भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच गुरुवार से टेस्ट सीरीज का पहला मैच खेला जाएगा. हम हिन्दुस्तानी नींद से जाग रहे होंगे तभी विराट कोहली की अगुवाई में हमारी टीम इंडिया एडिलेड के मैदान पर ऑस्ट्रेलिया के साथ मैच खेलना शुरू कर देगी. कुछ क्रिकेटप्रेमी मैच के हर गेंद का आनंद लेने के लिए सुबह साढ़े पांच बजे ही टीवी स्क्रीन के सामने आंखें टिका देंगे. पिछले कुछ दशक में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट सीरीज में एक अलग लेवल का आनंद देखने को मिलता है. एडिलेड में होने वाले मैच से पहले हम आपको फ्लैशबैक में लिए चल रहे हैं. रोमांच के हिसाब से अगर पिछले दो दशक में भारतीय टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे की तुलना करें तो 2003-04 की सीरीज जेहन में याद आती है. सौरव गांगुली की कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया गई टीम इंडिया ने कई ऐसे कारनामे किए थे, जो सदियों तक याद रखने लायक हैं. आइए ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट मैच देखने से पहले 2003 के सीरीज की अच्छी यादें एक बार फिर जेहन में ताजा करते हैं. यहां हम टीम इंडिया की बैटिंग पक्ष की बातें कर रहे हैं.
गांगुली का दिखा था सेनापति अवतार
सीरीज का पहला मैच ब्रिसबेन के मैदान पर खेला जा रहा था. ऑस्ट्रेलिया ने पहले बैटिंग करते हुए जस्टिन लैंगर के 121 रनों की बदौलत 323 रन बनाए थे. पहली पारी में बैटिंग करने उतरी टीम इंडिया ने महज 62 रनों के स्कोर पर वीरेंद्र सहवाग, राहुल द्रविड़ और सचिन तेंदुलकर के विकेेेट गंवा दिए थे. इंडियन फैंस के चेहरे पर मायूसी आ चुकी थी. जेसन गिलेस्पी, नॉथन ब्रेकन और एंडी बिकल की तिकड़ी गांगुली को लगातार शॉट पिच गेंदें डाल रही थी. ज्यादातर गेंदें इस तरह से पटकी जा रही थी कि उनकी लेंथ कमर से ऊपर थी. यह सब देखकर मन में चल रहा था कि कप्तान सौरव गांगुली भी जल्दी ही आउट हो जाएंगे, क्योंकि भारत के कप्तान की बैटिंग में यही कमी थी.
सौरव गांगुली इस मैच में कुछ और ही सोच कर उतरे थे. जेसन गिलेस्पी, नॉथन ब्रेकन और एंडी बिकल की शॉर्ट पिच गेंदें उनके इरादों से नहीं डिगा पाईं. सौरव गांगुली ने क्रीज पर ऐसे पांव जमा लिए जैसे किसी युद्ध में सेनापति तलवार भांजते हुए विरोधी खेमे में खलबली मचा देता है. गांगुली ने 144 रन की पानी खेलकर वीवीएस लक्ष्मण (75 रन) के साथ साझेदारी करके टीम को मुश्किल घड़ी से बाहर निकाल ले गए. गांगुली की इस पारी की बदौलत टीम इंडिया पहली पारी में 409 रन बना पाई. आखिरकार यह मैच ड्रॉ पर खत्म हुआ. क्रिकेट एक्सपर्ट मानते हैं कि गांगुली की इस पारी से न केवल भारत मैच बचा पाया बल्कि, टीम इंडिया के अन्य बल्लेबाजों के मन से ऑस्ट्रेलियाई पिच को लेकर डर भी खत्म हो गया. इसका असर सीरीज के सारे मैचों में देेखने को मिला.
राहुल द्रविड़ ने दुनिया को सिखाया कैसे हारेंगे कंगारू
1990-2000 के दशक में ऑस्ट्रेलियाई टीम जीत की गारंटी मानी जाती रही. दुनिया की ज्यादातर टीमें ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के सामने सरेंडर करते दिखते थे. ऐसे में 2003-04 की सीरीज में राहुल द्रविड़ ने ऑस्ट्रेलियाई बॉलरों की जमकर खबर ली. द्रविड़ ने अपनी पारियों से दुनिया को बता दिया कि अगर कंगारूओं को उनकी धरती पर हराना हो तो उसकी तरकीब क्या है. सीरीज का पहला मैच ड्रॉ होने से ऑस्ट्रेलिया की टीम दूसरे मुकाबले में जीत के प्रति भूखी दिखी. कप्तान रिकी पोंटिंग ने 242 रन की इनिंग खेलकर पहली पारी में 556 का विशाल स्कोर खड़ा कर दिया. जब टीम इंडिया की पारी शुरू हुई तो वीरेंद्र सहवाग (41 बॉल 47 रन) ने आकाश चोपड़ा (27) के साथ तेज शुरुआत की, लेकिन जल्दी ही टीम इंडिया ने 85 रन के स्कोर पर टॉप के 4 विकेट गंवा चुकी थी. तभी राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण ऑस्ट्रेलियाई बॉलरों पर टूट पड़े. दोनों ने तेज गेंदों पर डिफेंस और गति से भटकी बॉल पर कलाई घुमाकर चौके जड़कर कंगारू टीम के हौसले पस्त कर दिए. द्रविड़ के 233 और लक्ष्मण के 148 रन की बदौलत टीम इंडिया ने 523 रन बनाए. मैच की चौथी पारी में राहुल द्रविड़ ने 72 रन की पारी खेलकर टीम इंडिया को 4 विकेट से जीत दिला दी. इसके अलावा द्रविड़ ने तीसरे मैच में 49 और 91 और चौथे मैच में 38 और 91 रनों की पारी खेली. क्रिकेट के स्टूडेंट्स इन मैचों का वीडियो देखकर द्रविड़ से सीख सकते हैं आउट स्विंग और उछाल लेती बॉल का डिफेंस कैसे किया जाता है.
