नई दिल्ली। मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं, इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू हो गई है. सुप्रीम कोर्ट के जजों ने अपना फैसला पढ़ना शुरू कर दिया है. जस्टिस अशोक भूषण, अपना और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का फैसला सुनाएंगे. जबकि जस्टिस नजीर अपना फैसला अलग पढ़ेंगे.
सबसे पहले जस्टिस अशोक भूषण अपना फैसला पढ़ रहे हैं. जस्टिस अशोक भूषण ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि हर फैसला अलग हालात में होता है. उन्होंने कहाकि पिछले फैसले के संदर्भ को समझना जरूरी है. जस्टिस भूषण ने कहा कि पिछले फैसले में मस्जिद में नमाज अदा करना इस्लाम का अंतरिम हिस्सा नहीं है कहा गया था, लेकिन इससे एक अगला वाक्य भी जुड़ा है.
अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले (Ayodhya Case) में चीफ जस्टिस (CJI) दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने इसी साल 20 जुलाई को इसी केस में अपना फैसला सुरक्षित रखा था. इस मसले को रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले का अहम हिस्सा माना जा रहा है.
बता दें कि इस केस में इस्माइल फारूकी फैसले के उस हिस्से पर मुस्लिम पक्ष की ओर से नए सिरे से विचार करने की मांग की गई है जिसमें कहा गया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है. जो पीठ इस पर फैसला सुनाएगी उसमें प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.
1994 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने इस्माइल फारूकी केस में राम जन्मभूमि मामले में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था ताकि हिंदू पूजा कर सकें. बेंच ने ये भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है.
दरअसल, अयोध्या में विवादित जमीन के मालिकाना हक के मुख्य मामले यानी टाइटल सूट की सुनवाई से पहले कोर्ट इस मामले पर फैसला देगा कि क्या नमाज़ पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए एक तिहाई हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई राम लला को दिया था.
क्या कहते हैं पक्षकार?
बाबरी मस्जिद केस में मुद्दई इकबाल अंसारी का कहना है कि 27 तारीख को कोर्ट जो भी फैसला करे हमें मंजूर है. लेकिन मस्जिद में मूर्ति रखी गई, मस्जिद तोड़ी गई, फैसला कोर्ट को सबूतों के बुनियाद पर करना है.
उन्होंने कहा कि मस्जिद इस्लाम का एक अंग है. मस्जिद तोड़ दी गई, तब भी नमाज जमीन पर बैठकर की जाएगी. वह जगह मस्जिद कहलाएगी. मस्जिद की जमीन ना किसी को दी जा सकती है और ना बेची जा सकती है. वह हमेशा मस्जिद ही कही जाएगी. हम कोर्ट पर विश्वास करते हैं. कानून पर विश्वास करते हैं. कोर्ट फैसला करे. इधर करे या उधर करे, क्योंकि इसके पहले इस पर इतनी राजनीति की जा चुकी है.