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देश के युवक यदि ठीक से पीटना भी नहीं जानते तो यह राष्ट्र के लिए लज्जा की बात है……………..(हास्य है, अन्यथा न लें)

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

मन व्यथित है। आजकल देख रहा हूँ कि कुछ भाजपाई अभद्र लोगों को पीट रहे हैं। मेरी पीड़ा उनके पीटने के कारण नहीं, पीटने की शैली के कारण है। मैंने देखा कि दस दस लोग मिल कर पीट रहे हैं फिर भी पीड़ित स्वयं चल कर प्रस्थान करता है, यह कैसी पिटाई है? महाराणा प्रताप, शिवाजी और भगत सिंह जैसे योद्धाओं के देश के युवक यदि ठीक से पीटना भी नहीं जानते तो यह राष्ट्र के लिए लज्जा की बात है।
वस्तुतः पीटने से अधिक पीटने का ढंग महत्वपूर्ण होता है। आप घण्टे भर पीटें और पीड़ित कोंय-कांय भी न करे तो पीटना व्यर्थ ही होता है। थूरिये तो इस तरह थूरिये कि पीड़ित कम से कम सप्ताह भर पेट के बल सोये और कम से कम पन्द्रह दिन लँगड़ा कर चले। पिटान ऐसी होनी चाहिए कि पीटने वाले को चवन्नी भर आनंद आये, पिटाने वाले को अठन्नी भर आनंद आये, और देखने वाले को सवा रुपये का आनंद आये।
यदि आप किसी बुद्धिभोजी को पीट रहे हैं तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। किसी को पीटिये तो सटासट पीटिये, फटाफट पीटिये। कहने का तातपर्य यह है कि विद्युत की गति से सटासट पीटिये, और अल्प समय में ही फटाफट पीटने का कार्य पूर्ण कर लीजिए। पिटान इतनी तीव्र गति से होनी चाहिए कि पीड़ित जब तक स्थिति को समझे, तबतक उसके पाकिस्तान पर वामपंथ का झंडा लहर जाय।
किसी भी महान विभूति अथवा किरन्तिकारी को पीटते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि अधिकांश प्रहार गुद्देदार स्थान खासकर पिछवाड़े पर हो। इसके कई लाभ हैं- पहला यह कि पिछवाड़े की पिटान में हड्डी टूटने का भय नहीं होता। यदि हड्डी टूटी तो धारा 307 लग सकती जिसमें बेल नहीं मिलता, जबकि पिछवाड़ा कितना भी लाल हो 323-24 में थाने से ही बेल मिल जाता है। दूसरा लाभ यह है पिछवाड़े की चोट पीड़ित कहीं दिखा भी नहीं सकता।
यदि आपको लाठी डंडे के स्थान पर झाँपड से पीटना है तो मुह पर मारिये। वह भी द्रुत गति से चटाचट… कि पल भर में ही उस महान विभूति का मुखमण्डल लाल हो जाय। यहाँ एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि पहला थप्पड़ नाक पर ही लगना चाहिए ताकि विभूति पल भर में ही भक से खून फेंक दे।
यदि आपको पीटने का वीडियो भी बनाना है तो कैमरा को पीड़ित के चेहरे पर फोकस करें। पिटान के समय पीड़ित के मुखड़े के प्रतिपल बदलते भाव इतने मनोरंजक होते हैं कि उसे देख देख कर युगों तक आनंद लिया जा सकता है। मार खाने में लट्ठ गिरते समय जब पीड़ित दांत किटकिटाता है या दांत से होंठ काटता है तो वह छवि अविस्मरणीय होती है।
पीटते समय विभूति को कभी कभी भागने का छोटा अवसर अवश्य प्रदान करें, और जैसे ही वह भागे उसे पकड़ कर पुनः धोएं। इससे पीटने का आनंद दुगुना हो जाता है।
एक बात और, जब आप विभूति को मन भर कूट लें तो अंत मे उसे प्रणाम अवश्य करें। इससे आपको आनंद आएगा और विभूति को शांति मिलेगी।
बिहार के मोतिहारी से आया वीडियो उत्साहजनक है। उस वीडियो में पीट रहे युवकों की रणनीति इतनी अच्छी है कि उनको नमन करने का मन होता है। युवकों ने पहले महान विभूति को पीटा नहीं है, बल्कि उसके सारे वस्त्र नोच डाले हैं। अंत में युवक जैसे ही विभूति के अंतिम अंतः वस्त्र फाड़ते हैं, वह दोनों हाथों से अपना तन ढकने लगता है। मनुष्य का स्वभाव है कि वह चोट से पूर्व अपनी लज्जा की रक्षा करता है। इस तरह उसके दोनों हाथ व्यस्त हो जाते हैं और प्रतिरोध की संभावना पूर्णतः समाप्त हो जाती है। उसके बाद युवकों ने जो धोया है… जो धोया है… कि क्या कहें कि कैसा धोया है।
सच कहें तो पीटने में बिहार अभी भी पूरे देश का मार्गदर्शन कर सकता है।
पिछले दो दिनों में पूर्व प्रधानमंत्री के सम्बंध में अभद्र टिप्पणियां करने वालों की संख्या इतनी अधिक है कि यह पिटाई अभियान अभी लम्बा चलने की संभावना है। मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में पीटते समय पीटक इन बातों का ध्यान अवश्य रखेंगे।

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