. इसे छह अगस्त को लोकसभा की मंजूरी मिली थी.
विधेयक में प्रावधान है कि किसी अदालत के आदेश के बाद भी अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के खिलाफ उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती. इसमें प्रावधान है कि किसी आपराधिक मामले को दर्ज करने के लिए किसी प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं होगी और इस कानून के तहत गिरफ्तारी किसी मंजूरी पर निर्भर नहीं होगी.