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जगत के सबसे सशक्त बन्दीगृह, घेरे के अंदर भयानक गन्दगी, चारों ओर जंगल की तरह पसरा खर-पतवार… यह भगवान राम की जन्मभूमि है

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

दो फिट चौड़े और सात फुट ऊँचे लोहे के पिंजड़े में डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद बीस फिट गुणे तीस फिट के तिरपाल में दिखे रामलला। लगभग पाँच सौ एसएलआर राइफल वाले सुरक्षाकर्मियों से घिरे…. लगभग सौ बीघे जमीन को लोहे के मोटे-मोटे खम्भों से इस तरह घेरा गया है जैसे जगत का सबसे सशक्त बन्दीगृह बनाया गया हो। घेरे के अंदर भयानक गन्दगी, चारों ओर जंगल की तरह पसरा खर-पतवार… यह भगवान राम की जन्मभूमि है। उस भगवान राम की जन्मभूमि जो सौ करोड़ लोगों के आराध्य हैं। उस राम की जन्मभूमि जो युगों युगों से भारतीय मानस के प्रेरणा स्रोत हैं।
इस एक किलोमीटर के पिंजड़े में पाँच स्थानों पर हमारा शरीर टटोला गया। इस देश का प्रशासन मुझ दुबले-पतले ब्राह्मण से भयभीत है कि कहीं बम तो नहीं लिया होगा, कहीं अकेले मन्दिर बनाने तो नहीं आ गया… राम के भक्त यदि बम बन्दूक वाले होते तो यह पिंजड़ा कब का उखाड़ कर फेंक दिया गया होता और आज अपने जन्मस्थान में राम तिरपाल में नहीं होते।
मैं कल से सोच रहा हूँ, क्या उस लोहे के पिजड़े में केवल रामलला की मूर्ति कैद है? नहीं! अयोध्या में सौ करोड़ लोगों का स्वाभिमान कैद है। अयोध्या में भारत की आस्था बन्द है। अयोध्या में भारत कैद है।
मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ, यदि आपके अंदर तनिक भी स्वाभिमान है और आप अयोध्या का दृश्य देख लें तो आपको भारत की स्वतंत्रता ढोंग लगने लगेगी।
आपको ढोंग लगेगी संविधान की वह प्रस्तावना जिसमें देश के प्रत्येक व्यक्ति को न्याय और उपासना की स्वतंत्रता प्रदान करने की बात कही गयी है।
आपको नौटंकी लगेगी वह पूरी व्यवस्था जो समानता के अधिकार की बात करती है। यदि समानता का अधिकार होता तो राम कैद नहीं होते।
पता नहीं कितने लोगों को ज्ञात है, सोमनाथ, विंध्याचल, मथुरा और काशी आदि के प्रसिद्ध मंदिर कई-कई बार मुसलमान आतंकवादियों द्वारा तोड़े गए हैं, पर प्रत्येक बार लोग एकत्र हुए और मन्दिर का पुनर्निर्माण हुआ। और वह भी उस कालखण्ड में, जब देश के तीन चौथाई भाग पर मुश्लिमों का ही शासन था, और हिन्दू अपेक्षाकृत अशक्त और परतन्त्र थे। आज हम स्वतन्त्रता का दम्भ पाल कर बैठे हैं पर अपने स्वाभिमान की रक्षा नहीं कर पा रहे।
ईश्वर जाने क्या दण्ड भोग रही है अयोध्या! अयोध्या केवल राजनैतिक खेल का दंश झेल रही है, या हम सब ने मिल कर उसकी यह दुर्गति की है, समझ नहीं आता।
जब पाँच लाख लोगों ने अयोध्या के माथे से बाबरी कलंक धोया था, तब सत्ता उनके साथ नहीं थी।भारत का यह अद्भुत लोकतांत्रिक न्यायालय उनके साथ नहीं था। साथ था मात्र उनका साहस, साथ थी मात्र उनकी आस्था… वे माथे का कलंक धो सकते थे तो माथे का टीका भी लगाया जा सकता है। किन्तु हम सत्ता के भरोसे बैठे हैं। हम न्यायालय के भरोसे बैठे हैं। पूरे विश्व में एक हम ही हैं जो अपने धर्म, अपनी सभ्यता, अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए कोर्ट का मुह देखते हैं। पता नहीं कौन सा रोग लगा है शिवा और राणा की सन्तति को… पता नहीं कौन सी ब्याधि खा रही है महारानी अहिल्या बाई होल्कर के शिशुओं को…
अयोध्या सौ करोड़ नेतृत्वविहीन हिन्दुओं की व्यक्तिगत कायरता का प्रतीक है। अयोध्या भारत के कुचले गए स्वाभिमान का भौंडा दृश्य है। ईश्वर जाने कब मिटेगा यह दृश्य…

 

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