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“मी टू” आंदोलन ने एक बड़ा ही स्पष्ट संकेत दिया है…

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

स्त्रियों के विरुद्ध ऐसे अपराध होते रहे हैं, इसे नकारा नहीं जा सकता। कोई स्त्री यदि ऐसे अपराधों के विरुद्ध मुखर होती है, तो उसका समर्थन ही धर्म है, इसमें भी दो मत नहीं होने चाहिए। व्यक्तिगत रूप से मैं उन समस्त स्त्रियों के साथ खड़ा हूँ जो देर से ही सही, अपने ऊपर हुए प्रहार के विरुद्ध खड़ी हुई हैं।
पर इस आंदोलन ने एक और स्पष्ट संकेत दिया है। ध्यान से देखिये, मी टू के सर्वाधिक मामले केवल दो क्षेत्रों से हैं, सिनेमा और मीडिया। संख्या की दृष्टि से देखें तो इस क्षेत्र में कुल जनसँख्या का 0.001% भाग भी नहीं है, पर स्त्री प्रताड़ना के 90 फीसदी मामले वहीं से आ रहे हैं। यह कितना हास्यास्पद है कि इस देश में नारीवाद के नाम पर सबसे अधिक शोर मचाने वाले यही लोग हैं।
सिनेमा की लड़कियां अपना कैरियर समाप्त होने के बाद ही इस तरह के अपराधों पर मुह क्यों खोलती हैं यह अलग विषय है, पर यह बात सोलहो आने सच है, कि तनुश्री दत्ता जो कह रही हैं उसमें कुछ भी असत्य नहीं। यदि आप सिनेमा के इतिहास को देखें तो ज्ञात होगा कि यह इंडस्ट्री इससे भी अधिक असभ्य है। एक बार मीना कुमारी को किसी प्रोड्यूसर ने “बेटी” कह दिया तो वे रोने लगी थीं। जिस इंडस्ट्री में फ़िल्म में काम देने के बदले हर बार उन्हें सोफे पर सोने के लिए कहा गया था(शब्द उन्हीं के हैं, मेरे नहीं) उसी इंडस्ट्री का कोई व्यक्ति उन्हें बेटी भी कह सकता है, इसका उन्हें विश्वास नहीं था। विश्वास कीजिये, मीना कुमारी से कंगना राणावत तक कुछ नहीं बदला… बदला है तो बस इतना कि तब की लड़कियों को इससे दुख होता था, और अब सरोज खान जैसी अधिकांश फिल्मी लड़कियां इसे स्वीकार कर चुकी हैं। वे यह सोच कर खुश हैं कि इंडस्ट्री तन लेती है तो रोटी भी देती है। (ये शब्द भी सरोज खान के हैं, मेरे नहीं।) भारतीय फिल्मी संसार ने आज से दस वर्ष पूर्व ही कहा था कि “बलात्कार अनएक्सपेक्टेड सेक्स भर है।”(ये शब्द भी राखी सावंत के हैं मेरे नहीं)
काजोल जैसी अनेक अभिनेत्रियों से असंख्य बार इंटरव्यू में कहा है कि नैतिकता और संस्कार जैसे शब्द बकवास हैं।
अभी जितनी भी लड़कियों ने इस अभियान मे भाग लिया है, सबका कैरियर लगभग लगभग समाप्त हो चुका है। लोग प्रश्न उठा रहे हैं कि तब उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया था? उत्तर बस इतना है कि तब उन्हें कैरियर की चिंता थी, स्वाभिमान की नहीं। फिल्मोद्योग में लड़कियों का कैरियर स्वाभिमान के मूल्य पर ही बनता है, यह सत्य वे लड़कियां भी जानती हैं। जब तक कैरियर की आस है वे इसका विरोध नहीं करेंगी। इसमें उनका दोष नहीं, उन्हें वह दुनिया ऐसा ही बना देती है। आप फिल्मों में आई किसी लड़की का इंटरव्यू सुनिए, और फिर दो तीन वर्ष बाद उसी लड़की का इंटरव्यू सुनिए, आपको दिख जाएगा कि मुम्बई ने उसे क्या बना दिया है।
