Friday , November 22 2024

MP: BSP नहीं, इन 2 नए प्‍लेयर्स की एंट्री ने बीजेपी और कांग्रेस की उड़ाई नींद

इंदौर। आमतौर पर चुनावों में पार्टियां टिकट देते वक्‍त जातिगत समीकरणों का ख्‍याल रखती हैं लेकिन हालिया दौर में मध्‍य प्रदेश में एससी/एसटी एक्‍ट के मसले पर उठे सियासी तूफान के कारण पार्टियों के लिए इस बार टिकटों का वितरण इतना आसान नहीं रह गया है. ऐसा इसलिए क्‍योंकि एससी/एसटी एक्‍ट मुद्दे पर पक्ष-प्रतिपक्ष में सबसे मुखर स्‍वर मध्‍य प्रदेश में ही सुनाई दिए हैं. ऐसा इसलिए क्‍योंकि इसी मुद्दे के कारण दो नए संगठन उभर कर आए हैं और 28 नवंबर को होने जा रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर परंपरागत रूप से बीजेपी और कांग्रेस के वोटबैंक को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. अनारक्षित समुदाय और आदिवासी वर्ग के इन दो नये संगठनों के मैदान में उतरने के कारण जातिगत वोटों के बंटवारे की चुनावी जंग और भीषण होती नजर आ रही है.

सपाक्स
सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण समाज संस्था (सपाक्स) ने सूबे की सभी 230 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है. जनरल कैटेगरी की नुमाइंदगी करने वाले इस संगठन के प्रमुख हीरालाल त्रिवेदी ने कहा, “हम चाहते हैं कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम(एससी/एसटी एक्‍ट) में संशोधनों को फौरन वापस लिया जाये. इसके साथ ही, समाज के सभी तबकों के लोगों को शिक्षा संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाये.” सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने कहा कि सपाक्स की मांग है कि देश भर में सरकार की किसी भी योजना के हितग्राहियों का चयन जाति के आधार पर नहीं किया जाये और सभी वर्गों के वंचित लोगों को शासकीय कार्यक्रमों का समान लाभ दिया जाये.

जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस)
उधर, राज्य में जनजातीय समुदाय के दबदबे वाली 80 विधानसभा सीटों पर दम-खम आजमाने की तैयारी कर रहे संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) के संरक्षक हीरालाल अलावा ने कहा कि मौजूदा आरक्षण प्रणाली से किसी भी किस्म की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जायेगी. हीरालाल अलावा, नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में सहायक प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर सियासी मैदान में उतरे हैं. उन्होंने कहा, “देश में अब भी बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक असमानताएं हैं. सुदूर इलाकों में रहने वाले आदिवासी बुनियादी सुविधाओं के लिये तरस रहे हैं. ऐसे में आरक्षण प्रणाली के मामले में यथास्थिति बनाये रखने की जरूरत है.”

congress and bjp

मुखर जातिगत गोलबंदी के स्‍वर
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर का कहना है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधनों के बाद उभरे हालात सूबे के चुनावी इतिहास के लिहाज से “असामान्य” हैं. उन्होंने कहा, “राज्य में चुनावों के दौरान जातिगत समीकरण तो पहले भी रहे हैं. लेकिन इतनी मुखर जातिगत गोलबंदी पहली बार दिखायी दे रही है. इस स्थिति ने सभी राजनीतिक दलों को सकते में ला दिया है. सियासी पार्टियां इस बारे में रुख स्पष्ट करने में स्वाभाविक कारणों से डर रही हैं कि संबद्ध कानूनी संशोधनों के मसले में वे आरक्षित और अनारक्षित वर्ग में से किस तबके के साथ हैं.”

सोशल इंजीनियरिंग का सहारा
राजनीतिक विश्‍लेषकों के मुताबिक अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधनों के बाद मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के समीकरण बदल गये हैं. इस मुद्दे पर अनारक्षित वर्ग के सिलसिलेवार विरोध प्रदर्शन जारी हैं. जातिगत गोलबंदी के मद्देनजर जानकारों का मानना है कि सियासी दलों को अलग-अलग समुदायों को साधने के लिये चुनावी टिकट वितरण से लेकर प्रचार अभियान तक में “सोशल इंजीनियरिंग” का सहारा लेना पड़ सकता है.

जानकारों के मुताबिक, ग्वालियर-चंबल इलाके, विंध्य क्षेत्र और मालवा-निमाड़ अंचल में जातीय समीकरण चुनाव परिणामों को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं. संबद्ध कानूनी बदलावों के खिलाफ पिछले दिनों इन इलाकों में बड़े विरोध प्रदर्शन देखे गये हैं.

जातिगत गोलबंदी के चुनावी खतरे का सत्तारूढ़ बीजेपी को भी बखूबी अहसास है जो सूबे में लगातार चौथी बार विधानसभा चुनाव जीतने के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. बीजेपी  के चुनावी रणनीतिकारों में शामिल पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा ने कहा, “सबका साथ, सबका विकास के नारे के मुताबिक, सामाजिक समरसता के लिये हम पहले ही काम रहे हैं और तमाम तबकों का हित चाहते हैं.”

अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधनों को लेकर अनारक्षित समुदाय के आक्रोश के बारे में पूछे जाने पर झा ने संतुलित टिप्पणी की, “लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी सबको है.” प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय के लिये आरक्षित हैं, जबकि 35 सीटों पर अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग को आरक्षण प्राप्त है. यानी सामान्य सीटों की तादाद 148 है.

साहसी पत्रकारिता को सपोर्ट करें,
आई वॉच इंडिया के संचालन में सहयोग करें। देश के बड़े मीडिया नेटवर्क को कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर इन्हें ख़ूब फ़ंडिग मिलती है। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें।

About I watch