नई दिल्ली। पूर्व सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि केंद्रीय सूचना आयोग को सरकार द्वारा उसके खिलाफ दायर मुकदमों के खतरे का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने इसमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्तक्षेप की मांग की है.
राष्ट्रपति को लिखे एक पत्र में उन्होंने ‘सार्वजनिक भागीदारी के खिलाफ रणनीतिक मुकदमें’ (एसएलएपीपी) की वैश्विक प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है. उन्होंने कहा कि ,‘एसएलएपीपी एक प्रकार का ओछा मुकदमा है, जिसका मकसद जीतना नहीं बल्कि किसी संगठन या एक व्यक्ति के खिलाफ बोलने जैसी सार्वजनिक अभिव्यक्तियों को रोकने के लिए भयभीत करना है.’
उन्होंने अपनी बात सही परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से संबंधित दो आदेशों का हवाला दिया है.
उन्होंने कहा, ‘यहां सीआईसी और नागरिक पर निशाना साधा जाता है. दुर्भाग्यवश सरकारी संस्थान सीआईसी और नागरिकों, जो सूचना के अधिकार कानून के तहत सूचना मांग रहे हैं, के खिलाफ हर तरफ से रिट याचिकाएं दायर कर रहे हैं.’
आचार्युलू ने कहा कि आरबीआई ने सीआईसी को दो अलग अलग मामलों में पक्षकार बनाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है. आचार्युलू ने जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों के नामों का खुलासा करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करने को लेकर रिजर्व बैंक को आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने जानबूझ कर कर्ज नहीं चुकाने वालों के नामों का खुलासा करने को लेकर पूर्व सूचना आयुक्त शैलेश गांधी का आदेश बरकरार रखा था. इस आदेश की अवहेलना के लिए आचार्युलू ने आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था.
आरबीआई ने सीआईसी के एक अन्य आदेश को चार जुलाई को चुनौती दी थी. इसमें रिजर्व बैंक के सूचना अधिकारी को स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के विदेशी दाताओं के विस्तृत ब्योरे का खुलासा नहीं करने के लिए सूचना आयुक्त सुधीर भार्गव ने कारण बताओ नोटिस जारी किया था.
आचार्युलू ने कहा कि सरकारी कार्यालय संसद की इच्छा के अनुसार भारत संघ द्वारा बनाये गये सूचना आयोग से अपने अधिकारों को सुरक्षित करना चाहते हैं.
उन्होंने कहा, ‘भारत संघ, जिसमें सीआईसी एक हिस्सा है, सीआईसी के आदेशों को यह कहते हुए चुनौती देता है कि एक सरकारी कर्मचारी की शैक्षणिक योग्यता उनकी निजी जानकारी और उसका खुलासा करना उनकी गोपनीयता के अनुचित अतिक्रमण का कारण बन जायेगी.’
उन्होंने कहा, ‘मेरा केवल एक सवाल है कि जब मैं, सीआईसी के रूप में , भारत संघ का हिस्सा हूं, और जब भारत संघ खुद ही मेरे आदेश के खिलाफ लड़ता है तो मेरा बचाव कौन करेगा.’
आचार्युलू ने कहा कि सीआईसी के खिलाफ लगभग 1,700 रिट याचिकाएं दायर की गई है, जिनमें से ज्यादातर, सरकार और आरबीआई आदि जैसे उसके संस्थानों द्वारा दायर की गई है जो आश्चर्यजनक और अफसोस की बात है.
उन्होंने कहा, ‘मैं मानता हूं कि संवैधानिक अदालतों के पास सीआईसी के आदेशों की न्यायिक समीक्षा का अधिकार है. लेकिन क्या सरकार नियमित रूप से सीआईसी को इस तरह की हर याचिका में प्रतिवादी संख्या एक बना सकती है.’
आचार्युलु ने कहा, ‘मैं भारत के राष्ट्रपति से अपील करता हूं कि वे लोगों के सूचना का अधिकार को ऐसे मुकदमों (एसएलएपीपी) से बचाएं और सरकारी निकायों द्वारा रिट याचिकाएं और आरटीआई में गैर कानूनी संशोधन से केंद्रीय सूचना आयोग की रक्षा करें.’ बता दें कि एम. श्रीधर आचार्युलू 22 नवंबर 2013 से 21 नवंबर 2018 तक केंद्रीय सूचना आयोग में केंद्रीय सूचना आयुक्त थे.