राजेश श्रीवास्तव
इन दिनों केंद्र में काबिज मोदी सरकार और उसके पूरे रणनीतिकार रुपया की गिरती कीमतों और पेट्रोल व डीजल की बढ़ती कीमत के चलते चिंतित हैं। सरकार को अब लगने लगा है कि यह परिवर्तन उसकी आगे आने वाली राह को मुश्किल भरा साबित कर सकता है। लिहाजा भाजपा की कोई भी बैठक हो, यह मुद्दा जरूर उभर कर सामने आ जाता है लेकिन सरकार के रणनीतिकार इससे निपटने में कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं।
अभी तीन दिन पहले एक रिपोर्ट आई थी कि मोदी सरकार 2०13 के वर्ष में दोेबारा लौटेगी। जानकारों का कहना है कि रुपये का समर्थन न करने और ओवरवैलुएशन का तर्क देने से रुपया और नीचे गिर सकता है। अगस्त के आंकड़ों के मुताबिक व्यापार घाटा कम नहीं होने वाला है साथ ही यूएस फ़ेडरल रिजर्व इस महीने ब्याज दर भी बढ़ा सकता है जिससे रुपये पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
दूसरी तरफ तुर्की की मुद्रा में 3 फीसदी का सुधार रुपये के लिए अच्छा संकेत है। अक्टूबर में होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में रिजर्व बैंक ब्याज दर बढ़ा सकता है। साथ ही 2०13 की तरह रुपये को मजबूत करने के लिए अमीर करोड़पतियों से डॉलर डिपॉजिट करवाया जा सकता है। कुछ वस्तुओं के आयात पर शुल्क बढ़ाने की भी संभावना है। साल 2०13 में भारत ने सोने की जूलरी के आयात पर शुल्क बढ़ा दिया था।
इस समय तेल के बाद इलेक्ट्रॉनिक आइटम सबसे ज्यादा आयात होते हैं। इसके अलावा करंसी एक्सचेंज के लिए आरबीआई तेल कंपनियों की खातिर स्पेशल विडो भी खोल सकती है। सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि इतनी बुरी हालत तो तब नहीं थी जब पूर्व की मनमोहन सरकार दुनिया भर में फैली आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रही थी।
हर रोज बढ़ती महंगाई, पेट्रोल व डीजल की बढ़ती महंगाई ने सरकार के तमाम अच्छे कामों पर भी पलीता लगा दिया है। अभी बीती 1० सितंबर को कांग्रेस ने भारत बंद किया था। अब आगामी 18 सितंबर को उत्तर प्रदेश बंद का आह्वाान व्यापारियों ने भी कर रखा है। दोनों ही बंद महंगाई को लेकर किये जा रहे हैं। इस तरह के आहवान सफल हों या न हो। पर सरकार की छवि को बट्टा जरूर लगा रहे हैं।
शनिवार को भी भाजपा की हुई बैठक में महंगाई का मुद्दा छाया रहा। प्रधानमंत्री और उनके सिपहसालार बैठक के बावजूद इसका कोई कारगर उपाय ढूंढ़ने में सफल नहीं हो सके। लेकिन बाहर आकर जेटली का यह कहना कि सरकार जल्द ही कीमतों पर नियंत्रण पा लेगी लेकिन उनके इस बयान से सरकार व आम जनता को कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है।
अब सरकार की पेशानी पर इस बात को लेकर बल पड़ना स्वाभाविक ही है क्योंकि यह चुनावी वर्ष है। पांच राज्यों में अगले ही जल्द ही चुनाव होने हैं जबकि वर्ष 2०19 के शुरुआती महीनों में ही लोकसभा चुनाव संपन्न किये जाने हैं। ऐसे में यह महंगाई भाजपा सरकार को बहुत महंगी पड़ सकती है। भाजपा के लिए यह पहला मौका नहीं है जब महंगाई उसके सामने समस्या बनकर मुंह बाये खड़ी है।
बीती भाजपा की सरकार में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जब पूरे देश में इंडिया शाइनिंग का नारा देकर लोकसभा चुनाव में जीत का दावा ठोंक रहे थ्ो तब भी भाजपा को महंगाई ने चित कर दिया था और भाजपा अौंध मुंह लोकसभा चुनाव में चित हो गयी थी। एक बार फिर भाजपा उसी दौर से गुजर रही है जब पूरी सरकार अपनी तमाम उपलब्धियों के बावजूद महंगाई से दो-चार हो रही है।
इस बार तो रुपये के गिरते दामों ने भी उसकी परेशानी बढ़ा रखी है अब देखना है कि सरकार इससे कैसे निपटती है। क्या उसके रणनीतिकार सरकार की इस परेशानी को दूर करने में उसकी मदद करने में प्रभावकारी साबित हो सकते हैं। या फिर सरकार को ही इसका कोई उपाय ढूंढ़ना होगा क्योंकि विपक्ष तो इस मुद्दे को छोड़ने के मूड में नहीं दिख रहा है। विपक्ष भलीभांति जानता है कि आम जनता को अपने साथ रखने का सबसे बड़ा हथियार महंगाई के रूप में उसके सामने हैं तो फिर वह इसे अपने हाथ से क्यों जाने दे। ऐसे में यह सरकार का दायित्व है कि वह इससे कैसे निजात पाये।