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ऐसा सोचने की ठोस वजहें हैं कि जितिन प्रसाद अब भी कांग्रेस छोड़ सकते हैं

लखनऊ। खानदानी कांग्रेसी जितिन प्रसाद का भाजपा में जाना करीब-करीब तय हो गया था. समाचार चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक में खबरें चलने लगी थीं. लेकिन फिलहाल वे अपने घर में रुक गए हैं. वे जा क्यों रहे थे, रुक क्यों गये हैं, जब इसकी पड़ताल करेंगे तो एक सिरा प्रियंका गांधी तक जाता है.

उत्तर प्रदेश के एक कांग्रेसी नेता बताते हैं कि जितिन प्रसाद पार्टी से बेहद और इतने नाराज़ हैं कि अगर उनकी बात नहीं सुनी गई तो वे अब भी अपने दल को बदल सकते हैं. जितिन की नाराजगी की मुख्यत: तीन वजहें हैं: पहली उनके साथी कहां से कहां पहुंच गए और वे न तो विधायक हैं, न सांसद और न ही पार्टी में उनकी सुनी जा रही है.

जितिन प्रसाद की नाराजगी की दूसरी वजह है उनकी सीट, धौरहरा. जितिन पहले शाहजहांपुर से सांसद थे, यही उनकी पारिवारिक सीट थी. दादा से लेकर पिता और फिर जितिन ने ये सीट जीती. 2009 में परिसीमन के बाद उन्हें अपनी सीट बदलनी पड़ी. इस बार भी कांग्रेस ने उन्हें धौरहरा सीट से ही मैदान में उतारने का फैसला किया था और जितिन ने इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी थी. लेकिन कुछ दिन पहले अचानक पार्टी के एक बड़े नेता का फोन आया और उनसे सीट बदलने के लिए कह दिया गया. जितिन प्रसाद के एक करीबी नेता की बातों पर यकीन करे तो ऊपर से यानी प्रियंका गांधी की तरफ से कहा गया था कि वे अपनी सीट छोड़कर लखनऊ से केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ें. इसके पीछे तर्क यह था कि उत्तर प्रदेश में लखनऊ और वाराणसी जैसी दो सबसे महत्वपूर्ण सीटों पर कांग्रेस बेहद ताकतवर उम्मीदवार उतारना चाहती है. इसके जरिये वह यह संदेश देना चाहती है कि भाजपा की एकमात्र विकल्प कांग्रेस ही है.

वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभी उम्मीदवार ढूंढा जा रहा है, लेकिन लखनऊ के लिए जितिन प्रसाद का नाम ऊपर से तय हो गया था. इस ‘ऊपर वाले’ फैसले ने जितिन को बेहद नाराज़ कर दिया. उन्हें लगा कि पार्टी उन्हें आखिरी वक्त में लखनऊ भेजकर चुनाव हराना ही चाहती है. लखनऊ का चुनावी इतिहास देखें तो यह भाजपा की बेहद मजबूत सीटों में से एक है. जब भाजपा पूरे प्रदेश में चौथे नंबर की पार्टी बन गई थी तब भी लखनऊ की सीट उसकी झोली में ही गई थी.

जितिन प्रसाद की एक और शिकायत अपनी पार्टी से है जिसकी वजह से उनके कांग्रेस छोड़ने की संभावना अभी भी बनी हुई है. लखनऊ के आसपास के इलाके में जो सीटें है वहां के उम्मीदवार तय करते वक्त भी उनकी राय को तरज़ीह नहीं दी गई थी. हरदोई, सीतापुर जैसे चुनावी क्षेत्रों के लिए जितिन ने अपनी तरफ से नाम भेजे थे, लेकिन उनसे सलाह किए बगैर पार्टी ने यहां से अपने उम्मीदवार तय कर दिए.

जितिन प्रसाद के संबंध अखिलेश यादव से भी काफी अच्छे हैं, इसलिए उनके पास भाजपा के अलावा भी विकल्प है. कांग्रेस के एक नेता बताते हैं कि प्रियंका गांधी भी यह जानती हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास नेताओं की जबरदस्त कमी है इसलिए वह किसी भी शर्त पर जितिन को रोकने की कोशिश हो रही है. इसीलिए खुद प्रियंका गांधी उनसे बात कर रही हैं.

लेकिन हालात ये हैं कि जितिन प्रसाद इस बार हर हाल में संसद पहुंचना चाहते हैं. इसलिए अगर उन्हें कांग्रेस से सेफ सीट नहीं मिली तो वे अब भी अपना पाला बदल सकते हैं. इस समय वे लगातार दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वे जब भी कैमरे के सामने आते हैं, न हां कहते हैं, न खारिज करते हैं और पार्टी छोड़ने की बातों को अफवाह बताकर सस्पेंस कायम रखते हैं. यानी कि जितिन प्रसाद से जुड़ी कहानी अभी बाकी है.

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