राहुल कुमार गुप्त
यूपी पीसीएस-2018 पर भ्रमित प्रश्नों की मार-
निगेटिव मार्किंग और भ्रमित प्रश्नों के मिश्रण ने किया परेशान
कई सालों से विवादित प्रश्नों को आयोग दे रहा प्रश्नपत्रों में जगह
इसके पहले की कई परीक्षाओं में अदालत ने प्रश्नों को सही करने के जारी किये थे आदेश, जो आयोग के लिए रहे बेअसर
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण परीक्षा कुछ वर्षों से विवादों के घेरे में है और यह निरंतरता निजाम बदलने के बाद भी यथावत है। पूर्व में उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग की लचर व्यवस्था का शिकार हुए अभ्यर्थियों के लिये न्याय नामक कोई संकल्पना शायद इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में बची हो, अब तक यह केवल दूर की कौड़ी साबित हूई है।
हाल ही में यह सिलसिला 2011-12 से शुरू हुआ, उच्च न्यायालय प्रश्नों के उत्तर सही करने के आदेश जारी करता रहा लेकिन आयोग अपनी चाल चलता रहा। इन तथाकथित विशेषज्ञों और आयोग की जिद और मनमानी के भंवर में कई अभ्यर्थी अपनी इच्छाओं, अपने सपनों, अपने अरमानों व खुद को इसमें फंसा पाते हैं। और अंततः यहीं भँवर इनके अरमानों व मेहनत की कब्रगाह बन जाती है। पर फर्क किसे पड़ता है। सही न्याय तो लोकतंत्र का आधार है किन्तु आयोग और सरकार अपनी नाक की बात समझकर इस मामले को दफन करते आये हैं और वही हाल निजाम बदलने के दूसरी बार हो रहा है। यूपीपीसीएस प्री एक्जाम 2017 के 5-6 प्रश्नों के गलत उत्तर ही मान्य रहे। कोर्ट के आदेश का भी कोई असर न रहा, बिलकुल वैसे ही जैसे की पूर्ववर्ती सरकारों में!! कई ऐसे अभ्यर्थी जो उम्र के उस पड़ाव में हैं जहाँ आयोग के एक ही प्रश्न पर गलत उत्तर जारी करना उन अभ्यर्थियों की सारी मेहनत पर पानी फेर देता है क्योंकि उनमें से कई एक प्रश्न से ही चूक गये होते हैं, वहीं से कट आफ तैयार हो जाती है और तमाम ऐसे अभ्यर्थी जो उस परीक्षा के लिये योग्य होते हुए भी बाहर हो जाते हैं उनमें से बहुधा उम्रदराज वाले अभ्यर्थियों के लिये ऐसे फैसले किसी काल से कम नहीं होते। ऐसे भँवर में फँसे कई अभ्यर्थियों ने आँखों में आँसू लाते हुए बताया कि इन प्रश्नों के गलत उत्तर के लिये हम क्यों जिम्मेदार हों? माननीय उच्च अदालत उत्तरों को सही करने का आदेश देती है किन्तु आयोग बिना परवाह किये बिना कोई बदलाव किये अपने जिद पर ही अड़ा रहा और लगभग एक दशक से यह निरंतर बना हुआ है।
अभी हाल ही में आयोग द्वारा आयोजित 28 अक्टूबर 2018 को यूपी पीसीएस प्री की परीक्षा में विवादित और भ्रमित प्रश्नों ने अभ्यर्थियों के अंदर रोष उत्पन्न कर रहा है। निगेटिव मार्किंग के चलते भ्रमित प्रश्न और विवादित प्रश्नों को प्रश्नपत्र में रखने की क्या वजह हो सकती हैं यह आयोग ही जाने? किंतु जिन विशेषज्ञों ने इन प्रश्नों को तैयार किया है उनका मकसद क्या है ऐसे कई प्रश्न जो इस बार के प्रश्नपत्र में हैं कुछ अलग-अलग एथेंटिक किताबों में उनके उत्तर भी अलग-अलग हैं। ऐसे में अब आयोग के द्वारा जारी की जाने वाली उत्तरकुंजी में ही ज्ञात हो सकेगा कि किस स्रोत को सही माना जा रहा है।
A सीरीज का 12 वां प्रश्न वृक्ष के पत्तों की सरसराहट की ध्वनि तीव्रता जहां परीक्षा वाणी समेत कई एथेंटिक किताबों में 10 डेसीबल दिये है वहीं कुछ अन्य किताबों में यह 20 डेसीबल दिये है। हो सकता है वृक्षों के पत्तों की सरसराहट 20 db हो किंतु यहां वृक्ष के पत्तों की सरसराहट पूछ रहा है तो ऐसी स्थिति में इसका उत्तर 10db ही सही आ रहा है। अब यह आयोग ही तय करेगा कि इसका कौन सा उत्तर किस वजह से ले रहा है। इतने छोटे-छोटे फर्क जोकि फर्क समझ में ही नहीं आता माइनस मार्किंग वाले इस एक्जाम में अभ्यर्थियों के लिये परेशानी का सबब जरूर बन रहे हैं।
