नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केन्द्र सरकार से जानना चाहा कि सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों के लिए खोज समिति ने सिर्फ पूर्व और पीठासीन नौकरशाहों की ही सूची क्यों तैयार की है? न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ को सरकार ने सूचित किया कि मुख्य सूचना आयुक्त और चार आयुक्तों की पहले ही नियुक्ति की जा चुकी है और अन्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है.
केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा कि खोज समिति ने सूचना आयुक्तों के रूप में नियुक्ति के लिये चयन समिति के विचारार्थ 14 नामों की सिफारिश की थी. इस पर पीठ ने सवाल किया, ‘‘इन 14 नामों में नौकरशाहों के अलावा भी क्या कोई और नाम है?’’
इस पर पिंकी आनंद ने कहा कि इनमें से एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं जबकि शेष नौकरशाह हैं. शीर्ष अदालत आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज, कमोडोर (सेवानिवृत्त) लोकेश बत्रा और अमृता जौहरी की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इन सभी ने याचिका में दावा किया है कि सीआईसी के पास 23,500 से अधिक अपील और शिकायतें लंबित हैं जबकि सूचना आयुक्तों के पद रिक्त पड़े हुये हैं.
सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सालिसीटर जनरल ने न्यायालय से कहा कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति एक सतत् प्रक्रिया है और सरकार सूचना के अधिकार कानून के तहत निर्धारित चयन के आधार का पालन कर रही है.
याचिकाकर्ताओं के वकील प्रणव सचदेव ने कहा कि राज्य सूचना आयोग सूचना आयुक्तों की अनुपलब्धता की वजह से मामलों को सालों लंबित रख रहा है. उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में तो 2008 में दायर मामलों का अब फैसला हो रहा है.
पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्यों से कहा कि वे दो से तीन दिन के भीतर हलफनामे पर सूचना आयोगों में रिक्त स्थानों पर नियुक्तियों के लिये उठाये गये कदमों का विवरण दाखिल करें.