Tuesday , April 16 2024

चलो गरियायें…………..

आंय आप चौंक गये ? क्यों ? अपने अगल बगल नजर घुमाइये और फिर ईमानदारी से दिल पर हाथ रख कर बताइये कि सब लोग मतलब पूरा समाज किस काम में व्यस्त है। गरियाने में । किसको एक प्रश्न है। बड़ा छोटे को , छोटा बड़े को , नेता जनता को , जनता नेता को । अनपढ़ शिक्षा को , शिक्षित अनपढ़ को । पुरातन वर्तमान को , वर्तमान पुरातन को । लम्बी सूची है। जानते हैं यह स्थिति क्यों है ? क्योंकि हमने चीजों को बिना समग्रता में परखे तात्कालिक रूप से आख्यान देने को अपने विद्वान होने का स्वघोषित प्रमाण मान लिया है।
आपने बचपन में एक निबंध जरूर पढ़ा होगा विज्ञान वरदान या श्राप । यह लड़ाई आज भी जारी है। आज बच्चों और युवाओं के हाथ में बड़ी बड़ी , नेटपैक युक्त मोबाइल देखकर हमारे जैसे अभिभावक के माथे पर चिंता की लकीरें स्वभावतः उभर आती हैं । ऊपर से यह सोशल मीडिया । अब तो बच्चों के बिगड़ने का काम तय है। है न !
पर ठहरिये । पहले चेक तो करिये । कहीं पापा के फेसबुक मित्र असित कुमार मिश्र की कहानी पढ़ करके कोई बच्चा रात को दस बजे यह तो नहीं कह रहा कि पापा असित भैया से बात करना चाहता हूँ । और वह पिता यह जानता है कि यह संयोग एक प्रेरक होगा । कोई सौरभ चतुर्वेदी अपने रोजमर्रा के जीवन से कुछ ऐसा लिख देता है कि आप वाह वाह कर उठें । कोई आशीष त्रिपाठी “पतरकी ” के बारे में ऐसा लिख देता है कि युवा तो छोडिये बुढ्ढे भी “पतरकी ” के लिए व्याकुल हो जायें । कोई शशि रंजन शुक्ल , कोई कृपा शंकर , कोई आलोक पाण्डेय अपनी कहानियों कविताओं से आपके चेहरे पर मुस्कान ला दे । और तो और एक विशिष्ट सर्वेश तिवारी श्रीमुख अपने इतिहास और गौरव के पलों को ऐसे जादूभरे शब्दों में वर्तमान राजनैतिक छलियों को तमाचा मारे कि आप का सीना छप्पन इंच का हो जाय और आप बिना शस्त्र उठाये विजयी भाव से भर उठें ।
यकीन मानिये फेसबुक पर चमकते ऐसे हजारों सितारे हैं। जिनसे आप शायद न मिलें हो पर लगता है कि वे आपके अभिन्न हैं। ऐसे ही कुछ सैकड़ों सितारों को एक मंच पर लाने का प्रयास सर्वेश तिवारी श्रीमुख किये हैं । 7 जून को करवतही बाजार , गोपालगंज में गोपालगंज साहित्य सम्मेलन का आयोजन करके । यह एक नवीन प्रयोग होगा और शायद साहित्यिक मठाधीशों को एक संदेश भी कि लोक साहित्य किसी की चेरी नहीं । पुरस्कार गैंग के मोहताज प्रेमचंद और निराला नहीं होते । वे लोक में अपना स्थान बना लेते हैं। भारत इन युवाओं को देखकर निश्चित हो सकता है कि देश की साहित्यिक उर्वरा अभी बरकरार है और वह सिर्फ आलोचना कर तालियां नहीं बटोरती बल्कि आशावादी नजरिया दे नवल और पार्थ जैसे अगली पीढ़ी को प्रेरित भी करती है।
आइये गोपालगंज देखिये इन कर्मठी योगियों को ।सूची नीचे है पर बहुत सारे नाम और भी हैं । उम्मीद है इनको सुनने देखने के बाद आप गरियाना छोड़ कुछ सार्थक देशहित में करने लगेंगे । सो स्वागत है ।
चलो नवगीत गायें , देशहित इक पुष्प चढा़यें।

प्रमुख नाम: आलोक पाण्डेय, असित कुमार मिश्र, अतुल कुमार राय, सौरभ चतुर्वेदी, नीरज मिश्र, निशांत सिंह, उत्तम मिश्र, रित्तिक चौहान, पंकज मिश्र और त्रिलोचन नाथ तिवारी, रिवेश प्रताप सिंह, भानु प्रताप सिंह, आशीष त्रिवेदी, आकृति विज्ञाअर्पण, चन्द्र भूषण तिवारी, सूर्य कुमार त्रिपाठी, शैलेन्द्र पाण्डेय, अमित कुमार शुक्ल, अभिषेक सिंह, अभिषेक पाण्डेय ‘ लल्ला गोरखपुरी’ व विवेक मिश्र

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