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जस्टिस गिरधर मालवीय का दावा- संसद को नहीं है राम मंदिर के लिए क़ानून बनाने का अधिकार

प्रयागराज (इलाहाबाद)/लखनऊ। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में कल से शुरू हो रही महासुनवाई से पहले राम मंदिर निर्माण के लिए अदालत के फैसले का इंतजार किये बिना संसद से क़ानून बनाए जाने की मांग ज़ोर शोर से उठ रही है. हालांकि क़ानून के जानकार लोगों की इस मांग से सहमत नहीं हैं. उनका मानना है कि तमाम अधिकार हासिल होने के बावजूद संसद को मंदिर निर्माण जैसे मुद्दों पर क़ानून बनाने का अधिकार नहीं है.

इस बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज और संविधान के जानकार जस्टिस गिरधर मालवीय का मानना है कि संसद मंदिर निर्माण के लिए क़ानून नहीं बना सकती. उसे ऐसा करने का अधिकार भी नहीं है, क्योंकि क़ानून बनाने के भी कुछ नियम हैं और उन नियमों के तहत कम से कम मंदिर निर्माण के लिए क़ानून तो नहीं बनाया जा सकता.

जस्टिस गिरधर मालवीय का मानना है कि नई बेंच में सुनवाई शुरू होने के बावजूद केस का फैसला आने में ज़्यादा वक्त नहीं लगना चाहिए, क्योंकि पिछली बेंच में हुई सुनवाई के रिकार्ड फाइलों में दर्ज रहते हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि अगर पक्षकारों ने इस मामले में बेवजह की तारीख नहीं ली तो फैसला लोकसभा चुनाव से पहले भी आ सकता है.

जस्टिस मालवीय का मानना है कि इस मामले में अब कोई ट्रायल तो होना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट तो सिर्फ अपील पर सुनवाई कर रही है, इसलिए इसमें बहुत ज़्यादा वक्त लगने का उम्मीद नहीं है. उनके मुताबिक़ अगर पक्षकारों ने आगे भी इस मामले में तारीख ली तो इस नई बेंच से भी फैसला आने की उम्मीद कम ही रहेगी, क्योंकि जजेज के रिटायरमेंट का समय पहले से ही निर्धारित होता है और उसे बढ़ाया नहीं जा सकता. उनका कहना है कि इस मामले में गठित बेंच रिकार्ड के मुताबिक़ ही सुनवाई कर अपना फैसला सुनाएगी और इसमें जन भावनाओं का कोई मतलब नहीं है.

जस्टिस गिरधर मालवीय पिछले लोकसभा चुनाव में वाराणसी सीट पर पीएम नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक थे. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर महसुनवाई कल से शुरू होगी. अदालत इस बार डेटूडे बेसिस पर सुनवाई कर सकती है. सुनवाई शुरू होने से पहले ही संघ प्रमुख मोहन भागवत, वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार और यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य जैसे तमाम लोग मंदिर निर्माण के लिए संसद से क़ानून बनाए जाने की मांग कर चुके हैं.

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