बेलग्राद। विदेशी धरती पर अपने देश के किसी नेता का कैसे मान रखा जाता है, इसका उदाहरण उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने पेश किया है. उपराष्ट्रपति का पद संभालने से पहले तक बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे वेंकैया नायडू ने ज्यादातर मौकों पर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनके नीतियों पर सवाल उठाते रहे, लेकिन संवैधानिक पद पर पहुंचते ही उन्होंने मिसाल पेश कर दी है. उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने शनिवार को अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के दिन सर्बिया की संसद में अपने संबोधन में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सराहना की.
नायडू यहां शुक्रवार को पहुंचे थे. उन्होंने कहा कि भारत और सर्बिया के बीच संबंधों की जड़ें इतिहास में काफी गहरी हैं. उन्होंने सर्बिया की नेशनल असेंबली के एक विशेष सत्र को संबोधित किया जहां 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के पहले शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ था. उपराष्ट्रपति ने कहा कि कई मुद्दों पर भारत और सर्बिया के दृष्टिकोण समान हैं और दोनों में गहरे संबंध में जो दोनों देशों को नजदीक लाते हैं.
नायडू ने कहा, ‘यहां पर पहला नाम शिखर सम्मेलन 1961 में हुआ था. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू और विश्व के गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अन्य नेताओं ने नाम शिखर सम्मेलन को इस हॉल में संबोधित किया था.’
क्या है गुटनिरपेक्ष आंदोलन
गुटनिरपेक्ष देशों का समूह शीत युद्ध के दौरान बनाया गया था. इसका मक़सद था उन देशों को साथ लाना, जो ना अमरीका के साथ थे और ना ही सोवियत संघ के पक्षधर. गुटनिरपेक्ष देशों को एक मंच पर साथ लाने की पृष्ठभूमि पांच देशों के नेताओं ने बनाई थी. भारत, इंडोनीशिया, घाना, मिस्र और उस वक़्त के युगोस्लाविया ने शुरुआत की. पहली बैठक युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो की अध्यक्षता में बेलेग्रेड में हुई. जैसे-जैसे आंदोलन बढ़ा तो समूह में अफ़्रीका और एशिया के कई देश जुड़ते गए. पर शीत युद्ध ख़त्म होने पर इस आंदोलन का मक़सद भी फीका होता गया.
अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार ऐलेक्सान्ड्रा जोकिमोविक कहती हैं, गुटनिरपेक्ष देशों के आंदोलन ने अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी अत्यंत महत्वपूर्ण ताकत खो दी है. जोकिमोविक के मुताबिक भावनात्मक दृष्टि से गुटनिरपेक्ष देशों की 50वीं वर्षगांठ का बेलग्रेड में मनाया जाना ठीक है लेकिन ये सर्बिया के लिए यूरोपीय समूह का हिस्सा बनने के लिए फायदेमंद हो, ये ज़रूरी नहीं. उनके मुताबिक़ सर्बिया को गुटनिरपेक्ष देशों के साथ जुड़ने से नहीं बल्कि यूरोपीय समूह का हिस्सा बनने से फ़ायदा होगा. ज्यादातर गुटनिरपेक्ष देश कोसोवो को सर्बिया का हिस्सा मानते हैं. हालांकि कोसोवो ने वर्ष 2008 में ख़ुद को सर्बिया से आज़ाद होने की घोषणा की थी. ज़ाहिर है इस बैठक में हिस्सा लेने वालों को ये अहसास होगा कि 50 साल पहले हुई गुटनिरपेक्ष देशों की पहली बैठक के समय की दुनिया अब से कितनी अलग थी.