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अब भाजपा झेलेगी सवर्णों की नाराजगी

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में विभिन्न पार्टियों के नेताओं को अब सवर्ण यानी कथित ऊंची जातियों के संगठनों का आक्रोश झेलना पड़ रहा है. सवर्णों के विरोध की आग राजस्थान और छत्तीसगढ़ तक भी पहुंच गई है. इन तीनों राज्यों में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं.

कथित ऊंची जातियों के ये संगठन 6 अगस्त को संसद में एससी-एसटी (अत्याचारों की रोकथाम) विधेयक में संशोधन के पारित होने से नाराज हैं, जिसे सियासी पार्टियों के समर्थन और आम राय से पारित किया गया.

दरअसल, माना जा रहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऐक्ट कमजोर हो गया है. दलितों की नाराजगी को देखते हुए केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिये संशोधन करके उसे पुराने स्वरूप में बहाल कर दिया था. लेकिन इस कवायद ने सवर्णों का नाराज कर दिया. इसी को लेकर सवर्ण संगठनों ने 6 सितंबर को भारत बंद का आह्वान भी किया.

इसके एक दिन पहले भाजपा सांसद और पूर्व मंत्री कलराज मिश्र के बयान ने इस मुद्दे की तपिश बढ़ाते हुए कहा, ”एससी-एसटी ऐक्ट का दुरुपयोग हो रहा है. मैं कानून के खिलाफ नहीं हूं लेकिन लोगों के अंदर असमानता का भाव पैदा हो रहा है. सभी दलों ने इसे दबाव देकर बनवाया था. सभी दल फीडबैक लेकर इसमें संशोधन कराएं.”

6 अगस्त के संशोधन ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को उलट दिया जिसमें शीर्ष अदालत ने कानून लागू करने वाली एजेंसियों को दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार के आरोपी शख्स को जांच पूरी करने से पहले गिरफ्तार करने से रोक दिया था. सवर्ण संगठनों का कहना है कि इस कानून का इस्तेमाल करके शिकायत करने वाले और पुलिस, दोनों उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं.

नाराजगी का आलम यह है कि सवर्ण विभिन्न नेताओं का घेराव कर रहे हैं. मध्य प्रदेश के मुरैना में सवर्ण प्रदर्शनकारियों ने 31 अगस्त को भाजपा उपाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद प्रभात झा का घेराव किया. संशोधन का विरोध नहीं करने के लिए उनके ऊपर चूड़ियां फेंकी गईं.

अगले दिन केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत का गुना के सर्किट हाउस में घेराव किया गया. उसी दिन राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह को मुरैना में विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा.

विपक्ष के नेता भी इसके शिकार हो रहे हैं. गुना के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को अशोक नगर में विरोध और गुस्से का सामना करना पड़ा था. मंदसौर के सांसद सुधीर गुप्ता को भी प्रदर्शनकारियों का विरोध झेलना पड़ा.

ये सारे विरोध प्रदर्शन ऊंची जातियों के संगठनों के बैनर तले आयोजित किए गए थे. इनके चलते मध्य प्रदेश के उत्तरी जिलों में जाति की सियासत का कड़ाहा फिर खौलने लगा है. इस इलाके में आने वाले भिंड, मुरैना और ग्वालियर बीते अप्रैल में जाति आधारित हिंसा से दो-चार हुए थे, जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलितों के विरोध प्रदर्शन के दौरान आठ लोग मारे गए थे. मध्य प्रदेश में नवंबर में चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में इन जिलों के सामाजिक तानेबाने में मौजूद जाति की दरारें और चौड़ी होने की उम्मीद की जा रही है.

यही वे जिले हैं जहां राज्य में दलितों की आबादी सबसे ज्यादा है. राज्य के कुछ निश्चित हिस्सों में दीवारों पर पोस्टर लगाए गए हैं जिनमें नेताओं से कहा गया है कि वे आने वाले विधानसभा चुनाव में वोट मांगने नहीं आएं क्योंकि उन्होंने  सवर्णों के साथ ‘विश्वासघात’ किया है.

गद्दीनशीन भाजपा पिछले दो साल से एक और जातिगत मुद्दे पर तलवार की धार पर चलती आ रही है. यह मुद्दा है सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण का. मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने राज्य में पदोन्नति में आरक्षण को रद्द कर दिया है और तभी से यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में है.

आधिकारिक तौर पर तो पार्टियों ने एससी-एसटी कानून के तहत दलितों और आदिवासियों को दी गई सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है, पर अकेले में इन नेताओं का कहना है कि वे अपनी बात लोगों को ठीक तरह समझा नहीं पा रहे हैं.

सांसद और कांग्रेस की प्रवक्ता शोभा ओझा कहती हैं, ”जब मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने था तब भाजपा ने शरारतन असरदार पैरवी नहीं की. अब भाजपा जाति के आधार पर समुदायों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है. धर्म के आधार पर वह यही काम पहले ही कर चुकी है और इसके फायदे भी उसने उठाए हैं.”

भाजपा इस मुद्दे पर फूंक-फूंककर कदम रख रही है. उसके राज्य प्रवक्ता राहुल कोठारी ने कहा, ”हम लोगों से अपील करते हैं कि वे गुमराह न हों. इस मामले के संविधान और कानून से जुड़े पहलुओं को देखते हुए यह किसी भी राजनैतिक दल के हाथ में नहीं है.”

जाहिर है, भाजपा के लिए यह ज्यादा मुश्किल भरा है. हाल ही में टीकमगढ़ में भाजपा की बैठक में कुछ युवकों ने हंगामा किया और सांसद प्रह्लाद पटेल को काले झंडे दिखाए. युवकों का आरोप था कि ”भाजपा दोहरी चाल चल रही है.”

हालांकि पटेल ने इस प्रकरण को कांग्रेस प्रायोजित करार दिया. लेकिन साफतौर पर भाजपा के लिए यह दोहरी चुनौती है. एक ओर, उसे दलितों की ओर से विरोध झेलना पड़ रहा है और अब उन्हीं मसलों पर सवर्ण उससे नाराज हो गए हैं.

चूंकि सभी पार्टियों ने एससी-एसटी कानून में संशोधन का समर्थन किया, लिहाजा, ऊंची जातियों के मतदाताओं के लिए फिलहाल कोई विकल्प नहीं दिखता.

जिन मुद्दों पर भाजपा दलितों की ओर से विरोध झेल रही है, उन्हीं मुद्दों पर अगड़ी जातियां भी उससे नाराज हैं.

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