नई दिल्ली। सरकार और बैंकिंग क्षेत्र के नियामक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बीच विवाद कोई नई बात नहीं है. पहले भी कई मौकों पर केंद्रीय बैंक और वित्त मंत्रालय के बीच कई मुद्दों पर मतभेद रहा है. आमतौर पर दोनों के बीच ब्याज दर, बैंकिंग क्षेत्र में तरलता और प्रबंधन को लेकर अलग अलग विचार रहे हैं. हालांकि, अंत में हमेशा विवाद सुलझ जाता है.
इस बार विवाद कुछ ज्यादा बढ़ चुका दिखाई देता है. इस तरह की खबरें हैं कि सरकार ने केंद्रीय बैंक के साथ रिजर्व बैंक कानून की धारा 7 के तहत विचार विमर्श शुरू किया है. पूर्व में कभी इस प्रावधान का इस्तेमाल नहीं किया गया है.
वित्त मंत्रालय ने हालांकि, इस बीच बयान जारी कर रिजर्व बैंक की स्वायत्तता पर जोर दिया है. लेकिन मंत्रालय ने इस पर चुप्पी साधी हुई है क्या उसने कानून की धारा 7 का इस्तेमाल किया है.
वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल के बीच कई मसलों पर विवाद है. इसमें वित्तीय दबाव वाले बिजली क्षेत्र को राहत, सार्वजनिक क्षेत्र के कमजोर बैंकों की स्थिति, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के समक्ष आ रही नकदी की दिक्कतों को दूर करने और रिजर्व बैंक से अलग स्वतंत्र भुगतान नियामक प्राधिकरण का गठन शामिल है.
इसके अलावा दोनों के बीच ब्याज दरों के मसले पर भी विवाद की स्थिति है.
पटेल से पहले पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को भी कई बार सरकार के साथ टकराव की स्थिति से दोचार होना पड़ा. इनमें एनपीए और प्रबंधन और नोटबंदी जैसे मुद्दे शामिल हैं.
राजन से पहले डी सुब्बाराव का भी तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम के साथ ब्याज दरों को लेकर विवाद होता रहा. पद छोड़ने से पहले सुब्बाराव ने चिदंबरम के एक पुराने बयान जिसमें उन्होंने कहा ‘आर्थिक वृद्धि बढ़ाने को सुनिश्चित करने की राह पर मैं अकेला चलूंगा’, पर निशाना साधा था.