अभिरंजन कुमार
राहुल गांधी या तो स्वयं दिशाहीन और दिग्भ्रमित पॉलीटीशियन हैं या फिर देश की बहुसंख्य जनता को अपने पूर्वजों की तरह बेवकूफ और अपनी गुलाम प्रजा समझते हैं।
एक तरफ तो वे
(1) आइसिस जैसे कुख्यात संगठनों के आतंकवादियों को बेरोज़गारी से जोड़कर उन्हें स्वीकार्य वैचारिक आधार प्रदान करने का प्रयास करते हैं
(2) आरएसएस की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे वैश्विक आतंकवादी संगठनों से करके विदेशों में अपने ही देश और हिन्दू समुदाय को कलंकित करते हैं
(3) बाटला हाउस के आतंकवादियों से लेकर जेएनयू देशद्रोह कांड के आरोपियों और नक्सलवादियों-माओवादियों तक के समर्थन पर उतारू हो आते हैं
(4) इस्लामिक आतंकवादियों को खुश करने के लिए अपने नेताओं से हिन्दू/भगवा आतंकवाद का जुमला उछलवाते हैं और अपनी सरकार से अनेक साधुओं-संन्यासियों को झूठे मामलों (समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस) में फंसवा देते हैं
(5) अपने नेताओं (दिग्विजय सिंह सरीखे) से मुंबई अटैक जैसे स्पष्ट पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी हमलों को भी आरएसएस का हमला कहलवाते हैं
(6) अपने नेता (मणिशंकर अय्यर) को पाकिस्तान भेजकर भारत की चुनी हुई सरकार को गिराने के लिए सहयोग मांगते हैं
(7) अपने नेता (कपिल सिब्बल) को सुप्रीम कोर्ट भेजकर राम मंदिर के रास्ते में रोड़ा अटकवाते हैं
(8) चुनाव (कर्नाटक) जीतने के लिए हिन्दू समाज का बंटवारा (लिंगायत को अलग करके) कराते हैं
(9) कुछ हिन्दू जातियों (विशेषकर दलितों) को हिन्दुओं की मुख्य धारा से तोड़कर और कुछ अल्पसंख्यक जातियों (विशेषकर मुसलमानों) को देश की मुख्य धारा से तोड़कर चुनाव जीतने के लिए एक जातिवादी सांप्रदायिक गठबंधन बनाते हैं
(10) अपने नेताओं (सिद्धारमैया) से गोमांस खाने को खाने-पीने की आज़ादी कहलवाते हैं और गोमांस के साथ (केरल में) वीभत्स जुलूस निकलवाते हैं
(11) चौरासी के सिख दंगों में 3000 सिखों के कत्लेआम में अपनी पार्टी और पिता की सरकार की भूमिका से साफ़ मुकर जाते हैं
(12) असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती आबादी और बढ़ते तांडव पर चिंता प्रकट करने के बजाय उनके साथ खड़े हो जाते हैं
(13) एक पक्ष द्वारा की गई हिंसा को असहिष्णुता का विस्फोट मानते हैं और दूसरे पक्ष द्वारा की गई हिंसा को सहिष्णुता का संदेश मानकर मौन धारण कर लेते हैं
(14) कश्मीर से विस्थापित हुए साढ़े तीन लाख पंडितों के दर्द पर कभी कहीं एक शब्द नहीं बोलते
(15) कुछ न कुछ कहकर या करके देश में राजनीतिक विमर्श को हिन्दुओं और मुसलमानों के इर्द-गिर्द बनाए रखने का प्रयास करते हुए लगातार उनके बीच अविश्वास और तनाव को बढ़ावा दे रहे हैं।दूसरी तरफ, पिछले एक साल से वे
“हिन्दू हृदय हार” भी बनना चाहते हैं। और हिन्दू हृदय हार बनने का उनका फॉर्मूला तो देखिए, कितना आसान है-
(1) खुद को शिवभक्त घोषित कर लो।
(2) अपने प्रवक्ता से अपने को जनेऊधारी ब्राह्मण कहलवा लो।
(3) मंदिर-मंदिर माथा घिसना शुरू कर दो।
ऐसे में राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर बीजेपी के कुछ नेताओं के बयान से तो मैं सहमत नहीं हूं, लेकिन यह ज़रूर मानता हूं कि उनकी यात्रा एक विशुद्ध राजनीतिक ढोंग के सिवा कुछ नहीं है।
तो क्या राहुल बाबा अब ढोंगी बाबा बनने के सफ़र पर निकल चुके हैं? जवाब न भक्त बनने से मिलेगा, न गुलाम बनने से मिलेगा। जवाब तथ्यों पर निष्पक्षता से विचार करने से ही मिलेगा।