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तंदूर कांड: दिल्‍ली HC ने 23 साल से जेल में बंद सुशील शर्मा को रिहा करने का दिया आदेश

नई दिल्‍ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने तंदूर कांड के दोषी सुशील शर्मा को रिहा करने का आदेश दिया. अपनी पत्नी नैना साहनी की हत्या कर तंदूर में जलाने वाला सुशील 23 साल से जेल में है. इससे पहले दिल्ली सरकार की सज़ा समीक्षा बोर्ड ने रिहाई से मना कर दिया था. हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सुशील शर्मा अपने जुर्म के लिए सजा काट चुका है ऐसे में उसे और दिन जेल में नहीं रखा जा सकता है.

पुराने नियम के मुताबिक उम्र कैद में 14 साल की सजा पाने के बाद सरकार किसी भी कैदी के आचरण के आधार पर उसे रिहा करने का फैसला ले सकती है सुशील शर्मा के मामले में पाया गया था कि 23 साल जेल में रहने के दौरान उसका आचरण सही था. इस आधार पर सुशील शर्मा ने रिहा करने की मांग की थी.

इससे पहले हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा था कि तंदूर कांड के आरोपी सुशील शर्मा को 23 साल की कैद के बाद भी रिहा क्यों नहीं किया गया है? इसे गंभीर मामला बताते हुए कोर्ट ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया था. यूथ कांग्रेस के पूर्व नेता सुशील ने 1995 में अपनी पत्नी नैना साहनी की हत्या कर शव तंदूर में जला दिया था.

दिल्‍ली हाई कोर्ट के सवाल
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले शुक्रवार को इस मुद्दे को “गंभीर” बताते हुए दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया था और इस मामले में शर्मा की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर उसका पक्ष मांगा. याचिका में इस आधार पर जेल से रिहा करने की मांग की गई कि वह 23 साल से जेल में बंद है जिसमें क्षमा की अवधि भी शामिल है और उसे लगातार बंदी बनाकर रखा जाना अवैध है.

उस सुनवाई में पीठ ने कहा था कहा कि किसी व्यक्ति की जिंदगी एवं आजादी पर विचार करना सर्वोपरि है और इसने दिल्ली सरकार से पूछा कि किसी व्यक्ति को “अनिश्चितकाल” तक कैसे हिरासत में रखा जा सकता है. शर्मा की याचिका के मुताबिक समय से पूर्व रिहाई के दिशा-निर्देश कहते हैं कि एक अपराध के लिए मिली उम्रकैद की सजा के दोषियों को 20 साल की सजा के बाद और घृणित अपराधों में 25 साल की सजा के बाद रिहा कर दिया जाना चाहिए.

तंदूर हत्याकांड के तौर पर जाना जाने वाला यह मामला भारत के ऐसे आपराधिक मामलों में से एक है जिसमें आरोपी के दोष को साबित करने के लिए डीएनए साक्ष्य और दूसरी बार पोस्टमार्टम कराने का सहारा लिया गया था. अपनी याचिका में शर्मा ने तर्क दिया कि जेल में और पैरोल पर बाहर रहने के दौरान उसका आचरण “अच्छा” रहा और उसने कभी भी अपनी छूट का अनुचित इस्तेमाल नहीं किया.

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