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बिहार : गठबंधन बचाने के फेर में कमजोर हो गई है लड़ाई, कई सीटों पर वॉक ओवर जैसी स्थिति

पटना। बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन की तरफ से लोकसभा चुनाव को लेकर लगभग सीट बंटवारे पर स्थिति साफ हो गई है. सीट बंटवारे से लेकर उम्मीवारों तक का चयन हो गया है. कैंडिडेट के नाम सामने आने के बाद बिहार में कुछ सीटों पर लड़ाई एकतरफा नजर आने लगी है. दोनों ही तरफ से ऐसी स्थिति बन रही है.

शुरुआत तिरहुत प्रमंडल के मुजफ्फरपुर सीट से करते हैं. यहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) है वहीं, दूसरी तरफ नई नवेली विकासशील इंशान पार्टी (वीआईपी). बीजेपी ने जहां वर्तमान और स्थानीय सांसद अजय निषाद को चुनावी मैदान में उतारा है वहीं, वीआईपी ने राजभूषण चौधरी निषाद को सिंबल दिया है. राजनीति में नेताओं की लोकप्रियता मायने रखती है. मुजफ्फरपुर मल्लाहों की सीट मानी जाती है. इसलिए दोनों ही तरफ से एक ही जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा गया है.

BJP प्रत्याशी के साथ है पिता की विरासत
बीजेपी प्रत्याशी अजय निषाद के साथ उनके पिता की विरासत तो है ही, साथ ही पांच साल का उनका कार्यकाल भी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में वह लगभाग 50 प्रतिशत वोट लाकर चुनाव जीतने में सफल रहे थे. इसबार जेडीयू भी बीजेपी के साथ है. ऐसे में एक मजबूत समीकरण के सामने एक नई नवेली पार्टी का एक ऐसा उम्मीवार जिसे पहचानने के लिए मतदाताओं को दिमाग पर बल देना पड़े वह किस हद तक मुकाबला कर पाएंगे यह कहना मुश्किल है. वैसे राजनीति अनिश्चितताओं का खेल है. कुछ भी संभव है. लेकिन मौजूद समीकरण के मुताबिक, महागठबंधन यहां एनडीए को वॉक ओवर देती ही नजर आ रही है.

सीतमढ़ी में जेडीयू ने दिया नए नवेले उम्मीदवार को टिकट
सीतामढ़ी को लेकर भी स्थिति कुछ ऐसी ही है. जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने जहां एक स्थानीय डॉक्टर वरुण कुमार को लोकसभा का टिकट दिया है वहीं, महागठबंधन की तरफ से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने पूर्व सांसद अर्जुन राय को चुनावी मैदान में उतारा है. 2014 में यह सीट राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) ने जीती थी. इस चुनाव में अर्जुन राय बतौर जेडीयू उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे. आरजेडी ने सीताराम यादव को चुनावी मैदान में उतारा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में एक तो आरएलएसपी और आरजेडी साथ-साथ चुनाव लड़ रही है वहीं, जेडीयू ने एक नए नवेले उम्मीवार को मैदान में उतारा है. ऐसी स्थिति में पलड़ा आरजेडी उम्मीवार का ही भारी दिख रहा है.

नालंदा में आरजेडी का कमजोर कैंडिडेट
सीट बंटवारे में तेजस्वी यादव ने नालंदा सीट हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा (हम) के खाते में देकर लगभग जेडीयू की राह आसान कर दी है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र नालंदा से जेडीयू ने स्थानीय और वर्तमान सांसद कौशलेंद्र कुमार को फिर मौका दिया है. दूसरी तरफ, हम ने यहां से हम ने अशोक कुमार आजाद चंद्रवंशी को टिकट दिया है. 2014 के चुनाव परिणाम पर अगर नजर डालें तो इसबार जेडीयू उम्मीदवार और मजबूत स्थिति में उभर कर सामने आ रहे हैं. 2014 में इस सीट पर लड़ाई लोजपा और जेडीयू के बीच में थी. इस चुनाव में दोनों साथ हैं. बीते चुनाव के मत प्रतिशत को मिला दें तो यह आंकड़ा 68 प्रतिशत से अधिक का हो रहा है. ऐसे में इस सीट पर आप 2019 की लड़ाई का अंदाजा लगा सकते हैं.

सीवान में आरजेडी को हो सकता है फायदा
अब बात सीवान लोकसभा सीट की. एनडीए के बंटवारे में यह सीट जेडीयू के खाते में गई है. वहीं, महागठबंधन की तरफ से आरजेडी ने यहां से उम्मीदवार उतारा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ओमप्रकाश यादव को टिकट दिया था. उन्होंने आरजेडी के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को शिकस्त दी थी. ओमप्रकाश यादव के कद को जानने के लिए आपको 2009 के परिणाम को भी समझना होगा. इस चुनाव में बिहार में जारी प्रचंड नीतीश लहर में भी उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी के खाते से सीट छिनने पर वह खुलकर नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं. उनके बागी तेवर अपनाने की संभावना भी प्रबल है. ऐसे में जेडीयू उम्मीदवार कविता सिंह, हिना शहाब के सामने कमजोर प्रत्याशी साबित हो सकती हैं.

दरभंगा सीट पर भी बीजेपी के लिए स्थिति कुछ उत्साहजनक नहीं है. सीट बंटवारे में पार्टी ने अपनी परंपरागत सीट तो बचा ली, लेकिन एक कमजोर प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतार दिया है. बीजेपी ने बेनीपुर से पूर्व विधायक गोपालजी ठाकुर को चुनावी मैदान में उतारा है, जो कि 2015 के विधानसभा चुनाव में अपनी सीट पर 25 हजार से अधिक मतों से चुनाव हार गए थे. उनका मुकाबला आरजेडी के कद्दावर नेता और बिहार के पूर्व वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी से होगा. बीते कई चुनावों में यहां से अली अशरफ फातमी चुनाव लड़ते आ रहे थे. लेकिन इस बार पार्टी ने उम्मीदवार बदला है. यह देखा गया है कि इस सीट पर ध्रुवीकरण की पूरी कोशिश की जाती है. लेकिन अब्दुल बारी सिद्दीकी का चेहरा सामने होने के कारण इसकी संभावना कम दिखती है. वहीं, दरभंगा सीट पर मल्लाह करीब 70 हजार जाति के वोटर हैं, जो कि इस बार दोनों ही गठबंधन का खेल बना या बिगाड़ सकते हैं.

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