राजेश श्रीवास्तव
बीते 23 मई को केंद्र में नरेंद्र दामोदर दास मोदी को दोबारा भारी भरकम जनसमर्थन देकर प्रधानमंत्री बनाने के बाद विपक्ष खासकर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और रालोद ने टीवी डिबेटों, टीवी चैनल पर बाइट देने या पत्रकारों से बातचीत करने पर अपने प्रवक्ताओं पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है। विपक्ष के इस रवैये से एक तरफ जहां टीवी चैनलों के डिबेट कार्यक्रमों में उत्साह खत्म हुआ है वहीं भाजपा खेमे में भी उत्साह नहीं दिख रहा है। अब उसके भी प्रवक्ता डिबेट कार्यक्रमों में जाने को उत्साहित नहीं दिख रहे क्योंकि उनका विरोध करने वाला कोई विरोधी दल का नहीं है। विपक्ष के इस रणनीति का अध्ययन करने से साफ होता है कि विपक्ष ने या तो ऐसा करके कोई लंबी रणनीति बनाने पर विचार किया है या फिर वह चुनाव में करारी हार के चलते किसी भी बयानबाजी से बचना चाह रही है। हालांकि कांग्रेस ने यह प्रतिबंध एक माह के लिये लगाया है तो समाजवादी पार्टी ने अपने सभी प्रवक्ताओं को निलंबित ही कर दिया है। जबकि बहुजन समाज पार्टी का कोई स्थायी प्रवक्ता ही है नहीं सिवाय सुधींद्र भदौरिया के।
जानकारी के मुताबिक विपक्ष किसी रणनीति के तहत ऐसा कर रहा है और यह उचित कदम भी है। एक प्रमुख विपक्षी दल के नेता कहते हैं कि हम टीवी चैनलों पर जाकर क्या करें वैसे भी जिस तरह सभी चैनलों पर भाजपा प्रवक्ताओं को जितनी तरजीह दी जाती है उसमें हमारी जरूरत ही नहीं है। वह कहते हैं कि कई चैनलों के एंकर ही भाजपा प्रवक्ता की तरह व्यवहार करने लगे हैं। ऐसे में हमारी क्या जरूरत ? यह उनकी व्यक्तिगत राय हो सकती है। लेकिन अगर विपक्ष रणनीति के तहत ऐसा कर रहा है तो यह एक कुशल कदम भी माना जा सकता है क्योंकि विपक्ष ऐसा करके किसी भी विवाद से बच रहा है। वहीं उसके पास होमवर्क करने का मौका मिल गया है वह चैनलों की बाइट में उलझकर भाजपा के दिये मुद्दों में ही उलझ जाती है। लिहाजा फिलहाल वह इन सब से बची हुई है। दूसरा भाजपा अभी जीत की खुमारी में है ऐसे में उससे तकरीर कर पाना आसान नहीं होगा। विपक्ष के पास बताने या समझाने के लिए कुछ भी नहीं है। ऐसे में तकरीबन एक-दो महीने में अगर यह राजनीतिक दल अपने संगठन को आमूल-चूल ओवरहालिंग करने के बाद मीडिया के समक्ष आयें तो उनकी रणनीति के तहत अच्छा रहेगा। हालांकि ऐसा नहीं है कि विपक्ष अपनी बात जनता के सामने नहीं रख पा रहा है। हां इतना जरूर है कि वह यह काम इलेक्ट्रानिक के बजाय प्रिंट मीडिया के मार्फत कर रहा है। प्रमुख विपक्षी दल बाइट देने के बजाय अखबारों में अपनी बात रखते हुए रिलीज भ्ोजते हैं और उनको स्थान भी मिल रहा है। इसके चलते विपक्ष अपनी रणनीति में पूरी तरह सफल माना जा सकता है कि वह अपनी बात भी कह ले रहा है वह भी बिना विवादों में आये हुए। इस बर्हिगमन से सबसे ज्यादा भाजपा प्रवक्ता हैरान हैं क्योंकि जीत के बाद उन्होंने इन लोगों के लिए लंबे-लंबे बहस के मुद्दे बनाये थे जो धरे के धरे रह गये।