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शिवसेना का पीएम मोदी से सवाल, जब कोर्ट को ही निर्णय लेना था तो क्यों किया था मंदिर आंदोलन?

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के टीवी इंटरव्यू को लेकर शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए सवाल किया कि क्या जनता को उसके सवालों को जवाब मिल गया है? लेख में लिखा है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ही टीवी चैनल को एक जोरदार साक्षात्कार दिया है. साक्षात्कार गिनकर 95 मिनट का था, ऐसा कहा जा रहा है. प्रधानमंत्री का साक्षात्कार लंबे अंतराल के बाद आने से ‘चर्चा तो होगी ही’. उसी तरह चर्चा जारी है. प्रधानमंत्री मोदी एक पत्रकार सम्मेलन करें और सवालों के जवाब दें, ऐसी मांग थी.

लेख में आगे लिखा है, पीएम मोदी ने एक ही टीवी चैनल को साक्षात्कार देकर उसे प्रसारित किया. प्रधानमंत्री ने जनता के मन के सवालों का जवाब दिया है, ऐसा प्रचार शुरू हो गया है. वो गलत है. राम मंदिर, नोटबंदी, शीघ्र होनेवाले आम चुनाव आदि विषयों पर वे बोले लेकिन जनता के मन के सवालों का उत्तर मिला क्या?

शिवसेना का कहना है कि इन दिनों राम मंदिर का मुद्दा चर्चा में है. ऐसी उम्मीद थी कि मंदिर के बारे में मोदी कोई महत्वपूर्ण घोषणा करेंगे और अयोध्या में प्रभु श्रीराम का वनवास खत्म कराएंगे, मगर मोदी ने बिल्कुल विरुद्ध नीति अपनाई है. राम मंदिर के लिए अध्यादेश निकालो, ऐसी मांग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद सहित शिवसेना ने की थी. मोदी ने इसे साफ ठुकरा दिया है. मोदी ने कहा, कुछ भी हो जाए मगर अध्यादेश नहीं लाऊंगा. राम मंदिर का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णय देने के बाद ही अध्यादेश पर विचार किया जाएगा. मोदी ने यह बात स्पष्ट कर दी, यह अच्छा हुआ और पिछले 4-5 वर्षों में पहली बार वे सच बोले हैं. राम मंदिर उनके लिए प्राथमिकता का विषय नहीं.

भाजपा और संघ परिवार को देश से माफी मांगनी पड़ेगी
मोदी ने गुजरात में सरदार पटेल की विशाल और वैश्विक ऊंचाईवाली प्रतिमा खड़ी की है लेकिन मंदिर के मामले पर उन्होंने सरदार वाली हिम्मत नहीं दिखाई. यह इतिहास के पन्नों पर दर्ज होगा. राम मंदिर का बाद में देखेंगे, पहले चुनाव लड़ेंगे, ऐसी उनकी रणनीति दिखाई देती है. इस पर भाजपा के राम भक्त तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद का क्या कहना है? 2019 के पहले राम मंदिर नहीं बनने वाला होगा तो यह देश के साथ विश्वासघात होगा और उसके लिए भाजपा को, संघ परिवार को देश से माफी मांगनी पड़ेगी.

1991-92 में राम मंदिर का आंदोलन शुरू हुआ. उसमें सैकड़ों कारसेवक मारे गए. फिर यह हिंदू नरसंहार किसने किसके लिए कराया? राम मंदिर के आंदोलन में सैकड़ों हिंदू कारसेवक तो मारे गए, साथ ही मुंबई सहित देश में अन्य स्थानों पर दंगे हुए और उसमें भी दोनों तरफ से बहुत बड़ा नरसंहार हुआ. ऊपर से इसका बदला लेने के लिए मुंबई में बम विस्फोट की शृंखला कराकर सैकड़ों लोगों की जानें ली गई. न्यायालयीन प्रक्रिया से राम मंदिर का निर्णय लेना था तो फिर यह रक्तपात और नरसंहार किसलिए कराया गया? इसकी जिम्मेदारी भाजपा या संघ परिवार अब लेनेवाला है क्या? सिख हत्याकांड के लिए जिस तरह कांग्रेस को माफी मांगनी पड़ी, उसी तरह हिंदू नरसंहार के लिए माफी मांगो, ऐसा कोई कहे तो उसकी भी भावनाओं को समझना होगा. राम मंदिर सिर्फ चुनावी जुमला था और अगले चुनाव में भी वो वैसा ही रहेगा, ये अब तय हो गया है. मोदी ने यही सत्य कहा है इसलिए संभ्रम दूर हो गया. नोटबंदी का मुद्दा मोदी ने लिया.

नोटबंदी झटका नहीं, बल्कि फांसी का खटका था
शिवसेना ने अपने लेख के जरिए कहा है कि नोटबंदी झटका नहीं था. एक वर्ष पहले ही जनता को सावधान किया था, ऐसा मोदी ने कहा. अब यह जनता कौन? बैंक की कतार में खड़ी रही और रोजगार गंवाने के कारण जो तड़पकर मरे वो जनता नहीं थी क्या? अमीरों का काला धन आसानी से सफेद हो गया और मोदी सरकार के हाथ में कुछ नहीं आया. विदेश का काला धन देश में लाना और उसमें से 15 लाख रुपए जनता के बैंक खातों में जमा करने का वादा था. साहब! उसका क्या हुआ? सच तो यह है कि नोटबंदी झटका नहीं था बल्कि जनता के लिए फांसी का खटका था.

हमेशा के भाषणों के समान था पीएम का इंटरव्यू
पाकिस्तान के बारे में प्रधानमंत्री महोदय ने गोल-मोल जवाब दिया. एक सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान नहीं सुधरने वाला है, ये पता होने के बावजूद जनता ने मोदी को प्रधानमंत्री बनाया. राम मंदिर तथा पाकिस्तान इन दो प्रमुख मुद्दों के कारण भाजपा विजयी हुई और मोदी प्रधानमंत्री बने पर जनता के हाथ में मुंगरी आई. ‘अगला चुनाव जनता बनाम महाआघाड़ी’ ऐसा नारा मोदी ने दिया है. फिर 2014 में उन्हें पाकिस्तान और ईरान की जनता ने मतदान किया था क्या? तथा 5 राज्यों में भाजपा को पराजित करनेवाला मतदाता इस देश की जनता नहीं थी क्या? प्रधानमंत्री मोदी के साक्षात्कार का तूफान, चाय की प्याली का तूफान साबित हुआ है. प्रधानमंत्री रक्षात्मक भूमिका में दिखाई दिए और साक्षात्कार भी हमेशा के भाषणों के समान ही था. 2019 की चिंता उनके चेहरे पर तथा उनकी भाव-भंगिमाओं से स्पष्ट दिखाई दे रही थी. यही सच है. साक्षात्कार जबरदस्त होगा, ऐसा लगा था. मगर वैसा नहीं हुआ. साक्षात्कार बजकर रह गया. प्रधानमंत्री का साक्षात्कार था, इतना तो बजेगा ही!

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