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जब संजय गांधी हाईकोर्ट के फैसले पर भड़क गए और कहा स्टूपिड ज़जमेंट

नई दिल्ली। 12 जून 1975. वह तारीख़ जिसने इंदिरा गांधी और कांग्रेस की नींव हिला दी. ‘राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश’ मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावों में धांधली का दोषी पाया और उनकी सदस्यता रद्द कर दी. अपनी सख़्त छवि के लिए ख़्यात जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा के इस फैसले से देश की सियासत में भूचाल आ गया. फै़सले से जहां एक तरफ विपक्ष को ‘ऑक्सीजन’ मिला, तो दूसरी तरफ सत्तासीन कांग्रेस की नाव डगमगा गई. इस नाव को संभालने की जिम्मेदारी इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने संभाली.

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फै़सला आने के बाद कांग्रेस ने फौरी तौर पर इसके ख़िलाफ उसी दिन विरोध जताने का निर्णय लिया. इंदिरा गांधी के निवास 1 सफ़दरजंग रोड पर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ने लगी. उस दिन धूप तीखी थी. इसलिये कार्यकर्ता सड़क किनारे ही नीम और गुलमोहर के पेड़ की छांव में खड़े हो गए और अपनी नेता का इंतजार करने लगे. दोपहर बाद कार्यकर्ताओं की भीड़ और बढ़ने लगी. पसीने में लथपथ लोग अपना चेहरा पोंछते हुए 1 सफ़दरजंग रोड की तरफ बढ़े जा रहे थे. उस भीड़ में जानी-मानी पत्रकार और लेखिका तवलीन सिंह भी शामिल थीं.

कांग्रेस नेता कार्यकर्ताओं से सब्र रखने की अपील करते. बीच-बीच में कोई नेता गेट से बाहर झांकता और कहता, ‘मैडम थोड़ी ही देर में आने वाली हैं’. दिन ढलते-ढलते कार्यकर्ताओं का धैर्य जवाब देने लगा. करीबन शाम को गेट खुला और ख़ाकी पहने हुए एक जवान हाथ में सफेद कुर्सी लिये हुए हाजिर हुआ. दिन भर से इंतज़ार कर रहे कार्यकर्ताओं के सामने कुर्सी रख दी गई. चंद सेकेंड बाद झक सफेद कुर्ता, चेहरे पर मोटा चश्मा और कोल्हापुरी चप्पल पहने हुए एक और शख़्स हाजिर हुआ. जिसे देखते ही कार्यकर्ताओं में जोश आ गया. यह संजय गांधी थे.

तवलीन सिंह अपनी किताब ‘दरबार’ में लिखती हैं, भीड़ काफी ज़्यादा थी. मैं संजय गांधी तक पहुंची और उन्हें अपना परिचय दिया और उनसे एक इंटरव्यू देने की गुज़ारिश की. वह लिखती हैं, मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी, लेकिन संजय तैयार हो गए. जब मैंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फै़सले पर मैंने उनकी प्रतिक्रिया पूछी तो उन्होंन कहा, ‘मैं सोचता हूं कि यह बेवकूफ़ाना फैसला (स्टूपिड ज़जमेंट है)’. यह पूछने पर कि अब प्रधानमंत्री आगे क्या करेंगी, संजय गांधी ने कहा कि ‘हम देखेंगे’ और वह गेट के पीछे ग़ायब हो गए. इसके बाद जो हुआ वह सब जानते हैं. संजय गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जिस फ़ैसले को देखने की बात कही थी, उसकी परिणति ‘एमरजेंसी’ के रूप में हुई. देश की राजनीति में तो यह काले अध्याय के रूप में जुड़ा ही. चार दशक से ज़्यादा बीतने के बावजूद यह निर्णय कांग्रेस के गले की हड्डी बना हुआ है.

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