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सरकारी दस्तावेजों से पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हटेगी फोटो, राजस्‍थान सरकार ने दिया आदेश

जयपुर। राजस्थान सरकार ने सभी सरकारी दस्तावेजों से पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तस्वीर हटाने का आदेश बुधवार को जारी कर दिया. राज्य के मुद्रण एवं लेखन सामग्री विभाग ने इस आशय का आदेश जारी किया. अतिरिक्त मुख्य सचिव रवि शंकर श्रीवास्तव की ओर से जारी इस आदेश के अनुसार राज्य मंत्रिमंडल की 29 दिसंबर को हुई बैठक में किये गये फैसले के अनुसार यह कदम उठाया गया है.

इसके तहत राज्य के समस्त राजकीय विभागों, निगमों, बोर्ड एवं स्वायत्तशासी संस्थाओं के लेटर पैड पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तस्वीर का लोगो के रूप में प्रयोग/मुद्रण करने के संबंध में 11 दिसंबर, 2017 को जारी परिपत्र को वापस लिया जाता है.

दीनदयाल उपाध्‍याय
दीनदयाल उपाध्‍याय राजनीति-सामाजिक क्षेत्र में ‘एकात्‍म मानवतावाद’ का दार्शनिक विचार पेश करने वाले आरएसएस विचारक और भारतीय जनसंघ के सह-संस्‍थापक हैं. 2014 में बीजेपी के केंद्र की सत्‍ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार की नीतियों के वैचारिक दर्शन के लिए संभवतया सबसे अधिक पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय के नाम का जिक्र अपने भाषणों में किया है.

संघ प्रमुख से मुलाकात
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को मथुरा में हुआ था. दीनदयाल उपाध्‍याय जब 1937 में कानपुर में सनातन धर्म कॉलेज से बीए कर रहे थे तो अपने एक दोस्‍त के माध्‍यम से पहली बार वह राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संपर्क में आए. उस दौरान एक शाखा के कार्यक्रम में उनकी मुलाकात आरएसएस के संस्‍थापक केबी हेडगेवार से हुई. उनके साथ बौद्धिक विमर्श के बाद उन्‍होंने आरएसएस से जुड़ने का फैसला किया.  हालांकि प्रचारक बनने से पहले उन्होंने 1939 और 1942 में संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण लिया था और इस प्रशिक्षण के बाद ही उन्हें प्रचारक बनाया गया था.

जनसंघ से जुड़ाव
1951 में जब श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्‍थापना की तो आएसएस ने दीनदयाल उपाध्‍याय को इससे जुड़ने के लिए कहा. इस तरह वह जनसंघ के सह-संस्‍थापक बने. वह इस संगठन के 15 वर्षों तक आल-इंडिया जनरल सेक्रेट्री रहे. इस दौरान उन्‍होंने लोकसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन जीत नहीं मिल सकी. दिसंबर, 1967 में वह जनसंघ के अध्‍यक्ष बने.

एकात्‍म मानववाद
अपनी इस राजनीतिक दर्शन के माध्‍यम से उन्‍होंने हर मनुष्‍य के शारीरिक, बौद्धिक, चेतना और आत्मिक विकास की बात कही. उनका दर्शन भौतिकता और आध्‍यात्मिकता का संश्लिष्‍ट रूप है. उन्‍होंने देश में विक्रेंदीकृत राजनीति की बात कही और आत्‍म-निर्भर अर्थव्‍यवस्‍था का नारा दिया. अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए ‘राष्‍ट्र धर्म’ से लेकर ‘पांचजन्‍य’ तक कई पत्रिकाओं का संपादन किया.


दीनदयाल उपाध्‍याय की मुगलसराय स्‍टेशन के निकट रहस्‍यमय परिस्थितियों में मौत हुई.(फाइल फोटो)रहस्‍यमय परिस्थितियों में मौत
10 फरवरी, 1968 को पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय लखनऊ से सियालदह एक्‍सप्रेस में पटना जाने के लिए चढ़े. लेकिन जब ट्रेन रात करीब सवा दो बजे मुगलसराय स्‍टेशन पर पहुंची तो उनको ट्रेन में नहीं पाया गया. उनकी बॉडी को रेलवे स्‍टेशन के पास पटरियों पर पाया गया. सीबीआई की जांच में पाया गया कि जब ट्रेन मुगलसराय में घुस रही थी तो चोर उनका सामान लेकर भागने लगे. उन्‍होंने प्रतिरोध किया तो चलती ट्रेन से उनको धक्‍का दे दिया गया. जिसके कारण दीनदयाल उपाध्‍याय की मौत हो गई. हालांकि रहस्‍यमयी परिस्थितियों में हुई उनकी मौत की वजहों से बहुत से लोग आज तक संतुष्‍ट नहीं हैं. कुछ लोग इसमें राजनीतिक साजिश भी देखते हैं. बहरहाल आज तक उनकी मौत के वास्‍तविक कारणों से पर्दा नहीं उठ सका है. 2017 में भी कई राजनेताओं ने उस मामले की फिर से जांच करने की मांग की है.

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