नई दिल्ली। भारतीय वायुसेना ने 14 फरवरी को कश्मीर के पुलवामा में जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती हमले में शहीद हुए 40 सीआरपीएफ जवानों की शहादत का बदला ले लिया है। वायुसेना ने मंगलवार को नियंत्रण रेखा पार करके पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिद्दीन और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी ठिकानों को तबाह किया। यह पहली बार है जब साल 1971 में पाकिस्तान से हुई लड़ाई के बाद 2019 में आतंकियों पर कहर बरसाने के लिए भारतीय वायुसेना ने नियंत्रण रेखा को पार किया है। हालांकि, भारत ने इस कार्रवाई को असैन्य कार्रवाई बताया गया है।
वायुसेना ने पाक अधिकृत कश्मीर के बालाकोट, मुजफ्फराबाद और चकोटी में 1000 किलो बम बरसाकर कई आतंकी ठिकानों को पूरी तरह से तबाह कर दिया है। पाकिस्तानी वायु सेना ने भी भारतीय वायु सेना के मुजफ्फराबाद सेक्टर में हवाई हमले की पुष्टि की है। भारतीय वायुसेना ने यह हमला सुबह 3.30 बजे किया। इस हमले के लिए वायुसेना ने 12 मिराज फाइटर जेट का इस्तेमाल किया। ये फाइटर जेट एयरबॉर्न एर्ली वॉर्निंग एंड कंट्रोल तकनीक पर काम करते हैं।
हवाई नियंत्रण एवं चेतावनी तकनीक खास तौर पर युद्ध क्षेत्र के लिए विकसित की गई रडार पिकेट तकनीक है। इस तकनीक के जरिए लंबी दूरी में भी लड़ाकू विमानों को आदेश (कमांड) दिया जा सकता है। उन्हें टारगेट को तबाह करने के लिए नियंत्रित किया जा सकता है। इस तकनीक की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे ट्रैक करना बहुत मुश्किल होता है।
400 किलोमीटर दूर से ही संदिग्ध गतिविधि को पहचान लेती है यह तकनीक
हवाई चेतावनी और नियंत्रण तकनीक का इस्तेमाल जमीन पर सर्विलांस यानी की जासूसी के लिए भी होता है। इस तकनीक का इस्तेमाल रक्षात्मक एवं आक्रमक हवाई संचालन दोनों के लिए किया जाता है। इस तकनीक के जरिए 400 किलोमीटर दूर से ही किसी भी संदिग्ध हवाई गतिविधि की पहचान की जा सकती है। हवाई चेतावनी और नियंत्रण तकनीक वाले लड़ाकू विमान 30,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ सकते हैं और 312,000 किलोमीटर का क्षेत्र कवर कर सकते हैं। यह तकनीक किसी भी तरह के खतरे को पहले ही भांप लेती है और खतरे का डाटा, टारगेट की पहचान कर लेती है।
ट्रैक करना होता है मुश्किल
इस तकनीक पर आधारित लड़ाकू हवाई जहाजों को ट्रैक करना बहुत मुश्किल होता है। भारत ने मंगलवार को नियंत्रण रेखा पार कर इसी तकनीक के जरिए जैश-ए-मोहम्मद और दूसरे आतंकी शिविरों को तबाह किया। साल 2004 में भारत-रूस और इजराइल के बीच एयरबॉर्न अर्ली वॉर्निंग सिस्टम्स वाले फाल्कन विमानों के लिए त्रिपक्षीय समझौता हुआ था।
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