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साध्वी प्रज्ञा को टिकट दे हिंदू आतंकवाद की पंक्चर थ्योरी को हवा देगी BJP!

नई दिल्ली। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के चुनावी रण में उतरते ही मध्य प्रदेश की भोपाल सीट पर चुनावी लड़ाई दिलचस्प हो गई है. 2019 के चुनावी युद्ध का ये सबसे दिलचस्प मैदान बन चुका है. यहां एक तरफ कांग्रेस से वो दिग्विजय सिंह हैं, जिन पर हिंदू आतंकवाद की थ्योरी गढ़ने का आरोप लगता रहा है तो दूसरी तरफ बीजेपी से वो साध्वी प्रज्ञा ठाकुर होंगी जिन्हें हिंदू आतंकवाद की थ्योरी का प्रतीक बनाया गया था. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बहाने बीजेपी ने आक्रामक हिंदुत्व कार्ड खेला है. कांग्रेस के लिए इस पर कुछ भी बोलना इस वक्त तलवार की धार पर चलने जैसा है.

भगवा आतंकवाद को यूपीए राज में दी गई थी हवा

समय के साथ अब काफी कुछ बदल चुका है. 9 साल तक जेल में रहने के बाद साध्वी अब जिस तरह से कमबैक कर रही हैं, उसमें हिंदू आतंक के तमाम केस कोर्ट में ढेर हो रहे हैं. फिर चाहें वो मालेगांव ब्लास्ट केस हो या फिर समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस. समझौता पर बीते 20 मार्च को ही बड़ा फैसला आया था. इसमें स्वामी असीमानंद सहित चार आरोपियों को सबूतों के अभाव में कोर्ट ने बरी कर दिया था. बीजेपी ने उस वक्त ही संकेत दे दिए थे कि वो हिंदू आतंकवाद की पंक्चर हुई थ्योरी को चुनावी मुद्दा बनाएगी, क्योंकि इस थ्योरी को यूपीए के राज में बहुत हवा दी गई थी. बीजेपी को अब इसके बहाने कांग्रेस को नए सिरे से घेरने का मौका मिला है, जिस रणनीति में अब वो आक्रामक तरीके से चल रही है. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से टिकट देना इसी का सीधा संकेत है.

कौन हैं साध्वी प्रज्ञा ठाकुर

मध्य प्रदेश के भिंड की रहने वाली साध्वी प्रज्ञा हिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएट हैं. प्रज्ञा शुरुआत में संघ के संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी रहीं. इसके अलावा वो विश्व हिंदू परिषद की महिला मोर्चा दुर्गा वाहिनी से भी जुड़ी थीं. 48 साल की साध्वी प्रज्ञा ठाकुर 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में आरोपी हैं. इस केस में उन्हें 9 साल जेल में रहने के बाद पिछले साल बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत मिली थी. 2017 में एनआईए कोर्ट ने उनके खिलाफ लगे कड़े कानून मकोका को हटा दिया था. 2018 में NIA ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी, लेकिन इसे कोर्ट ने नहीं माना. एनआईए की स्पेशल कोर्ट में अब भी उनके खिलाफ ट्रायल चल रहा है.

हिंदू आतंकवाद का मुद्दा पीएम मोदी ने लपका

भगवा आतंक पर पीएम नरेंद्र मोदी भी बोल चुके हैं. अपनी रैलियों में वे साफ कह चुके हैं कि इस देश के करोड़ों लोगों पर हिंदू आतंकवाद का दाग लगाने का काम कांग्रेस ने ही किया है. रैली में उन्होंने अपने परिचित अंदाज में लोगों से पूछा था कि आप मुझे बताइए हिंदू आतंकवाद शब्द सुन आपको गहरी चोट पहुंची थी कि नहीं?

कांग्रेस के तीन नेता, निशाने पर दिग्विजय

पीएम ने 15 दिन पहले ही उस हिंदू आतंक की थ्योरी को चुनावी मुद्दा बना दिया था, जिस हिंदू आतंक की थ्योरी पर यूपीए के जमाने में बहुत चर्चा हुई थी. इसी थ्योरी को लेकर कांग्रेस के तीन बड़े नेता पी चिदंबरम, दिग्विजय सिंह और सुशील शिंदे फ्रंटफुट पर खेल रहे थे. संघी, भगवा और हिंदू आतंकवाद. ऐसे शब्दों के इस्तेमाल पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच बड़ी राजनैतिक लड़ाई पहले ही हो चुकी है. इसमें सबसे ज़्यादा बीजेपी के निशाने पर दिग्विजय सिंह रहे, जिनके खिलाफ चुनावी मैदान में बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उतारा है.

ऐसे ही साध्वी ‘धर्मयुद्ध’ नहीं कह रहीं

इसी को वक्त कहते हैं जो कभी भी बदल सकता है. ये सोचा नहीं गया था कि ऐसा मौका भी आएगा कि दिग्विजय सिंह के खिलाफ बीजेपी उस चेहरे को चुनाव में उतार देगी जिसकी वजह से ही हिंदू आतंक की थ्योरी चर्चा में आई थी. ये बीजेपी की नई चुनावी रणनीति है. साध्वी प्रज्ञा इसे धर्मयुद्ध ऐसे ही नहीं कह रही हैं. दिग्विजय सिंह के सामने प्रज्ञा ठाकुर को उतारकर हिंदुत्व वाले चुनावी हथियार में बीजेपी ने तेज धार लगाई है. इसका मौका बीजेपी को तब से मिला है जब 20 मार्च को समझौता ब्लास्ट केस में एनआईए कोर्ट ने स्वामी असीमानंद सहित चार आरोपियों को बरी कर दिया था. दरअसल साध्वी को चुनाव मैदान में उतारने में संघ और बीजेपी को बड़ा मौका दिखा कि वो हिंदू आतंक की थ्योरी को जनता की अदालत में लेकर जाएं, क्योंकि यूपीए की सरकार पर लगातार आरोप ये लगे कि हिंदू आतंक की थ्योरी को जबरन खड़ा किया गया था.

30 साल से बीजेपी का अभेद्य दुर्ग भोपाल

1989 से यानी पिछले तीस साल में भोपाल लोकसभा सीट हर बार बीजेपी ने जीती है. पिछली बार 3 लाख 70 हज़ार वोट के अंतर से बीजेपी ने ये सीट जीती थी. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में भोपाल की 8 में से 3 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं. पांच सीटों पर बीजेपी का वोट शेयर बहुत कम हुआ, जिससे बीजेपी की चिंता बढी थी. इस बार कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को उतारकर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी और रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया, क्योंकि भोपाल के 18 लाख वोटर में करीब साढ़े चार लाख वोटर मुस्लिम हैं.

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