नई दिल्ली। देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों का ऐलान हो चुका है. इन राज्यों में मप्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के साथ राजस्थान भी शामिल है. 5 में से 3 राज्यों में भाजपा की सरकार है. इसमें इसमें सबसे कठिन चुनौती उसे राजस्थान में मिल रही है. अलवर और अजमेर के लोकसभा उपचुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा था. तभी से माना जा रहा है कि राजस्थान में भाजपा के लिए ये विधानसभा चुनाव आसान नहीं रहने वाला है. ऐसे में भाजपा ने इन चुनावों में एंटी इनकंबेंसी से निपटने और राज्य में अपना सिंहासन बचाने के लिए कमर कस ली है.
7 दिसंबर को राजस्थान में 200 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे. इकोनोमिक टाइम्स के अनुसार, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर पार्टी कार्यकर्ताओं का दबाव बड़ता जा रहा है. कार्यकर्ताओं का कहना है कि राज्य में कई ऐसे विधायक हैं, राज्य में जिनके खिलाफ हवा है. ऐसे में उन्हें बदलना जरूरी है. अब माना जा रहा है कि पार्टी 200 में से 100 सीटों पर चेहरों को बदल सकती है.
राजस्थान के इतिहास पर नजर डालें तो यहां पर हर चुनाव में आधे से ज्यादा विधायक अपने अगले चुनाव में हार जाते हैं. ऐसे में पार्टी पर पुराने चेहरों को बदलने का दबाव है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि इन विधायकों में कई वरिष्ठ मंत्रियों का भी नाम है. ऐसे 6 कैबिनेट मंत्री हैं, जिनके टिकट पर संकट है, क्योंकि इनकी रिपोर्ट निगेटिव है. इनमें गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया, पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग मंत्री सुरेंद्र गोयल, यूनिस खान, देवस्थानम मंत्री राज कुमार रिन्वा शामिल हैं.
पुराने चेहरों पर भरोसा नहीं करता राजस्थान
राजस्थान की राजनीति में एक चुनाव के बाद ही नेताओं के चेहरों और चाल की चमक फीकी पड़ जाती है. 2008 के चुनावों में भाजपा ने 68 ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जो 2003 में भी चुनाव लड़ चुके थे. लेकिन चुनाव बाद आए नतीजों में 68 में से सिर्फ 28 ही चुनाव जीत सके. बाकी सब हार गए. हारन वाले 40 विधायकों में 13 मंत्री भी शामिल थे. ऐसा ही कांग्रेस के साथ हुआ था. 2013 में कांग्रेस ने 200 में से 105 सीटों पर उन चेहरों को उतारा था, जो 2008 में चुनाव लड़ चुके थे. लेकिन इनमें से सिर्फ 14 विधायक ही चुनाव जीत सके.