नई दिल्ली। देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा दो अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर अपने बाद सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस रंजन गोगोई के नाम की सिफारिश सरकार से की है। भले ही जस्टिस रंजन गोगोई को प्रधान न्यायाधीश बनने में कुछ दिन शेष हो लेकिन हम आपको बताते हैं कि आखिर प्रधान न्यायाधीश की नियुक्ति में क्या है संवैधानिक प्रावधान। इस पर क्या रही है पंरपरा और वो सुप्रीम कोर्ट के तीन अहम केस जिसने मुख्य न्यायाधीश के चयन पर एक स्थायी व्यवस्था दी।
क्या है कॉलेजियम
हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति का अधिकार जजों की एक समिति के पास है, जिसे कॉलेजियम कहते हैं। सुप्रीम कोर्ट का प्रधान न्यायाधीश इसका अध्यक्ष होता है। इसके अलावा शीर्ष न्यायालय के चार वरिष्ठतम जज इसके सदस्य होते हैं। कॉलेजियम की यह व्यवस्था दो दशक से ज्यादा समय से हमारे देश में लागू है। आइए जानते हैं कि ये कॉलेजियम व्यवस्था है क्या। यह कब से अस्तित्व में आई और क्यों आई।
CJI की नियुक्ति-क्या है संवैधानिक व्यवस्था
संवधिान निर्माताओं ने देश की सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को दिया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का प्रधान न्यायाधीश कौन होगा, इस संबंध पर संवधिान में अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। इस पर संविधान मौन है। हालांकि , 1951 से 1973 तक सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज को ही प्रधान न्यायाधीश बनाने की परंपरा रही है। आजादी के बाद दो दशक से ज्याद समय तक इस परंपरा का निर्वाह किया गया।
जस्टिस एएन रे मामले में उठे सवाल
संविधान के मुताबिक इसके लिए राष्ट्रपति मंत्रियों की सलाह के साथ्ा ही सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जजों का परामर्श ले सकता है। लेकिन क्या सीजेआइ की नियुक्ति में सरकार जजों के परामर्श से या सहमति के आधार पर फैसला लेगी। इस पर एक लंबी बहस चली। दरअसल, इस बहस की जड़ में आता है 1973 का मामला, जब जस्टिस एएन रे को सुप्रीम कोर्ट का प्रधान न्यायाधीश नियुक्ति किया गया। इस मामले में पेच वरिष्ठता का था। जस्टिस रे की नियुक्ति में जस्टिस केएस हेगड़, जस्टिस एएन ग्रोवर, जस्टिस जेएस शैलाब इन तीनों जजों की वरिष्ठता काे नजरअंदाज किया गया था। यही से विवाद की शुरुआत होती है।
यही नहीं 1977 में सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस एचआर खन्ना की जगह जस्टिस एमयू बेग को भारत का प्रधान न्यायाधीश बना दिया गया। इसके विरोध में जस्टिस खन्ना ने अपना त्यागपत्र दे दिया। जजों के विरष्ठता के अतिक्रमण का आरोप लगाने वाले कानूनविदों और जजों का कहना है कि इस मामले में न्यायपालिका का विवेकाधिकार कम कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के अहम तीन केस
1981 – पहला केस
सुप्रीम कोर्ट के परामर्श शब्द पर बहस की शुरुआत हुई। यह सवाल उठा कि सुप्रीम कोर्ट का परामर्श सरकार के लिए बाध्यकारी है कि नहीं। इस मामले की पहली सुनवाई वर्ष 1981 में हुई। तत्कालीन जस्टिस एसपी गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट के परामर्श को सिर्फ विचार के तौर पर परिभाषित किया। यानी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति या अन्य जजों की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट का परामर्श सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं थी। इसे फर्स्ट जजेज केस कहा जाता है।
1993- दूसरा केस
वर्ष 1993 में जस्टिस जेएस वर्मा की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की पीठ ने इस व्यवस्था को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट के परामर्श को मानना वाध्यकारी बताया। इस फैसले में यह स्थापित किया गया कि यह परामर्श सरकार के लिए केवल सुझाव नहीं है, बल्कि यह बाध्यकारी है। पीठ ने कहा कि जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर कॉलेजियम के जरिए होगी। इस सेकंड जजेज केस कहा जाता है। यही से कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत माना जाता है।
1998 – तीसरा केस
1998 में तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण ने संविधान के अनुच्छे 124, 217, 222 के तहत परामर्श शब्द के अर्थ पर सुप्रीम कोर्ट की राय मांगी। कुछ दिन बाद ही जस्टिस एसपी भरुची की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की नाै सदस्यी पीठ ने 28 अक्टूबर, 1998 को आदेश दिया कि नियुक्ति के मामले में न्यायपालिका विधायिका से ऊपर है। यानी 1993 में परामर्श को सरकार के लिए बाध्यकारी बताने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही था। इस आदेश को थर्ल्ड जजेस केस कहा जाता है।
क्या दिया गया था तर्क
1- सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के जजों को न्यायिक प्रक्रिया की जानकारी रखने वालों जस्टिस के बारे मे बेहतर जानकारी होती है। इसलिए जजों की नियुक्ति के मामले में उनकी राय को अहमियत मिलनी चाहिए।
2- एक अहम तर्क यह दिया गया था कि न्यायपालिका को राजनीतिक दखलंदाजी से मुक्त रखा जा सके, जो संविधान की मूल आत्मा में निहित है।
3- कॉलेजियम जजों के नाम और नियुक्ति का फैसला करती है। जजों के तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम करता है। हाई कोर्ट के कौन से जज प्रमोट होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम करता है।