नई दिल्ली। मोदी सरकार में आर्थिक सलाहकार की भूमिका निभा चुके अरविंद सुब्रह्मण्यन ने नोटबंदी को एक बड़ा झटका करार दिया. उन्होंने कहा, ”नोटबंदी इकोनॉमी के लिए एक खतरनाक और तगड़ा झटका था. इससे अर्थव्यवस्था के विकास की रफ्तार तेजी से गिरने लगी.”
देश के पूर्व आर्थिक सलाहकार ने पहली बार नोटबंदी पर अपनी चुप्पी तोड़ी है. उन्होंने अपनी किताब ‘ऑफ काउंसेल: द चैलेंजेस ऑफ द मोदी-जेटली इकोनॉमी’ में नोटबंदी समेत अर्थव्यवस्था के कई मुद्दों पर अपनी बात रखी है. हालांकि उन्होंने अपनी किताब में इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि नोटबंदी की घोषणा से पहले इसकी जानकारी उन्हें दी गई थी या नहीं.
अरविंद सुब्रह्मण्यन अपनी किताब में लिखते हैं, ”नोटबंदी अर्थव्यवस्था को एक तगड़ा और खतरनाक झटका था. इस एक कदम से चलन में 86 फीसदी मुद्रा बाहर निकाल दी गई थी. नोटबंदी का असर रियल जीडीपी पर देखने को मिला.” अरविंद कहते हैं कि इकोनॉमी की रफ्तार वैसे पहले से ही धीमी थी. लेकिन नोटबंदी के बाद यह और भी तेजी से गिरने लगी.”
अरविंद ने किताब में लिखा कि नोटबंदी से पहले की 6 तिमाही में अर्थव्यवस्था की रफ्तार 8 फीसदी की दर से थी. नोटबंदी के बाद की बात करें, तो इसके बाद 7 तिमाही में इकोनॉमी की रफ्तार घटी और यह 6.8 फीसदी पर आ गई.
देश के पूर्व आर्थिक सलाहकार लिखते हैं कि नोटबंदी की वजह से इकोनॉमी की रफ्तार धीमी हुई, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता. इसकी बजाय बहस इसके असर पर हुई है. कि क्या इसका असर 2 फीसदी अंक था या उससे भी कम.
वह कहते हैं कि सिर्फ नोटबंदी ही नहीं, इस दौरान अन्य कई चीजों ने भी इकोनॉमी के ग्रोथ को प्रभावित किया. इसमें ब्याज दरें, जीएसटी लागू होना और तेल की बढ़ती कीमतें भी शामिल थीं.
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा की थी. इस घोषणा के बाद 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट चलन से बाहर हो गए थे.