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भाजपा के लिए सबसे कठिन माना गया पश्चिम बंगाल अब उसके पक्ष में जाता क्यों दिख रहा है?

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल लोकसभा चुनाव 2019 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण राज्यों में से एक है. अभी तक ज्यादातर विशेषज्ञों की राय यह रही है कि धर्मनिरपेक्षता की पक्षधर ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सरकार के होते भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल की लड़ाई बहुत मुश्किल है. हालांकि राज्य में हुए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का अब भाजपा को फायदा मिल सकता है. द एशियन एज में प्रकाशित खबर के मुताबिक इसकी वजह राज्य में अल्पसंख्यक-विरोधी भावना का बहुत तेजी से फैलना है, खास तौर पर राजधानी कोलकाता में.

पश्चिम बंगाल में जहां कांग्रेस का प्रभाव साल दर साल कम होता चला गया, वहीं 2016 के विधानसभा चुनाव आते-आते वामपंथी दल भी हाशिये पर आ गए. फिर 2018 के पंचायत चुनाव में वह तीसरे स्थान पर आ गया, और भाजपा दूसरे नंबर पर पहुंच गई. अब पश्चिम बंगाल की मुख्य चुनावी लड़ाई ममता बनर्जी की टीएमसी और भाजपा के बीच है जिसमें भाजपा को फायदा मिल सकता है.

अखबार के मुताबिक बंगाल में भाजपा का एक मात्र अजेंडा मतों का ध्रुवीकरण करना है, और उसका यह मकसद शहरी इलाकों में विशेष रूप से सफल होता दिख रहा है. राजधानी कोलकाता की ही बात करें तो यहां की सभी लोकसभा सीटों (कोलकाता दक्षिण, कोलकाता उत्तर, जादवपुर और दमदम) पर बढ़ रही अल्पसंख्यक-विरोधी भावनाएं महसूस की जा सकती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता के कराया मार्ग स्थित एक आवासीय परिसर के लोगों ने मुस्लिम किरायेदारों के आने पर रोक लगा दी है. मुस्लिम समुदाय के प्रति बढ़ रही इस तरह की भावना आम लोगों के साथ बुद्धिजीवी समाज में भी देखने को मिल रही है. अखबार ने एक वरिष्ठ पत्रकार का हवाला दिया जो कभी भाजपा की ‘सांप्रदायिक राजनीति’ के विरोधी थे. लेकिन अब वे फिरहाद हाकिम को कोलकाता का मेयर बनाए जाने पर कहते हैं, ‘कोई मुस्लिम कोलकाता का मेयर कैसे हो सकता है.’

वहीं, कोलकाता में कैब चलाने वाले एक व्यक्ति ने कहा, ‘दीदी (ममता बनर्जी) सिर्फ मुस्लिमों के बारे में सोचती है. बंगाल में मुसलमानों की जनसंख्या देखिए. यह तेजी से बढ़ रही है. जनसांख्यिकी अब बदल रही है.’ इसी तरह एक किताब की दुकान चलाने वाले मधुसूदन कहते हैं, ‘बंगाल में हिंदू अपनी आवाज खो रहे हैं.’

दरअसल ममता सरकार ने इमामों को हर महीने अंशदान देने संबंधी योजना शुरू की थी जिसे अभी तक वापस नहीं लिया गया है. बंगाल में मध्यम वर्ग का एक बड़ा हिस्सा इससे प्रभावित है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इसे मुद्दा बनाते हुए कहा था, ‘ममता बनर्जी सरकार इमामों को हर महीना भत्ता देती है, लेकिन पुजारियों को नहीं.’ शाह ने ममता पर स्कूलों में उर्दू को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया है. इसके अलावा 2017 में ममता सरकार ने मुहर्रम में ताजिया के निकलने के समय देवी दुर्गा की मूर्तियों के विसर्जन पर रोक लगा दी थी. इससे भी बंगाली हिंदुओं की भावनाएं आहत हुई थीं. रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह की घटनाओं से भाजपा को बंगाल में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने का मौका दिया है.

अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 23 जीतने का लक्ष्य रखा है. रिपोर्ट के मुताबिक अगर यह भावना शहरी के साथ ग्रामीण इलाकों में वोटों में भी तब्दील होती है तो भाजपा को कम से कम आठ से दस सीटों पर जीत मिल सकती है. फिलहाल बंगाल से उसके दो ही सांसद हैं. 2011 के विधानसबा चुनाव में उसे केवल चार प्रतिशत वोट मिले थे. लेकिन 2014 के आम चुनाव में पार्टी को 17 प्रतिशत लोगों ने वोट दिया. बंगाल में मुस्लिम आबादी करीब 30 प्रतिशत है जो ममता बनर्जी को ही वोट करेगी. इसलिए भाजपा हिंदू वोटबैंक को अपने पाले में करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है. देखना होगा कि उसकी यह कोशिश कितनी कामयाब रहती है.

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