सहवाग ने की कंगारू बॉलरों की धुनाई
2003 की सीरीज में टीम इंडिया के अच्छे प्रदर्शन में ओपनर वीरेंद्र सहवाग की ताबड़तोड़ बल्लेबाजी का काफी योगदान रहा. इससे पहले टीम इंडिया जब कभी ऑस्ट्रेलियाई पिच पर खेलती तो सलामी बल्लेबाज डिफेंसिव मूड में खेलते. इस वजह से ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज शुरुआत से ही टीम इंडिया पर हावी हो जाते थे. 2003 के सीरीज में ओपनिंग करते हुए वीरेंद्र सहवाग ऑस्ट्रेलियाई बॉलिंग अटैक को शुरुआत में ही तहस-नहस करते दिखे थे, जिससे मिडिल ऑर्डर को क्रीज पर पांव जमाने के पर्याप्त मौके मिले. पहले मैच में सहवाग ने 51 गेंदों में 45 रन बनाकर जो इरादे दिखाए थे उसे पूरी सीरीज में कायम रखा था. दूसरे मैच की दोनों पारियों में सहवाग ने 47-47 रनों की पारी खेली थी. मेलबर्न में खेले गए तीसरे मैच में सहवाग ने 195 रनों की ताबड़तोड़ पारी खेली. इस पारी में वीरू ने 25 चौके और 5 छक्के जमाए. वह छक्का जमाने के फेर में ही अपना विकेट भी गंवाए. चौथे मैच में सहवाग ने 72 और 47 रनों बनाए थे. इन सभी पारियों में सहवाग का स्ट्राइक रेट 80 से ज्यादा का रहा. इन पारियों की बदौलत सहवाग ने जता दिया था कि ऑस्ट्रेलियाई बॉलर अलग नहीं हैं, उनकी भी धुनाई की जा सकती है.
कैसे भूला जा सकता है लक्ष्मण का क्लास
चार मैचों की सीरीज में 1-1 की बराबरी पर खत्म हुई थी, जो भारत के लिहाज से जीत थी. टीम के इस प्रदर्शन में वीवीएस लक्ष्मण का अहम रोल रहा. लक्ष्मण ने पूरी सीरीज के हर मुश्किल घड़ी में टीम इंडिया के खेवनहार बने. ऑस्ट्रेलियाई बॉलर जब उन्हें अंदर की तरफ आती गेंदें डालते तो वे उसे वहीं जमीन में डिफेंस कर देते, वहीं बाहर जाती बॉल का कलाई के सहारे दिशा दे देते. उनकी इस टेक्निक के सामने ऑस्ट्रेलियाई बॉलर बेबस दिखे थे. पहले मैच में जब गांगुली ने मोर्चा संभाल तो लक्ष्मण (75 रन) उनके छोटे भाई की भूमिका में दिखे. दूसरे मैच में राहुल द्रविड़ ने 233 रनों की पारी खेली तो दूसरे छोर से लक्ष्मण ने 148 रन बनाए थे. दूसरी पारी में भी लक्ष्मण ने 32 रन बनाए थे. तीसरे मैच में असफल होने के बाद टीम के लक्ष्मण ने चौथे मैच की पहली पारी में 148 रनों की पारी खेलकर अपने क्लास का एक और नमूना पेश किया था.
आखिर में सचिन ने दिखाई अपनी महानता
सीरीज की शुरुआती तीन मैचों में सचिन तेंदुलकर का बल्ला पूरी तरह खामोश रहा. तीन मैचों की छह पारियों में एक बार भी 50 का आंकड़ा पार नहीं कर पाए. आखिरी मैच में सचिन तेंदुलकर ने 241 रनों की पारी खेलकर अपनी महानता साबित की. इस पारी में सचिन 33 चौके जमाए. उन्होंने एक बार फिर से ऑस्ट्रेलियाई बॉलरों की गेंदों को जहां चाहा वहां बाउंड्री के पार भेजा. सचिन की इस पारी और लक्ष्मण (178 रन) की पारी की बदौलत टीम इंडिया ने पहली पारी में 705 रनों का विशाल स्कोर खड़ा कर पाया. हालांकि यह मैच ड्रॉ पर खत्म हुआ लेकिन सचिन की बैटिंग को आज तक याद किया जाता है.
यह टेस्ट सीरीज 1-1 की बराबरी पर खत्म हुई थी, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ था कि टीम इंडिया के इतने सारे बैट्समैन ने ऑस्ट्रेलियाई धरती पर एक सीरीज में प्रदर्शन किया था. सीरीज में पहली बार टीम इंडिया के बल्लेबाजों ने कंगारू बॉलरों की आंखों में आंखे डालकर शॉट्स लगाते दिखे थे. क्रिकेट के जानकार मानते हैं कि इस सीरीज के बाद से भारतीय टीम ऑस्ट्रेलियाई धरती पर बेखौफ होकर खेलती आ रही है.