इसी तरह A सीरीज का ही 21वां प्रश्न मिस प्रिंट की वजह से नहीं बल्कि गलत अनुवाद की वजह से अभ्यर्थियों के लिये परेशानी का कारण बना। 21 के तीसरे बिंदु में इंग्लिश में जहां इंडिया इज डायस्टर फ्री कंट्री दिये है वहीं हिंदी में इसकी जगह ‘भारत आपदा युक्त देश है’ ऐसा दिये हुए है। हिंदी का अभ्यर्थी हिंदी को देखते हुए प्रश्न हल करता है और इंग्लिश वाला इंग्लिश को। आयोग की गाईड लाईन में मिस प्रिंट की स्थिति में इंग्लिश वाला पोर्शन मान्य होगा। लेकिन आयोग के गलत अनुवाद की स्थिति का भोगी अभ्यर्थी को बनाना उचित नहीं। अब आयोग इस प्रश्न पर क्या निर्णय लेता है यह तो उत्तरकुंजी जारी होने के बाद ही पता लगेगा। अगर अपनी गलती के बावजूद इंग्लिश वाले उत्तर को सही माना जा रहा है तो यह हिंदी माध्यम वालों को उन्हीं के हिंदी राज्य वाले प्रदेश में उनकी राजभाषा, उनकी मातृभाषा हिंदी की वजह से उन्हें इस एक प्रश्न या कहिये किस्मत से बाहर होना पड़ेगा। इसी तरह सीरीज A का ही 25वें प्रश्न पर अभ्यर्थियों को दिक्कत हूई। क्योंकि धूआँ में आँखों के जलन के लिये शक्तिशाली कारक वैसे तो सल्फर डाई आक्साईड कई तथ्यात्मक स्रोतों में दिये है, किंतु कई अलग-अलग स्रोतों में ओजोन और PAN भी दिये है किंतु यह सामान्य धूएं के कारक नहीं हैं। अभ्यर्थी इस प्रश्न पर भी आयोग की ओर टिकटिकी लगाये हुए हैं। इसी सीरीज का 35 वां प्रश्न भारत सरकार द्वारा ‘महिला एवं बालविकास’ के लिए स्वतंत्र मंत्रालय कब स्थापित किया गया के चारों विकल्प में सही उत्तर नहीं था। निगेटिव मार्किंग की वजह से भी इस प्रश्न को बहुत से अभ्यर्थियों ने छूने की हिमाकत नहीं की। क्योंकि सन् 2006 इसका सही उत्तर था जोकि विकल्प में नहीं था। जिससे कई अभ्यर्थियों को इस प्रश्न को छोड़ना पड़ा।
इसी प्रकार 137वें प्रश्न जिसमें उत्तर प्रदेश की निम्नलिखित नदियों में कौन सी पर्यावरण प्रदूषण के कारण जैविक आपदा घोषित हो गयी है के तीनों विकल्प यमुना, सई और गोमती अभ्यर्थियों को संभावित लग रहे थे, इसी तरह 138 वें प्रश्न में तिरुपति वेंकटेश्वर जी का मंदिर किस पहाड़ी पे है का सही उत्तर तिरुमला पहाड़ी है किन्तु चारों विकल्प में तिरुमला पहाड़ी न होने से इस प्रश्न ने भी अभ्यर्थियों को परेशान किया। माइनस मार्किंग के चलते विवादित व भ्रमित प्रश्नों को आयोग द्वारा लिये जाने के पीछे कौन सी दूरदर्शिता है यह आयोग ही जाने? किंतु इस बार लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित इस परीक्षा ने यूपीपीसीएस की तैयारी को लेकर यह तय कर दिया है कि अभ्यर्थियों को गहराई से विस्तृत अध्ययन के अलावा परम्परागत प्रश्नों से भी हटकर कुछ नये तरह के प्रश्नों को भी पढ़ने की आदत को अपनाना पड़ेगा। क्योंकि प्री पेपर का प्रारूप बहुत ही ज्यादा परिवर्तनीय होने की वजह से अभ्यर्थियों के लिये परेशानी उत्पन्न करता रहता है। पहली बार अधिकांश अभ्यर्थी उत्तरकुंजी और कटआफ के लिये आयोग की ओर निगाहें जमाये हुए हैं। वहीं अनुभवी कोचिंग संचालकों व सीनियर अभ्यर्थियों के अनुसार सीटों की संख्या अन्य वर्षों की अपेक्षा लगभग दस गुनी है। ऐसी स्थिति व निगेटिव मार्किंग के चलते कटआॅफ अन्य वर्षों की अपेक्षा काफी कम रहने की उम्मीद है।