नई दिल्ली। राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पास बहुमत नहीं है. ऐसे में हाल में हुए राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव में विपक्ष के पास अपने उम्मीदवार को कामयाब बनाने का अवसर था. लेकिन मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की ओर से जब ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के सर्वेसर्वा नवीन पटनायक से संपर्क साधा गया तो उन्होंने कह दिया कि वे पहले से ही जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राजग उम्मीदवार के समर्थन का वादा कर चुके हैं. ऐसे ही कुछ और दलों ने राजग उम्मीदवार हरिवंश को समर्थन दिया. इस तरह संख्या बल में कम होने के बावजूद सत्ता पक्ष के हरिवंश यह चुनाव जीतकर राज्यसभा के उपसभापति बनने में कामयाब हो गए.
चुनावों से पहले यह माना जा रहा था कि बीजू जनता दल विपक्ष के साथ रहेगा. एक बार तो यह स्थिति भी बन रही थी कि विपक्ष की ओर से बीजू जनता दल से यह बात हो कि वह अपना उम्मीदवार दे और वही उम्मीदवार विपक्ष का साझा उम्मीदवार हो जाए. लेकिन विपक्ष की ओर से कोई पहल होती, इसके पहले ही आश्चर्यजनक ढंग से नवीन पटनायक ने सत्ता पक्ष का साथ देने का फैसला कर लिया.
अब इसकी मूल वजह सामने आ रही है. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लोगों का कहना है कि इस समर्थन के बदले नवीन पटनायक ओडिशा में विधान परिषद बनाने के लिए केंद्र की मंजूरी चाहते हैं. दरअसल, किसी भी राज्य में विधान परिषद के गठन के लिए संसद की मंजूरी अनिवार्य है.
भारत के संविधान का अनुच्छेद-169 कहता है कि कोई भी राज्य अगर चाहे तो अपने यहां विधान परिषद का गठन कर सकता है लेकिन इसके लिए गठन का प्रस्ताव विधानसभा में दो तिहाई बहुमत से पारित कराके संसद की मंजूरी के लिए भेजना होगा. संसद से मंजूरी मिलने और फिर राष्ट्रपति से हरी झंडी मिलने के बाद उस राज्य में विधान परिषद का गठन किया जा सकता है. अभी सात राज्यों में विधान परिषद है. नियमों के मुताबिक विधानसभा में जितनी सीटें होती हैं, उसकी एक तिहाई सीटें विधान परिषद में हो सकती हैं. ओडिशा विधानसभा में 147 सदस्य हैं. इस हिसाब से ओडिशा विधान परिषद में 48 सीटें होंगी.
दरअसल, नवीन पटनायक काफी समय से प्रदेश में विधान परिषद का गठन करना चाहते हैं. अगले साल लोकसभा चुनावों के साथ ही ओडिशा विधानसभा के भी चुनाव होने हैं. ऐसे में कहा यह जा रहा है कि इसके पहले पटनायक ओडिशा में विधान परिषद चाहते हैं ताकि जिन विधायकों का टिकट काटने की योजना वे अगले चुनावों में बना रहे हैं, उन्हें विधान परिषद में भेजकर वे किसी भी तरह के असंतोष की संभावना को खत्म कर सकें.
अगले महीने ओडिशा विधानसभा का सत्र प्रस्तावित है. सूत्रों की मानें तो इस सत्र में नवीन पटनायक विधान परिषद गठित करने का प्रस्ताव पारित कराके संसद को भेजने की तैयारी में हैं. भाजपा सूत्र तो यह दावा भी कर रहे हैं कि इस बारे में उनकी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बातचीत भी हुई है और नीतीश के जरिए यह सूचना भाजपा के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचा दी गई है. नवीन पटनायक चाहते हैं कि राज्यसभा में जिस तरह से उन्होंने भाजपा का साथ दिया, उसी तरह से अब केंद्र सरकार भी उन्हें विधान परिषद का गठन करने में सहयोग करे.
लेकिन भाजपा के एक नेता का कहना है कि नवीन पटनायक की इस इच्छा के बावजूद केंद्र सरकार ऐसा करे, इसमें संदेह है. वजह बताते हुए वे कहते हैं, ‘केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के नेतृत्व में भाजपा ओडिशा में अपने बूते सरकार बनाने की योजना पर काफी समय से काम कर रही है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की योजना में ओडिशा विधानसभा में जीत हासिल करना शामिल है. ऐसे में इस बात की उम्मीद कम है कि केंद्र सरकार ओडिशा में विधान परिषद गठन की मंजूरी देकर नवीन पटनायक के लिए अगला चुनाव आसान बनाने का काम करे.’
भाजपा की ओर ओडिशा में चुनाव प्रबंधन में लगे एक पदाधिकारी की मानें तो पार्टी बीजू जनता दल के असंतुष्टों पर नजर रखे हुए है. वे कहते हैं, ‘बीजू जनता दल के करीब 25 विधायक चौथे कार्यकाल में हैं. वहीं दूसरे और तीसरे कार्यकाल वाले विधायकों की संख्या तकरीबन 50 है. सत्ता विरोधी लहर से लड़ने के लिए इनमें से कई का टिकट नवीन पटनायक को काटना पड़ेगा. भाजपा की नजर ऐसे विधायकों पर है. इनमें से जिनके जीतने की संभावना होगी, उन्हें पार्टी अपने पाले में लाने की कोशिश करेगी.’ विधान परिषद गठन के बारे में वे कहते हैं, ‘अगर ऐसा हुआ तो भाजपा को नुकसान होगा.’
इस पृष्ठभूमि में यह मुश्किल लग रहा है कि राज्यसभा में उपसभापति चुनाव में समर्थन के बावजूद नवीन पटनायक को विधान परिषद के गठन में भाजपा और उसकी अगुवाई वाली केंद्र सरकार का साथ मिल पाए.