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सरकार CBI निदेशक के खिलाफ CVC जांच को तर्कपूर्ण अंजाम तक लेकर जाए- राकेश अस्थाना

नई दिल्‍ली। CBI vs CBI मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ मामले की सुनवाई कर रही है. CVC की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब में कहा कि CVC की संसद के प्रति जवाबदेही है. यहां गम्भीर मामलों की जांच करने के बजाए CBI के दोनों अधिकारी एक दूसरे के खिलाफ FIR दर्ज़ कर रहे थे. एक-दूसरे के यहां रेड हो रही थी. बड़े असाधारण हालात हो गए थे और ऐसी सूरत में CVC को कदम उठाना ज़रूरी था.

तुषार मेहता ने कहा कि CBI में जैसे हालात थे, उसमें CVC मूकदर्शक बनकर नहीं बैठा रह सकता था. ऐसा करना अपने दायित्व को नज़रअंदाज़ करना होता. दोनों अधिकारी एक-दूसरे के ऊपर छापा डाल रहे थे. कुछ और दलीलों के साथ इस केस में CVC की बहस पूरी कर ली गई. इस केस में CVC की बहस पूरी कर ली गई.

इससे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि सीबीआई के दोनों अधिकारियों के बीच टकराव क्या रातों-रात हो गया जो चयन कमेटी की मंजूरी के बिना सरकार को आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने का फैसला लेना पड़ा. क्या ये बेहतर नहीं होता कि ऐसा कदम उठाने से पहले चयन कमेटी से परामर्श किया होता.

वहीं, जस्टिस संजय किशन कौल ने CVC से पूछा, अगर हम ये मान लें कि उस समय की परिस्थितियों के अनुसार सरकार की कार्रवाई जरूरी थी तो आपने चयन समिति से संपर्क क्यों नहीं किया? CJI ने कहा, आलोक वर्मा का कहना है कि उन्हें उनके अधिकारों से दूर करने वाली कोई भी कार्रवाई विनीत नारायण मामले में दिए गए फैसले को भी प्रभावित करती है. सरकार को ऐसी किसी भी कार्रवाई के लिए चयन समिति की अनुमति चाहिए.

इससे पहले बुधवार को सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि सीबीआई के दो बड़े अधिकारी निदेशक और विशेष निदेशक आपस मे लड़ रहे थे. ख़बरें मीडिया में आ रही थीं, जिससे सीबीआई की छवि ख़राब हो रही थी. सरकार ने सीबीआई प्रीमियम एजेंसी में लोगों का भरोसा बनाए रखने के उद्देश्य से वर्मा से कामकाज वापस लिया था.

वेणुगोपाल ने कहा था कि वर्मा का ट्रांसफ़र नहीं किया गया, इसलिए चयन समिति से परामर्श लेने की ज़रूरत नहीं थी और आलोक वर्मा अभी भी सरकारी आवास और दूसरी सुविधाओं का फायदा उठा रहे हैं. PM की अध्यक्षता वाला पैनल डायरेक्टर के लिए चयन करता है, उसे नियुक्त करने का अधिकार नहीं है. कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से सवाल किया था कि आपका कहना है कि सारा विवाद पब्लिक डोमेन में था, क्या आलोक वर्मा ने कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस की, उनकी तरफ से कोई प्रेस स्टेटमेंट जारी किया.

दरअसल, इससे पहले आलोक वर्मा से कामकाज वापस लिए जाने के आदेश को सही ठहराते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि चयन और नियुक्ति में अंतर होता है. तीन सदस्यीय समिति सीबीआई निदेशक के लिए नामों का चयन करती है और पैनल तैयार करके सरकार को भेजती है, उसमें किसे चुनना है यह सरकार तय करती है और सरकार ही नियुक्ति करती है. चयन को नियुक्ति नहीं माना जा सकता.आपको बता दें कि सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मा ने निदेशक पद का कामकाज वापस लिये जाने के आदेश को चुनौती दी है. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और गैर सरकारी संस्था कामनकाज ने वह आदेश रद करने की मांग की है.

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सीबीआई निदेशक के ट्रांसफर से पहले चयन समिति से इजाजत लेने के कानूनी प्रावधानों के उल्लंघन के आरोपों का जवाब देते हुए कहा था कि वर्मा का स्थानांतरण नहीं किया गया है, वह अपने दिल्ली के घर में रह रहे हैं. उनसे कामकाज वापस लिये जाने के आदेश को सही ठहराते हुए वेणुगोपाल ने कहा था कि सरकार की प्राथमिक चिंता लोगों का सीबीआई में भरोसा बनाए रखना का था. सीबीआई के दो शीर्ष अधिकारियों ने एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए थे. सीबीआई के बारे में लोगों की राय खराब हो रही थी. इसलिए सरकार ने दखल देने का फैसला किया. उन्होंने कहा था कि केन्द्रीय सर्तकता आयोग (सीवीसी) को सीबीआई की पूरी निगरानी का अधिकार है. सीवीसी का यह अधिकार सिर्फ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सीवीसी कानून मे दिये गए सभी मामलों की निगरानी का अधिकार है.

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