Thursday , March 28 2024

किसी ने कहा- लोकतंत्र की हत्या हो गयी!

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

हम चिहुँक गए- फिर हो गयी? अभी कुछ ही दिन पहले तो हुई थी।मुझे समझ में नहीं आता कि किसी एक ही व्यक्ति की बार बार हत्या कैसे हो सकती है? और अगर सच में हो रही है, फिर तो यह लोकतंत्र गजब का निर्लज्ज आदमी है महाराज, बार बार मरता है और फिर जी जाता है। पुराणों में वर्णन है कि रक्तबीज बार बार मरता था, और हर बार जी जाता था। मुझे लगता है रक्तबीज कोई और नहीं, यही लोकतंत्र रहा होगा।
कभी कभी मुझे मन करता है कि इस कमबख्त लोकतंत्र तो पटक के चार घूँसे लगाऊं और पूछूँ, “क्यों बे! तुम इतनी जल्दी जल्दी अपनी हत्या कैसे करा लेते हो बे? पिछले जन्म में आम आदमी थे क्या?”
मैंने लोकतंत्र की हत्या की सूचना देने वाले मित्र से कहा- हे डार्लिंग! क्या हत् हो गए लोकतंत्र को बचाने का कोई उपाय नहीं?
डार्लिंग ने कहा- है क्यों नहीं? सरकार हमारी पार्टी की बात मान ले, लोकतंत्र जी जाएगा।
हम चिहुँक कर बोले- मतलब आपकी बात मरे हुए लोकतंत्र को जीवित कर सकती है?
डार्लिंग ने उवाचा- बिल्कुल कर सकती है। हम जो कह रहे हैं वही लोकतंत्र के हित में हैं, हमारी बात मान ली जाय तो लोकतंत्र जी उठेगा…
मैंने हाथ जोड़ कर कहा- हे जीवनदाता! आप शीघ्र ही देश की सीमा पर जाइये। वहाँ नित्य ही भारतीय सैनिक वीरगति पा रहे हैं, आपकी बात उन मृत सैनिकों को जीवित कर सकती है। तनि दौड़ के जाइये न…
युगों पूर्व भिजपुरी के किसी चिरकुट कवि ने कहा था- “बोलs बोलs बबुआ बोलsss बोलs हो करेजउ रजऊ बोलs ना…” मैं अब जा कर समझ पाया हूँ कि उस महाकवि ने यह बात किससे और क्यों कही होगी। सचमुच इन डार्लिंगों का बोलना बहुत आवश्यक है। मुझे लगता है भोजपुरिया गीतकारों के इन रजऊ और करेजउ टाइप के समस्त बोल्तुओं को सीमा पर भेज देना चाहिए।
मैंने डार्लिंग से कहा- अच्छा एक बात बताओ, यह लोकतंत्र की हत्या में ऐसा कौन सा पतंजलि का मशाला लगा है कि तुम्हें बस इसी की चिंता बनी रहती है? रोज ही पूर्व नियोजित दुघर्टनाओं में असंख्य लोग मरते हैं, तुम्हें उनकी चिंता क्यों नहीं होती?
डार्लिंग ने मुझे इस तरह देखा, जैसे कोई तथाकथित ईसाई “मदर” किसी हिन्दू को देखती है। रोम से संचालित होते उसके रोम रोम से मेरे लिए धिक्कार निकल रहा था। मैंने तड़प कर कहा, मुझे यूँ न देखो डार्लिंग! तुम्हारी आँखे मुझे “शांतिदूत” लगती हैं। तुम तो बस यह बताओ कि जिन लोगों को पुलों से दबा के मार दिया जाता है, उनपर तुम्हे दया क्यों नहीं आती?”
डार्लिंग ने मुझे घूरते हुए कहा- मतलब साफे मूर्ख हो का जी? जनता और लोकतंत्र को एकही तराजू पर तौलते शर्म नहीं आती? अरे लोकतंत्र है, तभी जनता है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए जनता को तो कुर्बानी देनी ही चाहिए, और अगर जनता कुर्बानी नहीं देगी तो हम पटक के जी एस टी की तरह कुर्बानी वसूल करेंगे। तुम जानते नहीं कि इस लोकतंत्र को लाने के लिए जनता को कितनी कुर्बानी देनी पड़ी थी? इस लोकतंत्र का जन्म ही जनता का रक्त पी कर हुआ है। रक्त इसके मुह में लग चुका है, तुम क्या पूरा देश मिलकर भी इसे रक्त पीने से नहीं रोक सकते… पर इससे क्या? लोकतंत्र बचा रहना चाहिए। लोकतंत्र की हत्या कभी नहीं होनी चाहिए…
डार्लिंग ने मुझे हड़का दिया था, पर गिरती हुई नैतिकता के कारण गिरते हुए पुल ने मुझे भड़का दिया था। मैंने डार्लिंग के मुह पर चार घूँसे लगा कर कहा- बहुत हो चुका बे, पहले यह बता कि इस लोकतंत्र की सबसे पहली हत्या किसने की थी?
डार्लिंग के मुह से बकरी वाली मिमियाहट निकलने लगी। मैंने दो झाँपड लगा कर कहा- अबे जल्दी बोल! आम आदमी हूँ, मेरे पास तो अपना भला-बुरा सोचने तक का समय नहीं है तेरी कबतक प्रतीक्षा करूँ?
डार्लिंग ने मिमिया कर कहा- लोकतंत्र की सबसे पहली हत्या हमारी पार्टी ने की थी।
मैंने दो घूँसे लगा कर फिर पूछा- अब यह बता, कौन सा दल ऐसा है जिसने आजतक लोकतंत्र की हत्या नहीं की?
डार्लिंग के मुह से फुसफुसाहट निकली- सबने की है! किसी ने उसे नहीं छोड़ा। हम सब ने सैकड़ों बार उसकी हत्या की है। फिर उसके अंग अंग को मशाले में भून कर शराब के साथ खाया है। लोकतंत्र तो हमारे लिए “चखना” भर है…
मैंने दो घूँसा और लगाया, फिर कहा- तो फिर यह एक दूसरे पर कीचड़ फेंक कर किसको मूर्ख बनाया जाता है डार्लिंग?
डार्लिंग की मुस्कुराहट खिल उठी- बने बनाये को क्या बनाना जी! लोकतंत्र में राजा के लिए बारहों महीने फागुन होता है, सो हमलोग एक दूसरे को गाली दे कर ननद-भउजाई वाला खेल खेलते हैं। पर सुन लो, अब यदि एक झाँपड भी और लगाया तो याद रखना; तुम हो आम जनता ही, बिना बात के भी तुम्हारा एनकाउंटर हो सकता है। मित्रता में ज्यादा हीरो न बनो…
डार्लिंग की बात में दम था, मेरी आँखों में पानी कम था। मेरे अगल बगल की हवाएं डार्लिंग को इस तरह सलाम कर रही थीं, जिस तरह ‘वह आदिवासी जिसकी बीबी को माओवादी कमांडर उठा ले गया हो’ उसी कमांडर को मजबूरी में दिन भर में साढ़े तीन बार “लाल सलाम” करता है।
मैंने मुस्कुरा कर कहा-
लाल सलाम कामरेड!
आम आदमी हूँ, इतनी ही औकात है….

 

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