आलोकनाथ नाना पाटेकर आदि बुड्ढों के विरुद्ध आज लड़कियां मुखर हुई हैं। शक्ति कपूर, अनुराग कश्यप आदि के विरुद्ध पूर्व में भी स्वर उठा है। लोग महेश भट्ट जैसे ऐय्याशों की कहानियां भी जानते हैं, और परवीन बॉबी जैसी अभिनेत्रियों की कहानियां भी जान कर भुला चुके हैं। मुम्बई में हमेशा यही होता रहा है। ऐसा नहीं है कि आज यह नहीं होता, आज पहले से अधिक होता है। पर आज की घटना पर दस साल बाद आवाजें उठेंगी। आपको क्या लगता है फिल्मी दुनिया के बड़े सितारे ऐसी घटनाओं में लिप्त नहीं होंगे क्या? वे भी हैं, किन्तु उनपर उंगली उठाने का साहस नहीं किसी के पास। नाना पाटेकर, आलोकनाथ चवन्नी हैं, और आज के स्टार सौ-टकिया नोट। नाना के विरुद्ध तनुश्री को सपोर्ट करने वाले असंख्य मिल गए हैं, पर सलमान के विरुद्ध जरीन खान को सपोर्ट करने वाला कोई नहीं मिलेगा… यही मुम्बई का सत्य है।
मीडिया की कहानी भी लगभग यही है। वहाँ भी यह गन्दा खेल हमेशा से होता रहा है। कल यहीं फेसबुक पर ही किसी मीडिया की लड़की को पढ़ा था, वह अपने अनुभव बता रही थी। वहाँ भी हर डेग पर मुम्बइया खेल ही खेला जाता है। कभी आपने सोचा है कि प्राइवेट न्यूज चैनल की एंकर को न्यूज पढ़ने के पूर्व डेढ़ किलो मेकप क्यों थोपना पड़ता है? सुंदर दिखना किसी व्यक्ति की व्यकितगत इच्छा हो सकती है, पर जहाँ यह व्यवसायिक मजबूरी जैसा दिखे वहाँ कुछ न कुछ असहज करने वाली स्थिति है।
असल में ये दोनों क्षेत्र आम लोगों का अधिक से अधिक ध्यान खींचने के लिए घृणित से घृणित खेल खेल सकते हैं, और जिस मैदान में गन्दा खेल खेला जाता हो वहां के खिलाड़ी भी गन्दे ही होंगे। मी टू का सारा आयोजन इसी गन्दगी के विरुद्ध है। बुरा बस यह है कि इस गन्दगी के विरुद्ध मुखर होने वाले भी साफ नहीं हैं। वे बस अपनी पीड़ा बेंच रहे हैं…
क्या आप सोच सकते हैं कि आलोकनाथ, नाना या अकबर जेल जाएंगे? नहीं! यह आयोजन उन्हें जेल भेजने के लिए है ही नहीं… मास दो मास में यह खेल समाप्त हो जाएगा। मात्र दस-बीस लाख रुपये खर्च कर के नाना अपने लिए उज्ज्वल चरित्र का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेंगे… कुल खेल इतने भर का है।
हाँ, यदि तनुश्री लम्बी लड़ाई लड़ कर नाना को दण्ड दिलवा देती हैं, तो मेरे लिए वे श्रद्धा की पात्र होंगी। मैं भूल जाऊंगा कि जितनी अभद्रता के लिए वे नाना से लड़ रही हैं, इमरान हाशमी से उससे हजार गुनी अधिक अभद्रता वे कुछ लाख रुपये के बदले स्वीकार कर चुकीं हैं। पर्दे पर, विश्व के सामने… नाना पाटेकर और उनके जैसे सारे अभद्र पुरुषों को दण्ड मिलना चाहिए। ऐसे असभ्यों के कारण ही तनुश्री जैसी देवियाँ सभी पुरुषों को वहशी बताती फिरती हैं।
पर मैं जानता हूँ, ऐसा होगा नहीं…

 

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