नई दिल्ली। देश में पोस्टर राजनीति भी जोर पकड़ रही है. ताजा घटनाक्रम में मुंबई कांग्रेस ने एक पोस्टर लगाया है जिसमें पार्टी भाजपा नेता और दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि दे रही है. जबकि दूसरी तरफ शहर में एक पोस्टर तजिंदर पाल सिंह बग्गा की तरफ से लगाया गया है जिसमें राजीव गांधी की फोटो है औैर इसपर लिखा है- राजीव गांधी,, द फादर ऑफ मॉब लिंचिंग. राजनीतिक हलकों में इसे पोस्टर की राजनीति करार दिया गया है. कांग्रेस ने अपने पोस्टर के बहाने एक तरह से भाजपा को आईना दिखाने की कोशिश की, जबकि अन्य पोस्टर में राजीव गांधी पर निशाना साधा गया है.
अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के सचिव प्रणव झा ने अपने टि्वटर अकाउंट पर इन दोनों पोस्टर को पोस्ट करते हुए लिखा है कि यहां देखिए कि कांग्रेस कैसे भाजपा से अलग है. कृपया कुछ समय इंतजार करें. बहुत जल्द जनता आपके अहंकार और नफरत का उचित जवाब देगी. संस्कारों का फर्क!
Dear @BJP4India please see what makes @INCIndiadifferent from you. Kindly wait; very soon people are going to give you a befitting reply for your arrogance and hatred.
संस्कारों का फ़र्क़ ! pic.twitter.com/bkuCUZvbq6— pranav jha (@pranavINC) August 28, 2018
टि्वटर पर पोस्ट किए गए इस पोस्टर पर सोशल मीडिया में लोगों ने भी जबरदस्त प्रतिक्रिया दी है. इस क्रम में प्रकाश सिंह नाम के एक शख्स ने लिखा है कि दोनों पोस्टर में सच्चाई है. आपको नहीं लगता? इसके अलावा एक अन्य विजिटर ने लिखा कि दोनों पार्टियां अटल बिहारी वाजपेयी के नाम का इस्तेमाल करने में जुटी हैं. इन्हें इससे बचना चाहिए.
उल्लेखनीय है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए दोनों पार्टियों के बीच वैचारिक टकराव बढ़ गए हैं. हाल में दोनों पार्टियों के बीच टकराव का मंजर जोधपुर में देखने को मिला, जब दोनों के कार्यकर्ता सीएम वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा के दौरान आपस में भिड़ गए. यहां पीपाड़ में जमकर पत्थरबाजी, नारेबाजी और काले झंडे दिखाए जाने की घटना हुई.
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि यात्रा के दौरान अगर किसी ने पत्थर फेंके हैं तो यह निंदनीय कृत्य है. इस मामले में सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. उनका कहना था कि घटनाक्रम में शामिल लोग कांग्रेस के नहीं हो सकते, हो सकता है यह भाजपा की ही चाल हो. लोकतंत्र हमेशा सहनशक्ति के जरिए चलता है. जानकारों का मानना है कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जाएंगे, राजनीतिक पार्टियों के वैचारिक टकराव में भी इजाफा होगा.