नई दिल्ली। देश में खुले रूप से ब्लॉक नीलामी सिस्टम में निजी क्षेत्र की वेदांता लिमिटेड ने बाजी मार ली. अनिल अग्रवाल की वेदांता ने सरकारी तेल कंपनियों को पछाड़ते हुए सर्वाधिक 41 ब्लॉक हासिल किए. जबकि सरकारी क्षेत्र की ओएनजीसी ने अन्य सहयोगी कंपनियों के साथ मिलकर 37 ब्लॉक के लिए दावेदारी की थी. मगर जब 55 ब्लॉक का आवंटन हुआ तो महज 14 ब्लॉक से ही संतोष करना पड़ा. सरकारी कंपनियों में ऑयल इंडिया (ओआईएल) को 9 ब्लाक, आयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन (ओएनजीसी) को केवल 2 ब्लॉक, गेल को एक, भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन लि. की खोज एवं उत्पादन इकाई को एक और हिंदुस्तान आयल एक्सप्लोरेशन कंपनी (एचओईसी) को एक-एक ब्लाक मिले.
मुनाफ कमा रही ओनजीसी, फिर भी यह हालः चौंकाने वाली बात यह है कि तेल और गैस के क्षेत्र में देश की सबसे बड़ी सरकारी कंपनी ओएनजीसी लगातार मुनाफा कमा रही है. भले ही देश के 157 सार्वजनिक उपक्रम एक लाख करोड़ के घाटे में चल रहे हों, मगर ओएनजीसी जैसी तेल कंपनियां हमेशा सरकार के लिए फायदमेंद साबित होतीं रहीं हैं. सरकारी तेल कंपनी ओएनजीसी को लाभ की बात करें तो जून में खत्म हुई तिमाही में 6,143.88 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया था. कंपनी ने खुद अपने बयान में साल-दर-साल आधार पर 58.15 फीसदी का मुनाफा दर्ज होने की बात कही थी. ओएनजीसी ने कहा था कि उसने पिछले साल की समान तिमाही में 3,884.73 करोड़ रुपये का मुनाफा दर्ज किया था. बावजूद इसके तेल एवं गैस ब्लॉक आवंटन में कंपनी के पिछड़ने पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
यह पहला मौका था, जब देश में तेल और गैस के लिए खोजे गए ब्लॉक की खुली नीलामी हुई. दरअसल केंद्र सरकार ने अप्रैल में एक फैसला लिया था, जिसमें खुला क्षेत्र लाइसेंसिंग नीति (OALP) के तहत तेल और गैस ब्लॉक की नीलामी के विजेताओं को ब्लॉक आवंटन की बात थी. ब्लॉक आवंटन पर फैसला लेने के लिए वित्त और पेट्रोलियम मंत्रालय को अधिकृत किया गया था. नई नीति के पीछे तर्क दिया गया है कि इससे तेल-गैस की कीमतों में होने वाली बढ़ोत्तरी और उत्पादन वृद्धि दोनों स्थिति में सरकार को उचित हिस्सेदारी मिलेगी. जबकि पुराना यानी उत्पादन साझेदारी ठेके के मॉडल को विवादास्पद बताया जाता रहा.